30 अक्टूबर 2023 की एक सामान्य शाम थी, लेकिन कानपुर के एक परिवार के लिए यह शाम धीरे-धीरे बेचैनी और घबराहट से भर गई। घड़ी में 7:30 बज चुके थे, लेकिन 16 वर्षीय कुशाग्र, जो कक्षा 10 का छात्र था, अब तक घर नहीं लौटा था। उसकी मां की चिंता बढ़ती जा रही थी, क्योंकि कुशाग्र की कोचिंग काफी पहले खत्म हो चुकी थी।
जब मां ने उसे कॉल किया, तो फोन स्विच्ड ऑफ मिला। कॉल के जवाब में वही स्वचालित संदेश मिला: “जिस नंबर से आप संपर्क करना चाहते हैं, वह अभी स्विच्ड ऑफ है।” हर बीतते पल के साथ उनकी घबराहट बढ़ती गई, क्योंकि यह पहली बार था जब कुशाग्र बिना बताए इतनी देर तक बाहर था। आमतौर पर, यदि वह देर करता, तो घर पर फोन कर जानकारी दे देता था।
अंततः घबराहट से भरी मां ने कुशाग्र के पिता को फोन कर अपनी चिंता जताई। पिता ने उन्हें शांत करने की कोशिश की और कहा, “अभी टाइम ही कितना हुआ है। हो सकता है, वह दोस्तों के साथ कहीं गया हो। परेशान मत हो, वह अभी आ जाएगा।“ लेकिन पिता के सांत्वना देने के बावजूद मां का दिल शांत नहीं हुआ। कहते हैं ना, एक मां का दिल अपने बच्चे के लिए जो महसूस करता है, वह किसी और को समझ नहीं आता।
मां ने कुशाग्र के कोचिंग सेंटर और दोस्तों को फोन करना शुरू किया। पता चला कि कुशाग्र समय पर कोचिंग पहुंचा था और वहां से अपने निर्धारित समय पर निकल भी गया था। लेकिन अगर वह कोचिंग से निकला था और अपने दोस्तों के साथ भी नहीं था, तो आखिर वह कहां गया?
इन सवालों के बीच, मां की नजर बालकनी पर पड़ी। वहां एक लेटर रखा था। वह लेटर किसी तूफान से कम नहीं था। उसमें लिखा कुछ ऐसा था जिसकी उम्मीद न कुशाग्र की मां ने की थी, न उसके पिता ने।
आखिर उस चिट्ठी में क्या था? कुशाग्र कहां गया था? क्या यह कोई शरारत थी, या कुछ गंभीर बात? इस घटना ने उस परिवार की सामान्य शाम को रहस्यमयी बना दिया।
कानपुर में सन्नाटे को चीरती खबर: कुशाग्र का अपहरण और फिरौती का लेटर
30 अक्टूबर 2023 की रात 8:10 पर कानपुर में एक मां के हाथों में ऐसा लेटर पहुंचा, जिसने पूरे परिवार की जिंदगी को हिला कर रख दिया। 16 वर्षीय कुशाग्र के अपहरण की पुष्टि हो चुकी थी, और यह लेटर किसी बुरे सपने जैसा था। इस चिट्ठी में न सिर्फ ₹30 लाख की फिरौती मांगी गई थी, बल्कि धमकियों और निर्देशों से भरा यह पत्र परिवार को हिला देने के लिए काफी था।
जैसे ही कुशाग्र की मां ने यह लेटर पढ़ा, उनकी सांसें थम गईं। लेटर में लिखा था:
“मैं आपका त्यौहार बर्बाद नहीं करना चाहता। पैसे मेरे हाथ में रखो और एक घंटे बाद लड़का सही-सलामत आपके पास होगा। हम आपको फोन करेंगे। अल्लाह हू अकबर। लड़के की गाड़ी और उसका मोबाइल आपके घर के पास होटल द सिटी क्लब के पास खड़े हैं।”
इस धमकी भरे लेटर के अगले पन्ने में चेतावनी दी गई थी:
“इस बात की जानकारी न पुलिस को दें, न लखनऊ में रह रहे अपने रिश्तेदारों को, और न ही पड़ोसियों को। आपके पास केवल दो-तीन दिन हैं। पैसे का इंतजाम करो और रात 2 बजे कोका कोला चौराहे पर मिलो। घर के चारों तरफ पूजन वाले झंडे लगा देना ताकि मैं पहचान सकूं। कोई होशियारी हुई तो जिम्मेदारी आपकी होगी।”
यह खबर जैसे ही कुशाग्र के पिता तक पहुंची, उन्होंने तुरंत लखनऊ में रहने वाले अपने भाई, सुमित कनोडिया, को फोन कर इसकी जानकारी दी। पूरे परिवार में अफरा-तफरी मच गई। रात 9:30 तक सुमित और अन्य रिश्तेदार कानपुर पहुंच चुके थे।
इस लेटर में सबसे चौंकाने वाली बात थी इसके शब्दों का चयन। एक ही लेटर में “अल्लाह हू अकबर” जैसे इस्लामिक शब्दों का इस्तेमाल और पूजन वाले झंडे का जिक्र किया गया। यह साफ दिखा रहा था कि किडनैपर किसी धर्म-आधारित विवाद या जांच को भटकाने की कोशिश कर रहा था।
यह घटना सिर्फ एक अपहरण नहीं, बल्कि एक बड़ी साजिश का संकेत देती है। परिवार के सामने सबसे बड़ा सवाल था – क्या वे पुलिस की मदद लें, या फिरौती देकर अपने बेटे की जान बचाएं? दूसरी ओर, किडनैपर की हरकतें यह सोचने पर मजबूर कर रही थीं कि मामला सिर्फ पैसों का है या इसके पीछे कुछ और गहरी वजह है।
कानपुर का यह मामला उस रात सिर्फ एक परिवार का नहीं रहा; यह पूरे शहर की जुबान बन गया। सवाल यह है – क्या कुशाग्र को सही-सलामत वापस लाया जा सकेगा? और क्या यह किडनैपर पकड़ा जाएगा?
कुशाग्र के अपहरण के मामले में पुलिस ने सबसे पहले लेटर में लिखे गए धार्मिक नारों की जांच शुरू की। यह लेटर न केवल भ्रमित करने वाला था, बल्कि इसमें ऐसे संकेत भी थे जो किसी करीबी के इस साजिश में शामिल होने की ओर इशारा कर रहे थे। लेटर के दूसरे पेज पर लखनऊ वाली फैमिली का जिक्र, और अपहरणकर्ता द्वारा घर की जानकारी होना यह साफ करता था कि यह काम किसी जानकार का है।
परिवार ने बिना देर किए पुलिस को मामले की जानकारी दी। पुलिस ने तुरंत जांच शुरू की, और साथ ही परिवार भी कुशाग्र की खोज में जुट गया। चूंकि परिवार एक अपार्टमेंट में रहता था, उन्होंने सबसे पहले वहां के सिक्योरिटी गार्ड से पूछताछ की कि लेटर घर तक कैसे पहुंचा।
गार्ड की होशियारी: मामले में अहम मोड़
गार्ड ने बताया कि एक लड़का, जिसने मुंह पर रुमाल और सिर पर हेलमेट पहना हुआ था, स्कूटी से आया था। उसने गार्ड से कहा कि यह लेटर “मनीष कनोडिया” को देना है। गार्ड को कुछ शक हुआ, इसलिए उसने लड़के से कहा कि वह खुद लेटर देकर आए और रुमाल व हेलमेट हटाकर जाए।
गार्ड ने अपनी चतुराई का परिचय देते हुए लड़के की स्कूटी का निरीक्षण किया। उसने देखा कि स्कूटी की आगे की नंबर प्लेट पर काले पेंट से नंबर छिपाए गए थे और पीछे की प्लेट पर कपड़ा बंधा हुआ था। गार्ड ने कपड़ा हटाकर स्कूटी का नंबर नोट कर लिया: यूपी 78 ईडी 2204।
गार्ड ने यह भी बताया कि जब वह लड़के की स्कूटी का फोटो खींचने की कोशिश कर रहा था, तो लड़का अंदर से लौट आया और गार्ड को घूरते हुए वहां से चला गया। गार्ड की सतर्कता के कारण यह स्कूटी का नंबर पुलिस तक पहुंच सका, जो इस मामले में निर्णायक साबित हुआ।
पुलिस ने तुरंत स्कूटी के नंबर की डिटेल्स खंगालीं। यह नंबर एक ऐसी स्कूटी से जुड़ा था जिसे कुशाग्र की ट्यूशन टीचर रचिता चलाया करती थी। रचिता का नाम सुनते ही परिवार हैरान रह गया, क्योंकि रचिता न केवल कुशाग्र की टीचर थी, बल्कि परिवार के साथ उसका घनिष्ठ संबंध था। वह लगातार फोन कर कुशाग्र के बारे में अपडेट ले रही थी, जैसे वह घटना से बिल्कुल अनजान हो।
रचिता का नाम इस केस में सामने आना चौंकाने वाला था। क्या वह इस साजिश में शामिल थी, या कोई और उसे फंसा रहा था? यह जांच का सबसे संवेदनशील पहलू था। अगर रचिता दोषी थी, तो उसे किसी भी इन्वेस्टिगेशन की जानकारी मिलना कुशाग्र की जान को खतरे में डाल सकता था।
किडनैपिंग के केस बेहद संवेदनशील होते हैं, खासकर जब फिरौती और पुलिस को जानकारी न देने की धमकी दी गई हो। ऐसे मामलों में हर कदम सोच-समझकर उठाना पड़ता है। पुलिस ने अपनी जांच को बेहद गोपनीय रखा और परिवार ने स्थिति को चतुराई से संभाला।
कुशाग्र को सुरक्षित छुड़ाने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे थे। इस केस में गार्ड की सतर्कता और परिवार की सूझबूझ ने जांच को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। अब सवाल यह था कि क्या कुशाग्र को सुरक्षित वापस लाया जा सकेगा, और क्या रचिता इस साजिश की मास्टरमाइंड थी, या इसके पीछे कोई और ताकत काम कर रही थी?
कुशाग्र किडनैपिंग केस ने उस समय एक खतरनाक मोड़ ले लिया जब परिवार ने रचिता और उसके बॉयफ्रेंड प्रभात शुक्ला पर दबाव बनाकर उनकी स्कूटी का पता लगाया। यह स्कूटी ओमनगर में प्रभात के घर के बाहर खड़ी थी। परिवार ने समझदारी से काम लेते हुए अपनी शंका को जाहिर नहीं होने दिया। उन्होंने प्रभात से इंसानियत के नाते कुशाग्र को खोजने में मदद करने की अपील की। इसी बहाने कुशाग्र के चाचा प्रभात और उसकी स्कूटी को पास के पुलिस स्टेशन रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए ले गए।
दूसरी ओर, पुलिस ने कुशाग्र के घर और कोचिंग सेंटर के सीसीटीवी फुटेज की गहन जांच की। फुटेज में दिखा कि कोचिंग ओवर होने के बाद कुशाग्र को एक लड़का रोकता है और उसकी स्कूटी पर लिफ्ट मांगता है। कुछ ही देर में स्कूटी घर की ओर न जाकर किसी और दिशा में मुड़ जाती है।
पुलिस ने पाया कि स्कूटी पर देखा गया लड़का वही था जो रचिता की स्कूटी पर लेटर लेकर कुशाग्र के घर पहुंचा था। यह जानकारी केस को और गंभीर बना रही थी।
चालाकी का पर्दाफाश
पुलिस स्टेशन पहुंचने के बाद रचिता और प्रभात को इस बात का एहसास तक नहीं हुआ कि वे फंस चुके हैं। प्रभात शुरू में पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करता है और दावा करता है कि वह स्कूटी का इस्तेमाल नहीं करता। उसने नंबर प्लेट को बदलकर “ई” को “एफ” कर दिया था, लेकिन पुलिस की तेज जांच के आगे यह चालाकी नाकाम हो गई।
दूसरी ओर, पुलिस की सख्ती के आगे रचिता टूट गई और उसने पूरी साजिश का खुलासा कर दिया। रचिता ने बताया कि प्रभात और उसका दोस्त आर्यन उर्फ शिवा गुप्ता इस अपराध में शामिल थे। आर्यन ही वह लड़का था जिसने कुशाग्र के घर लेटर पहुंचाया था।
पुलिस के दबाव में प्रभात ने कुशाग्र के बारे में सच उगलना शुरू किया। उसने बताया कि कुशाग्र को होटल सिटी क्लब के पास ले जाकर उसकी स्कूटी वहीं छोड़ दी गई थी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल बना रहा—कुशाग्र कहां है?
प्रभात पुलिस को अपने घर ले गया। वहां, स्टोर रूम की तलाशी के दौरान पुलिस को वह दर्दनाक दृश्य देखने को मिला जिसने सबको झकझोर कर रख दिया। स्टोर रूम में कुशाग्र की बॉडी पड़ी थी, उसके हाथ-पैर बंधे हुए थे, और गले पर रस्सी के गहरे निशान थे। कुशाग्र की हत्या गला घोंटकर की गई थी।
इस हत्या ने सभी को हैरान कर दिया, खासकर यह सोचकर कि इतनी घनी आबादी वाले इलाके में किसी को कत्ल की भनक तक नहीं लगी। पुलिस ने प्रभात के घर के पास लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज की जांच की। फुटेज में साफ दिखा कि कुशाग्र प्रभात के घर की ओर जा रहा था, लेकिन आधे घंटे बाद प्रभात अकेले लौटता दिखाई दिया।
कुछ ही घंटे पहले परिवार को मिला लेटर, जिसमें ₹30 लाख की फिरौती मांगी गई थी, यह जताने के लिए था कि कुशाग्र जिंदा है। लेकिन हकीकत में, उस निर्दोष 16 वर्षीय लड़के की जान पहले ही ले ली गई थी।
यह केस इस बात का प्रतीक है कि कैसे लालच और छल इंसानियत को कुचल सकते हैं। कुशाग्र के परिवार के लिए यह घटना न केवल दिल तोड़ने वाली है, बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि क्या अब वह अपने बेटे के लिए न्याय देख पाएंगे? पुलिस की सूझबूझ और परिवार की हिम्मत से इस मामले का पर्दाफाश हुआ, लेकिन कुशाग्र की जान बचाई नहीं जा सकी।
कानपुर का वह घर जो हंसी-खुशी और शान-ओ-शौकत का गवाह था, अचानक मातम में बदल गया। मनीष कनोडिया का परिवार शहर के प्रमुख व्यापारिक परिवारों में से एक था। उनके बेटे कुशाग्र की जिंदगी 10वीं कक्षा में पढ़ाई और दोस्तों के साथ मस्ती तक सीमित थी। लेकिन कौन जानता था कि उसी परिवार की “अपनाई हुई बेटी,” उनकी ट्यूशन टीचर रचिता, इस मासूमियत को हमेशा के लिए खत्म करने की योजना बना रही थी।
लालच का बीज
रचिता दो साल पहले तक कुशाग्र की ट्यूटर थी। वह परिवार के इतना करीब थी कि उसे बेटी की तरह माना जाता था। 13 अक्टूबर को कुशाग्र के घर पर आयोजित पार्टी में रचिता अपने बॉयफ्रेंड प्रभात शुक्ला के साथ आई। मनीष कनोडिया के आलीशान घर और उनकी संपन्नता ने प्रभात के मन में एक शैतानी योजना को जन्म दिया।
“अगर हम कुशाग्र को किडनैप करें और 30 लाख रुपये की फिरौती मांगें, तो हमारी जिंदगी सेट हो जाएगी,” प्रभात ने रचिता को लालच दिया। रचिता, जो पहले से अकेली थी और आर्थिक रूप से संघर्ष कर रही थी, इस योजना के झांसे में आ गई। प्रभात ने अपने दोस्त आर्यन गुप्ता को भी इस योजना में शामिल कर लिया।
प्लान का खौफनाक अंजाम
कई दिनों की रेखी के बाद, 13 अक्टूबर को, प्रभात ने अपने शैतानी प्लान को अंजाम देना शुरू किया। कुशाग्र, जो प्रभात को जानता था, उसकी मदद करने के लिए तैयार हो गया। कोचिंग से लौटते वक्त प्रभात ने कुशाग्र से लिफ्ट मांगी। मासूम कुशाग्र को नहीं पता था कि वह अपनी मौत की ओर बढ़ रहा है।
प्रभात ने बहाने से कुशाग्र को अपने घर बुलाया और उसे कोल्ड ड्रिंक ऑफर की। मासूमियत से कुशाग्र ने उसकी बात मान ली। लेकिन प्रभात पहले ही अपने शैतानी मंसूबों की तैयारी कर चुका था। उसने कुशाग्र को जमीन पर गिराकर उसके हाथ-पैर बांध दिए और रस्सी से गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी।
इस घटना ने न केवल कुशाग्र की जिंदगी छीन ली, बल्कि एक परिवार के विश्वास को भी चकनाचूर कर दिया। कुशाग्र के माता-पिता ने रचिता को अपनी बेटी की तरह अपनाया था। वे उसकी शादी का खर्च उठाने तक को तैयार थे। लेकिन लालच ने रचिता को अंधा बना दिया।
रचिता, प्रभात, और आर्यन का आत्मविश्वास इतना बढ़ चुका था कि उन्होंने पैसे मिलने से पहले ही एक नई कार बुक कर ली और हिमाचल प्रदेश में हनीमून का प्लान बना लिया। लेकिन पुलिस की सख्ती के आगे रचिता टूट गई और पूरी साजिश का खुलासा कर दिया। प्रभात ने भी स्वीकार किया कि कुशाग्र की हत्या उसके और उसके दोस्तों के लालच का नतीजा थी।
कुछ न्यूज़ चैनलों ने टीआरपी के लालच में मामले को तोड़-मरोड़ कर पेश किया। उन्होंने रचिता और कुशाग्र के बीच एक झूठा “लव एंगल” दिखाने की कोशिश की, जबकि पुलिस की जांच और कॉल रिकॉर्ड ने साफ कर दिया कि दोनों के बीच पिछले दो महीनों में कोई बातचीत नहीं हुई थी।
कुशाग्र के चाचा ने भावुक अपील की:
“यह लड़ाई हमारी नहीं, आप सभी की है। मासूम कुशाग्र की निर्मम हत्या की गई है। जिन पर हमने भरोसा किया, उन्होंने ही विश्वासघात किया। कृपया झूठी खबरें फैलाने से बचें और हमें न्याय की इस लड़ाई में साथ दें।”
यह मामला केवल एक हत्या का नहीं है; यह दिखाता है कि कैसे लालच इंसानियत को खत्म कर सकता है। जिस गुरु को समाज में सबसे ऊंचा दर्जा दिया जाता है, उसने ही अपने शिष्य और उसके परिवार के साथ धोखा किया। यह केस हर उस इंसान के लिए चेतावनी है, जो लालच और शॉर्टकट के पीछे अपनी नैतिकता खो बैठता है।
रचिता, प्रभात, और आर्यन को गिरफ्तार कर लिया गया है। कुशाग्र के परिवार ने उनकी फांसी की मांग की है। यह देखना बाकी है कि कानून इस मासूम के साथ न्याय कर पाता है या नहीं।