पंजाब के एक छोटे से गांव में 25 वर्षीय रणजीत सिंह का जीवन संघर्षों से भरा था। पढ़ाई-लिखाई पूरी कर लेने के बावजूद, वह रोजगार की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था। उसी दौरान उसकी किस्मत ने एक नया मोड़ लिया।
रणजीत की मुलाकात छुट्टियों के लिए भारत आए सुखविंद्र सिंह ढिल्लों से हुई। सुखविंद्र, एक साधारण किसान परिवार से था, जो 1981 में रोजगार की तलाश में कनाडा चला गया था। पढ़ाई में खास नहीं, लेकिन टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलने वाला सुखविंद्र अपनी मेहनत से कनाडा में नई पहचान बना चुका था। शुरुआत में उसे कई छोटे-मोटे काम और नौकरियां करनी पड़ीं, मगर किस्मत तब चमकी जब उसने हैमिल्टन में पुरानी कारों का खरीद-फरोख्त का धंधा शुरू किया। धीरे-धीरे उसने इस काम में बड़ा नाम कमा लिया।
रणजीत और सुखविंद्र की मुलाकात एक turning point साबित हुई। सुखविंद्र के अनुभव और प्रेरणा ने रणजीत के भीतर नए सपने जगा दिए। उसने अपने भविष्य को कनाडा की रोशनी में देखा। सुखविंद्र ने न केवल रणजीत को प्रेरित किया, बल्कि उसका कनाडा का वीज़ा तक बनवाया। 1993 में, रणजीत अपनी नई नवेली पत्नी लखविंदर के साथ कनाडा के हैमिल्टन आ पहुंचा।
हैमिल्टन में रणजीत ने सुखविंद्र के कार बिजनेस में पार्टनरशिप शुरू की। दोनों के बीच रिश्ता सिर्फ व्यवसायिक नहीं, बल्कि पारिवारिक भी बन गया। रणजीत सुखविंद्र को “चाचा” कहकर बुलाता और उसकी बेहद इज्जत करता। उनके परिवार भी एक-दूसरे के करीब रहते थे।
बिजनेस तेजी से बढ़ रहा था, लेकिन दोनों दूरदर्शी थे। 1996 में, उन्होंने एक अनोखी बीमा पॉलिसी ली। इस पॉलिसी के तहत, यदि दुर्घटना से किसी एक की मृत्यु हो जाती, तो दूसरे को $1 लाख डॉलर मिलते। इतना ही नहीं, यदि मृत्यु किसी हादसे से होती, तो यह राशि दोगुनी यानी $2 लाख डॉलर हो जाती।
यह पॉलिसी न केवल उनके बिजनेस की सुरक्षा के लिए थी, बल्कि उनकी गहरी साझेदारी और विश्वास का प्रतीक भी। रणजीत और सुखविंद्र की कहानी सिर्फ संघर्ष और सफलता की नहीं, बल्कि भरोसे और रिश्तों की एक मिसाल बन गई।
23 जून 1996: रहस्यमय मौत और जांच
एक साधारण-सी सुबह, जो अचानक भयानक त्रासदी में बदल गई। लखविंदर, रणजीत सिंह की पत्नी, रसोई में बर्तन धो रही थी जब उसने अचानक डाइनिंग रूम से अपने पति की चीखें सुनीं। बदहवास हालत में, वह तुरंत दौड़कर वहां पहुंची। सामने का दृश्य उसके दिल को झकझोर देने वाला था—रणजीत फर्श पर पड़े हुए थे, दर्द के मारे बुरी तरह तड़प रहे थे।
उनका शरीर धनुष की तरह मुड़ा हुआ था, आंखें बाहर की ओर निकल आई थीं, और चेहरा असहनीय पीड़ा से भरा था। यह देख लखविंदर सुन्न हो गई। कुछ क्षण बाद, होश संभालते हुए उसने अपने पति को उठाने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रही। घबराई हुई लखविंदर ने तुरंत एंबुलेंस बुलाई और रणजीत को अस्पताल ले गई।
हालांकि, डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बावजूद, रणजीत को बचाया नहीं जा सका। 23 जून 1996 की इस भयानक सुबह, 25 वर्षीय रणजीत ने दम तोड़ दिया। उनकी मौत रहस्यमय थी—शरीर पर न कोई चोट के निशान थे और न ही जहर के कोई अंश।
मौत के कारण पर सस्पेंस
डॉक्टरों ने संभावना जताई कि शायद दिल का दौरा उनकी मौत का कारण हो सकता है। लेकिन इस बात से सभी हैरान थे कि इतनी कम उम्र में, बिना किसी पूर्व संकेत के, रणजीत की ऐसी मौत कैसे हो सकती है? डॉक्टरों ने यह भी कहा कि मौत के पीछे कोई और वजह भी हो सकती है।
हैमिल्टन पुलिस ने रणजीत की मौत को संदिग्ध मानते हुए उनके शव को कब्जे में ले लिया। इधर, उनके बिजनेस पार्टनर और गहरे दोस्त, सुखविंद्र सिंह ढिल्लों, इस खबर से बुरी तरह सदमे में थे। रणजीत की आकस्मिक और दर्दनाक मौत ने सभी को चौंका दिया था।
बीमा और जांच की शुरुआत
रणजीत की मौत के बाद, उनकी और सुखविंद्र की साझेदारी में ली गई बीमा पॉलिसी का क्लेम सुखविंद्र सिंह को मिलना था। यह पॉलिसी $2 लाख डॉलर की थी, क्योंकि रणजीत की मौत एक दुर्घटना की श्रेणी में मानी जा रही थी। लेकिन, इससे पहले कि सुखविंद्र को बीमा की रकम मिलती, कंपनी ने मामले की गहन जांच का निर्णय लिया।
कैनेडियन लाइफ इंश्योरेंस कंपनी ने क्लेम इन्वेस्टिगेटर क्लिफ एलियट को जांच के लिए भेजा। क्लिफ एलियट, एक अनुभवी और तेज तर्रार अधिकारी, हैमिल्टन पहुंचे और सुखविंद्र सिंह से मुलाकात की। उन्होंने बीमा से जुड़े सभी दस्तावेजों की बारीकी से जांच की।
क्या छुपा था दस्तावेजों के पीछे?
दस्तावेज सही थे और हर प्रक्रिया पूरी तरह वैध लग रही थी। लेकिन इस रहस्यमय मौत और बीमा क्लेम के बीच कोई छिपा सच तो नहीं था? क्लिफ एलियट के मन में सवाल उठने लगे।
रणजीत की मौत की सच्चाई और सुखविंद्र के साथ उसके संबंधों की गहराई अब जांच का केंद्र बन चुके थे। क्या यह सब महज एक दुर्घटना थी, या इसके पीछे छुपा था कोई और राज़?
कहानी ने अब मोड़ ले लिया था—जहां सच और झूठ के धागे उलझने वाले थे।
एक तस्वीर से खुला राज़
कैनेडियन लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के इन्वेस्टिगेटर क्लिफ एलियट, सुखविंद्र सिंह के घर बैठे थे। बातचीत के दौरान उनकी नजर दीवार पर टंगी एक तस्वीर पर पड़ी। वह तस्वीर गुरु नानक साहब की थी। तस्वीर में कुछ ऐसा था जो एलियट को बेचैन करने लगा। उन्हें लगा कि उन्होंने यह तस्वीर पहले भी कहीं देखी है।
थोड़ा सोचने पर, एलियट को याद आया कि यही तस्वीर उन्होंने डेढ़ साल पहले सुखविंद्र के पुराने घर पर भी देखी थी। उस समय भी वे एक बीमा क्लेम की जांच के सिलसिले में वहां गए थे। वह क्लेम सुखविंद्र की पहली पत्नी, प्रवेश कौर, की मौत से जुड़ा था।
पहली पत्नी की मौत और बीमा क्लेम
3 फरवरी 1995 को, सुखविंद्र की पहली पत्नी, 36 वर्षीय प्रवेश कौर, की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई थी। उस मौत के बाद सुखविंद्र को बीमा क्लेम में $2,15,000 मिले थे। इसके अलावा, प्रवेश के नाम पर लिया गया $18,000 का कर्ज भी माफ कर दिया गया था।
अब एलियट के मन में शक गहराने लगा। मात्र डेढ़ साल के भीतर सुखविंद्र के करीबी दो लोगों की मौत हो चुकी थी, और दोनों ही मामलों में बीमा की बड़ी रकम उसे मिली थी।
शक का बीज और पुलिस की जांच
क्लिफ एलियट ने तुरंत हैमिल्टन पुलिस को अपनी शंका से अवगत कराया। उन्होंने बताया कि दोनों मौतें—पहली पत्नी प्रवेश कौर और बिजनेस पार्टनर रणजीत सिंह—रहस्यमय परिस्थितियों में हुई थीं। दोनों मामलों में सुखविंद्र सिंह बीमा की बड़ी रकम के लाभार्थी थे।
हैमिल्टन पुलिस ने इन तथ्यों को गंभीरता से लिया। उन्होंने इस मामले की तह तक जाने के लिए अनुभवी डिटेक्टिव वॉरेन कोरोल को जांच की जिम्मेदारी सौंपी।
प्रवेश कौर की मौत की फिर से जांच
डिटेक्टिव वॉरेन कोरोल ने जांच की शुरुआत प्रवेश कौर की मौत से की। उन्होंने पुराने मेडिकल रिकॉर्ड, पुलिस रिपोर्ट, और बीमा दस्तावेजों की छानबीन शुरू की। अब उनका उद्देश्य सिर्फ कागजी जांच तक सीमित नहीं था। वह हर उस सुराग की तलाश में थे जो इन रहस्यमय मौतों को जोड़ सके।
क्या है सच्चाई?
सुखविंद्र सिंह की जिंदगी में जुड़ी इन मौतों और बीमा क्लेम ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया था। क्या यह सब महज संयोग था, या इसके पीछे एक गहरी साजिश थी? डिटेक्टिव कोरोल की जांच का हर कदम इस गुत्थी को सुलझाने के करीब ले जा रहा था।
कहानी अब एक ऐसे मोड़ पर थी, जहां सच और झूठ के बीच की रेखा धुंधली हो चुकी थी।
1983: एक शादी, जो उज्ज्वल भविष्य का सपना थी
साल 1983 में, पंजाब के हरदेव ग्रेवाल ने अपनी बेटी परवेश कौर की शादी सुखविंद्र सिंह से कर दी। सुखविंद्र कनाडा में रहता था, और हरदेव को अपनी बेटी के भविष्य के लिए इससे बेहतर रिश्ता नहीं लगा। हालांकि, इस रिश्ते की नींव में परवेश के परिवार द्वारा दिया गया भारी दहेज शामिल था।
शादी के बाद, परवेश अपने सपनों और उम्मीदों के साथ पति के साथ कनाडा चली गई। परवेश पढ़ी-लिखी थी और एक टीचर बनना चाहती थी, लेकिन सुखविंद्र की असली सच्चाई शादी के बाद सामने आई। वह एक लालची, घमंडी, और पैसे का भूखा इंसान था। उसने अपनी पत्नी पर पैसे कमाने का दबाव डालना शुरू कर दिया।
मजबूरियां और संघर्ष
कनाडा पहुंचने के बाद, परवेश ने कई तरह की नौकरियां कीं। पहले वह मशरूम फार्म में काम करने लगी। 26 जुलाई 1985 को उसने अपनी पहली बेटी, हरप्रीत, को जन्म दिया। लेकिन बेटी के जन्म के छह महीने बाद ही उसे एक कपड़े की फैक्ट्री में काम करना पड़ा।
1988 में उसने दूसरी बेटी, अमन, को जन्म दिया। साल 1991 में, जब परवेश फिर गर्भवती हुई, तो सुखविंद्र को इस बार बेटे की चाहत थी। वह भारत में लिंग जांच के लिए गई, और जब पता चला कि वह फिर से बेटी को जन्म देने वाली है, तो गर्भपात करा दिया गया।
सुखविंद्र की बेटे की चाहत इतनी बढ़ गई थी कि उसने बच्चा गोद लेने की योजना बना ली थी। लेकिन परवेश के परिवार के दबाव के कारण उसे यह विचार छोड़ना पड़ा।
घरेलू हिंसा और पुलिस शिकायत
सुखविंद्र का बर्ताव बेहद अमानवीय था। वह अक्सर परवेश के साथ लड़ाई करता और उसे मारता-पीटता। एक बार तो उसने उसे इतना मारा कि परवेश ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। इस घटना के कारण सुखविंद्र को एक दिन जेल में बिताना पड़ा।
लेकिन इसके बाद भी परवेश का जीवन आसान नहीं हुआ। जल्द ही, वह गंभीर सिरदर्द की शिकायत करने लगी। डॉक्टरों को दिखाने के बावजूद उसका सिरदर्द ठीक नहीं हुआ।
31 जनवरी 1995: एक भयानक रात
उस दिन रात के समय परवेश लिविंग रूम में लेटी हुई थी, जब अचानक उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसकी रीढ़ की हड्डी में बिजली का झटका लगा हो। दर्द से तड़पते हुए, उसने चीखकर कहा, “मैं मर रही हूं।”
उसका शरीर धनुष की तरह मुड़ गया, दांत आपस में जा लगे, और चेहरा डरावना हो गया। सात साल की बेटी अमन यह सब देखकर घबरा गई और दौड़कर पड़ोसन उलगा को बुला लाई।
उलगा ने परवेश को फर्श पर तड़पते देखा। वह और सुखविंद्र मिलकर उसे राहत देने की कोशिश कर रहे थे। उलगा पैर रगड़ रही थी, जबकि सुखविंद्र उसे पानी पिलाने की कोशिश कर रहा था। लेकिन परवेश का शरीर और अकड़ता चला गया।
मौत और रहस्य
परवेश को तुरंत हैमिल्टन जनरल हॉस्पिटल ले जाया गया। डॉक्टरों ने कहा कि उन्होंने इससे पहले ऐसी कोई स्थिति नहीं देखी थी। उसके सभी टेस्ट नॉर्मल आए, लेकिन परवेश को जीवन समर्थन पर रखना पड़ा।
चार दिनों तक वह बेहोश रही। आखिरकार, 3 फरवरी 1995 को, सुखविंद्र की स्वीकृति के बाद, परवेश के लाइफ सपोर्ट को हटा दिया गया।
सवालों के घेरे में मौत
परवेश की मौत ने कई सवाल खड़े किए। डॉक्टर उसकी रहस्यमय स्थिति को समझ नहीं सके। सुखविंद्र ने अपनी पत्नी की मौत के बाद बीमा क्लेम में $2,15,000 प्राप्त किए, और इस घटना ने सुखविंद्र के लालच और उसके रिश्तों पर संदेह की छाया डाल दी।
क्या यह मौत सिर्फ एक बीमारी का परिणाम थी, या इसके पीछे कोई गहरी साजिश छुपी थी? परवेश के साथ हुई घटनाएं, उसकी यातनाएं और मौत अब जांच के दायरे में थीं।
रहस्यमयी मौतें और संदिग्ध इरादे
परवेश कौर की मौत की रिपोर्ट में डॉक्टरों ने इसे नेचुरल डेथ बताया, लेकिन मौत की कोई स्पष्ट वजह सामने नहीं आई। सुखविंद्र ने दावा किया कि परवेश ने मौत से पहले सिरदर्द के लिए एक कैप्सूल लिया था। यह कहानी उस समय शक के घेरे में आ गई जब पता चला कि परवेश की मौत के अगले ही दिन सुखविंद्र ने बीमा क्लेम के लिए आवेदन कर दिया।
रणजीत सिंह खेला, सुखविंद्र का बिजनेस पार्टनर, भी इसी तरह रहस्यमयी तरीके से मरा। दोनों मौतों से सुखविंद्र को वित्तीय फायदा हुआ।
जांच का विस्तार: भारत तक पहुंच
हैमिल्टन पुलिस ने इन मौतों की जांच का दायरा बढ़ाने का आदेश दिया। डिटेक्टिव वॉरेन और भारतीय मूल के डिटेक्टिव केविन हिंसा को सुखविंद्र के भारत कनेक्शन की जांच के लिए लुधियाना भेजा गया।
जांच से पता चला कि परवेश कौर की मौत के बाद, मात्र नौ सप्ताह के भीतर ही सुखविंद्र सिंह ढिल्लो ने जालंधर जिले के पंच ग्रेन गांव की रहने वाली सरबजीत कौर ब्राड से शादी कर ली। सुखविंद्र ने दूसरी पत्नी सरबजीत कौर के परिवार से भी दहेज के रूप में काफी रकम ली। लेकिन सुखविंद्र यहीं नहीं रुका। सरबजीत से शादी करने के कुछ ही दिनों बाद, उसने गुप्त तरीके से पंजाब के कपूरथला जिले के टिब्बा गांव की रहने वाली खुशविंदर कौर प्रीत से तीसरी शादी कर ली। खुशविंदर के परिवार से भी उसने दहेज के रूप में काफी पैसा लिया।
इसके बाद, सुखविंद्र अपनी दोनों पत्नियों को जल्द से जल्द कनाडा ले जाने का वादा करके वापस कनाडा चला गया। इधर सरबजीत कौर और खुशविंदर के परिवार उनके पासपोर्ट और अन्य आवश्यक कागजात तैयार कराने में जुट गए। कुछ महीने बाद, सुखविंद्र को खबर मिली कि उसकी दूसरी पत्नी सरबजीत कौर ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया है। सरबजीत ने एक बच्चे का नाम गुरमीत और दूसरे का गुरुविद्या रखा।
कुछ समय बाद, सुखविंद्र अपने जुड़वां बच्चों से मिलने कनाडा से पंजाब आया। सरबजीत कौर और उनके दोनों बच्चे पूरी तरह स्वस्थ थे। लेकिन कुछ दिन बाद, अचानक दोनों बच्चों की तबीयत खराब हो गई और मात्र 12 दिनों के भीतर उनकी मौत हो गई। बिना किसी जांच-पड़ताल के, उन दोनों बच्चों को दफन कर दिया गया।
अपने बच्चों की अचानक मौत से दुखी दिखने वाला सुखविंद्र, सरबजीत से बात करके अपने पुश्तैनी घर लुधियाना जाने की बात कहकर चला गया। लेकिन उस दिन वह अपने घर नहीं गया, बल्कि अपनी तीसरी पत्नी खुशविंदर कौर प्रीत के घर गया, जो बेसब्री से अपने पति का इंतजार कर रही थी।
सुखविंद्र ने खुशविंदर को मेडिकल जांच के लिए ले जाने का वादा किया। जांच के बाद, उसने खुशविंदर को उसके गांव टिब्बा में छोड़ दिया और लुधियाना लौट गया। लेकिन लुधियाना पहुंचते ही उसे खबर मिली कि उसकी तीसरी पत्नी खुशविंदर कौर प्रीत, जिसकी वह मेडिकल जांच करवाने ले गया था, की भी मौत हो गई। खुशविंदर का शरीर बुरी तरह अकड़ गया था और उसका चेहरा डरावना लग रहा था। डॉक्टरों ने उसकी मौत की वजह किसी अज्ञात बीमारी को बताया।
तीसरी पत्नी की मौत के कुछ दिनों बाद, सुखविंद्र ने चौथी शादी कर ली। उसकी चौथी पत्नी का नाम सुखविंद्र कौर ग्रेवाल था।
इस दौरान, सुखविंद्र सिंह ढिल्लों से जुड़े पांच लोगों की मौत हो चुकी थी—कनाडा में पहली पत्नी परवेश कौर और बिजनेस पार्टनर रणजीत सिंह खेला, और भारत में दो जुड़वां बच्चे और तीसरी पत्नी खुशविंदर कौर प्रीत।
फॉरेंसिक जांच में रणजीत सिंह और बच्चों के शरीर में स्ट्रन नामक जहरीला पदार्थ पाया गया, जो नक्स वोमिका के बीजों में होता है और भारत में आसानी से उपलब्ध है। इसके बाद, जासूसों ने लुधियाना में जड़ी-बूटी बेचने वालों से संपर्क किया और पाया कि यह ज़हर “कुंचड़” नामक दवा में होता है।
सुखविंद्र ने अपने शिकारों को इसी ज़हर से मारा था, जिसे सामान्य जांच में पकड़ना मुश्किल था।
अंततः, 1997 में सुखविंद्र सिंह ढिल्लों को गिरफ्तार किया गया। 2001 में मॉन्ट्रियल की अदालत ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। 21 नवंबर 2013 को, 54 वर्ष की आयु में, वह कैंसर से मौत का शिकार हो गया।
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