जब 5 साल के बच्चे ने कहा – मैं पिछले जन्म में मारा गया था
साल 1985 की बात है। आगरा से 17 किलोमीटर दूर बाल गांव में एक बच्चा पैदा हुआ, नाम था तोरन सिंह, जिसे घर में सब टीटू बुलाते थे। जब टीटू करीब दो साल का था, तभी वह साफ-साफ बोलने लगा। आमतौर पर माता-पिता के लिए यह खुशी की बात होती है, लेकिन टीटू के मामले में यह खुशी से ज्यादा चिंता बन गई।
टीटू जब दो साल का हुआ, तो अजीब-अजीब बातें करने लगा। वह अपने पिता से कहता, “मेरी बीवी और बच्चों का ध्यान रखना, मुझे यहां खाना तो मिल रहा है, लेकिन उनकी फिक्र हो रही है।” जब उसकी मां ने पूछा कि वह किसकी बात कर रहा है, तो उसने जवाब दिया, “अपने असली परिवार की, जो आगरा में रहता है।” वह बार-बार कहता, “तुम मेरे असली मां-बाप नहीं हो, मेरे असली माता-पिता आगरा में हैं।” कभी-कभी वह अचानक रोने लगता और कहता, “मैं यहां बस यूं ही आ गया हूं, मुझे अपने असली घर जाना है।”
शुरुआत में घरवालों ने इसे बच्चे की कल्पना समझकर नजरअंदाज किया, लेकिन जैसे-जैसे टीटू बड़ा हुआ, उसकी बातें और भी ज्यादा अजीब होने लगीं।

5 साल का बच्चा और पिछले जन्म की यादें
साल 1988 में टीटू पांच साल का हुआ। अब वह और भी चौंकाने वाली बातें करने लगा। एक दिन उसने कहा, “मेरा असली नाम सुरेश वर्मा है, मेरी बीवी का नाम उमा है और मेरे दो बेटे हैं – रोमू और सोमू।” उसने बताया कि आगरा में उसका एक बड़ा बंगला था और सदर बाजार में “सुरेश रेडियोज” नाम से उसकी दुकान थी।
इतना ही नहीं, उसने यह भी बताया कि शाम को जब वह अपनी कार से घर लौट रहा था, तब दो लोगों ने उसे गोली मार दी थी और वहीं उसकी मौत हो गई थी। वह कभी कहता, “मुझे गोली मारी गई,” तो कभी कहता, “तुम मेरे असली माता-पिता नहीं हो।” उसने यह भी बताया कि मरने के बाद उसका अंतिम संस्कार कैसे हुआ, पहले उसे अस्पताल ले जाया गया और फिर श्मशान में जला दिया गया।
पूरे गांव में हड़कंप
जब पांच साल का बच्चा अपनी पत्नी और बच्चों की बातें करने लगे, और यह बताए कि पिछले जन्म में उसकी हत्या हुई थी, तो यह किसी को भी अजीब लगेगा। यह खबर पूरे गांव में फैल गई। गांव के लोगों को लगा कि टीटू पर किसी भूत-प्रेत का साया है।
टीटू का व्यवहार भी बाकी बच्चों से अलग हो गया। वह पांच साल का था, लेकिन उसकी बातचीत, लहजा और हावभाव बड़ों जैसा था। वह अपनी मां से कहता, “मेरी बीवी तुम्हारी तरह पुरानी साड़ी नहीं पहनती, वो दो-दो हजार की साड़ी पहनती है।” वह कहता, “मैं इस गंदे घर में नहीं रह सकता, मैं अपने बंगले में जाऊंगा,” और फिर अपने छोटे-छोटे कपड़े बांधकर जाने की जिद करता।
वह पैदल या बस से जाने को तैयार नहीं होता और कहता, “मुझे सिर्फ अपनी कार से ही चलने की आदत है।”
परिवार की चिंता बढ़ गई
टीटू अपने छह भाई-बहनों में सबसे छोटा था, लेकिन वह मां-बाप को अपने असली माता-पिता नहीं मानता था। उसकी बातों और हरकतों से परिवार बहुत परेशान हो चुका था। आखिरकार, उन्होंने अपने बड़े बेटे अशोक से कहा कि वह इन सब बातों की सच्चाई पता लगाए – क्या यह टीटू की कल्पना थी या किसी ने उसे यह सब सिखाया था?
जब भाई ने सच जानने के लिए आगरा का सफर किया
टीटू की बातों में कितनी सच्चाई है, यह पता लगाने के लिए उसका भाई अशोक अपने दोस्त के साथ आगरा के सदर बाजार पहुंचा। टीटू बार-बार कहता था कि वहां “सुरेश रेडियोज” नाम की उसकी दुकान है। अशोक और उसका दोस्त काफी देर तक दुकान ढूंढते रहे, लेकिन ऐसा कोई नाम नहीं मिला। थककर वे बैठ ही गए थे कि अचानक अशोक की नजर एक बोर्ड पर पड़ी – “सुरेश रेडियोज”। वही नाम, जिसका जिक्र टीटू हमेशा करता था। अशोक हैरान रह गया। क्या टीटू की बाकी बातें भी सच थीं? क्या वह सच में सुरेश का पुनर्जन्म था, या यह सिर्फ एक इत्तेफाक था?
साल 1983 में आगरा में सुरेश नाम का एक बिजनेसमैन था। उसकी सदर बाजार में “सुरेश रेडियोज” नाम की इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान थी। उसका एक बड़ा बंगला था, जहां वह अपनी पत्नी उमा, दो बच्चों, माता-पिता और भाइयों के साथ रहता था। 28 अगस्त 1983 की शाम, जब टीटू के जन्म से सिर्फ चार महीने पहले, सुरेश अपनी सफेद कार से घर लौट रहा था, तभी दो बदमाश घात लगाए बैठे थे। जैसे ही सुरेश ने घर के गेट पर गाड़ी रोकी और हॉर्न बजाया, उन बदमाशों ने गोली चला दी। गोली उसकी कनपटी के दाईं तरफ लगी, और सुरेश की मौके पर ही मौत हो गई। जब तक घरवाले बाहर आते, बदमाश फरार हो चुके थे। उस समय इलाके में ज्यादा भीड़ नहीं हुआ करती थी, ऊपर से शाम का समय था, इसलिए कोई गवाह नहीं मिला। पुलिस भी हत्यारों तक नहीं पहुंच सकी और आखिरकार मामला बंद कर दिया गया। सुरेश की मौत के बाद उसके परिवार की जिम्मेदारी उसकी पत्नी उमा पर आ गई, और उसने दुकान संभालनी शुरू कर दी।
अब पांच साल बाद, 1988 में, अशोक उसी दुकान के सामने खड़ा था, जहां उसका भाई टीटू जाने की बात करता था। वह दुकान के अंदर गया और वहां उसे एक महिला मिली – यही थी सुरेश की पत्नी उमा। अशोक ने उससे सुरेश के बारे में पूछा, तो उमा ने उसे पूरा हादसा बताया। जो बातें उमा कह रही थी, वे वही बातें थीं जो टीटू हमेशा बोलता था – पत्नी का नाम, बच्चों का नाम, दुकान का नाम, मौत की वजह, सब कुछ बिल्कुल वैसा ही। अशोक को यकीन नहीं हो रहा था कि टीटू की बातें सच हो सकती हैं।
उधर, उमा भी उलझन में थी। उसने अशोक से पूछा कि वह आखिर कौन है और उसे सुरेश से क्या काम था। अब बारी थी उमा के चौंकने की। अशोक ने बताया कि वह आगरा से 17 किलोमीटर दूर बाड़ गांव में रहता है और फिर उसने टीटू की पूरी कहानी सुनाई। उमा को यकीन करना मुश्किल लग रहा था। उसने कहा कि हो सकता है, टीटू ने ये सब किसी अखबार में पढ़ लिया हो, क्योंकि उस वक्त यह बहुत बड़ी खबर थी। लेकिन अशोक ने कहा कि टीटू यह सब तब से बोल रहा है, जब उसकी उम्र के बच्चे ढंग से बोलना भी नहीं सीख पाते।
उमा के लिए यह एक अजीब स्थिति थी। एक तरफ उसे जानने की उत्सुकता थी, लेकिन दूसरी तरफ मन में कई सवाल भी थे। उसने यह बात अपने सास-ससुर यानी सुरेश के माता-पिता को बताई। वे भी हैरान थे, लेकिन मन ही मन खुश भी थे कि शायद उनका बेटा किसी रूप में वापस आ गया है।
सच्चाई का पता लगाने के लिए अशोक ने सुरेश के परिवार को अपने गांव आने के लिए कहा। उसने सुझाव दिया कि बिना बताए अचानक टीटू के सामने चलकर देखते हैं कि वह उन्हें पहचान पाता है या नहीं। दिल में कई तरह की भावनाएं लिए सुरेश का परिवार अशोक के साथ बाड़ गांव के लिए निकल पड़ा, जहां एक पांच साल का बच्चा शायद उनके अपने सुरेश के रूप में मिल सकता था। उस वक्त टीटू अपने घर में खाना खा रहा था…
जब टीटू ने अपने पिछले जन्म के परिवार को पहचान लिया
जैसे ही टीटू ने दरवाजे पर खड़े सुरेश के परिवारवालों को देखा, वह दौड़ता हुआ उनके पास गया और गले लग गया। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा, “देखो, मेरे मां-बाबू जी आ गए! मैं उन्हें बुलाकर लाया हूं!” उसने सुरेश के माता-पिता को अपना असली मां-बाप बताया और बार-बार “आई पापा जी! आई माता जी!” कहने लगा।
लेकिन जब उसकी नजर उमा पर पड़ी, तो वह अचानक शर्माने लगा। एक पांच साल का बच्चा, जो अब तक बच्चा ही था, अचानक एक वयस्क आदमी की तरह व्यवहार करने लगा। उसने उमा को इशारे से अपने पास बैठने के लिए बुलाया और अपने बच्चों का हालचाल पूछने लगा। फिर उसने उमा से डौलपुर के मेले की एक खास बात कही। यह सुनते ही उमा दंग रह गई, क्योंकि यह बातचीत सिर्फ सुरेश और उमा के बीच हुई थी, और इसके बारे में कोई और नहीं जानता था।
मिलने के बाद जब सब वापस जाने लगे, तो टीटू ने बाहर खड़ी कार देखी। उसने पहले कभी कार नहीं देखी थी, क्योंकि उस वक्त इतनी गाड़ियां भी नहीं होती थीं, लेकिन उसे देखकर ऐसा नहीं लगा कि यह उसके लिए नया हो। उसे लगा कि अब वह भी उनके साथ आगरा जा रहा है। लेकिन जैसे ही उसे एहसास हुआ कि वे उसे अपने साथ नहीं ले जा रहे, वह पूरी तरह भड़क गया। वह अपनी मां पर चिल्लाने लगा, अपने पिता से झगड़ने लगा, और भागकर सुरेश के पिता चंदा सिंह के गले लग गया, क्योंकि उसके लिए वही उसके असली पिता थे।
सुरेश के परिवार ने उसे प्यार से समझाया और वादा किया कि वे जल्दी ही उसे मिलने के लिए बुलाएंगे। इसके बाद तय हुआ कि एक दिन टीटू को आगरा ले जाया जाएगा, ताकि यह पक्का हो सके कि उसकी यादें सच में उसके पिछले जन्म की हैं या नहीं।
टीटू ने न केवल अपने पिछले जन्म के माता-पिता को पहचान लिया था, बल्कि अपनी पत्नी उमा और उससे जुड़ी निजी बातें भी बता दी थीं। इससे यह शक तो दूर हो गया था कि उसने ये सब कहीं पढ़कर या सुनकर सीखा होगा। लेकिन इससे टीटू के असली माता-पिता की चिंता और बढ़ गई। एक मां-बाप के लिए इससे बड़ा दुख क्या हो सकता है कि उनका बच्चा किसी और को अपना असली माता-पिता मानने लगे? उनके मन में सवाल उठ रहे थे – “अगर वह बड़ा हो गया, तो क्या हमारा रिश्ता उससे हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा?”
अब टीटू को आगरा लाने की तैयारी शुरू हुई, लेकिन उसके परिवारवालों ने पहले ही उसकी परीक्षा लेने की योजना बना ली थी।
पहली परीक्षा – दुकान की पहचान
जब टीटू को कार से आगरा ले जाया गया, तो सुरेश के भाइयों ने उसे गुमराह करने के लिए गाड़ी को दुकान के आगे रोके बिना तेज़ी से आगे बढ़ा दिया। वे देखना चाहते थे कि क्या टीटू अपनी दुकान को पहचान पाएगा या नहीं। जैसे ही कार “सुरेश रेडियोज” के सामने से गुजरी, टीटू जोर से चिल्लाया – “रुको! रुको! मेरी दुकान तो पीछे छूट गई, तुम लोग कहां जा रहे हो?”
यह देखकर सभी चौंक गए, क्योंकि टीटू कार के अंदर बैठा हुआ भी न सिर्फ रास्ता, बल्कि दुकान और उसकी लोकेशन भी पहचान गया था। यह तभी हो सकता था जब वह पहले उस रास्ते से सैकड़ों बार गुजरा हो।
दूसरी परीक्षा – दुकान के अंदर की जानकारी
इसके बाद, टीटू को दुकान के अंदर ले जाया गया। वहां पहुंचते ही उसकी बॉडी लैंग्वेज एक पांच साल के बच्चे जैसी नहीं थी, बल्कि एक दुकान के मालिक जैसी थी। उमा ने गौर किया कि वह जिस तरह से स्टूल पर बैठा, जिस अंदाज में हाथ चला रहा था, वह बिल्कुल सुरेश की तरह था।
इतना ही नहीं, उसने दुकान के बदले हुए हिस्से भी पहचान लिए। उसने बताया कि “यह हिस्सा नया बनाया गया है, लेकिन बाकी सब वैसा ही है जैसा मैंने छोड़ा था।”
यह देखकर सभी हैरान रह गए। टीटू ने परीक्षा पास कर ली थी।
तीसरी परीक्षा – बच्चों की पहचान
अब बारी थी सबसे मुश्किल टेस्ट की। टीटू को सुरेश के घर ले जाया गया, लेकिन उसके आने से पहले ही सुरेश के दोनों बच्चों को मोहल्ले के अन्य बच्चों के साथ बाहर भेज दिया गया।
टीटू जब घर पहुंचा, तो बिना किसी झिझक के खेलते हुए बच्चों में से अपने दोनों बच्चों को पहचान लिया। यह देखकर सभी को यकीन हो गया कि टीटू वाकई सुरेश का पुनर्जन्म है।
इन सभी सबूतों के बाद अब इस बात से इनकार करना मुश्किल था कि टीटू ही सुरेश वर्मा का पुनर्जन्म था। लेकिन कहानी अभी खत्म नहीं हुई थी…
पुनर्जन्म का केस जिसने सबको चौंका दिया
टीटू का मामला मीडिया में हर जगह चर्चा का विषय बन गया। इसकी खबर दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एन.के. चड्ढा तक भी पहुंची। प्रोफेसर चड्ढा, डॉ. इयान स्टीवेंसन की रिसर्च टीम में थे। डॉ. स्टीवेंसन, यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के एक जाने-माने प्रोफेसर थे, जो पुनर्जन्म पर वैज्ञानिक शोध के लिए मशहूर थे। उन्होंने इस विषय पर कई किताबें भी लिखी थीं।
डॉ. स्टीवेंसन की सलाह पर उनकी सहयोगी रिसर्चर एंटोनिया मिल्स ने टीटू के केस की गहराई से स्टडी शुरू की। सुरेश के परिवार ने बताया था कि सुरेश का स्वभाव काफी गुस्सैल और चिड़चिड़ा था। छोटी-छोटी बातों पर वह झगड़ा कर लेता था। डॉ. मिल्स ने नोटिस किया कि टीटू का व्यवहार भी धीरे-धीरे वैसा ही होता जा रहा था।
एक बार जब डॉ. मिल्स टीटू के साथ बाजार में चूड़ियां खरीदने गईं, तो उसने दुकानदार को धमकी दे डाली – “ये मेरी दोस्त हैं, इनसे गलती से भी पैसे मत मांग लेना!” यह वाकया इतना हैरान करने वाला था कि डॉ. मिल्स ने इसे अपनी रिसर्च रिपोर्ट में भी लिखा।
क्या टीटू को अपने हत्यारों का पता था?
सबसे बड़ा सवाल यही था – क्या टीटू को अपने पिछले जन्म के कातिलों का पता था? क्या उसने उनके चेहरे देखे थे?
टीटू ने जो खुलासा किया, उसने मीडिया में हलचल मचा दी। उसने बताया कि 28 अगस्त 1983 की शाम, जब उसे गोली मारी गई थी, उसने उन दो हमलावरों में से एक का चेहरा पहचान लिया था। वह शख्स कोई और नहीं, बल्कि सुरेश का एक पुराना बिजनेस पार्टनर था।
अच्छी बात यह थी कि आगरा पुलिस ने इस केस को गंभीरता से लिया। टीटू के बयान के आधार पर पुलिस ने उस बिजनेसमैन को गिरफ्तार किया और सख्ती से पूछताछ की। आखिरकार, उसने अपना अपराध कबूल कर लिया।
इस कबूलनामे के आधार पर 1983 के सुरेश वर्मा मर्डर केस को दोबारा खोला गया। यह पहली बार था जब पुनर्जन्म से जुड़ा कोई मामला कोर्ट में पहुंचा।
सबसे बड़े सबूत – पोस्टमार्टम रिपोर्ट और बर्थमार्क
टीटू का सबसे बड़ा टेस्ट तब हुआ जब डॉक्टरों ने उसके सिर पर बर्थमार्क देखे।
सुरेश को सिर पर ठीक उसी जगह गोली मारी गई थी, जहां टीटू के सिर पर दो निशान थे। जब उसके बाल हटाए गए, तो पाया गया कि ये निशान बिल्कुल वैसे ही थे, जैसे गोली लगने से होते हैं।
डॉ. इयान स्टीवेंसन ने अपनी रिसर्च में पहले ही लिखा था कि बर्थमार्क और पिछले जन्म की चोटों के बीच गहरा संबंध हो सकता है। हिंदू धर्म में भी यह मान्यता है कि आत्मा अपने पिछले जन्म की यादों को जन्म के निशानों के रूप में साथ लेकर आती है।
कोर्ट में डॉ. एंटोनिया मिल्स की रिपोर्ट भी पेश की गई। इन सभी सबूतों के आधार पर आगरा कोर्ट ने यह मान लिया कि टीटू ही सुरेश का पुनर्जन्म है। सुरेश के हत्यारों को सजा हुई।
क्या टीटू अपने पिछले परिवार के साथ चला गया?
अब सबसे बड़ा सवाल यह था – क्या टीटू अपने पिछले जन्म के माता-पिता के पास चला गया?
सच्चाई यह थी कि सुरेश भले ही टीटू के रूप में वापस आया था, लेकिन वह सुरेश नहीं था। आत्मा भले ही वही थी, लेकिन शरीर तो एक पांच साल के बच्चे का था।
ना तो उमा के लिए वह उसका पति रह गया, और ना ही सुरेश के बच्चों के लिए वह उनके पिता। सुरेश के पिता भी यह समझ गए कि अगर उन्होंने टीटू से ज्यादा लगाव बढ़ाया, तो उसके असली माता-पिता उसे हमेशा के लिए खो देंगे। और एक बेटे को खोने का दर्द वे पहले ही झेल चुके थे।
इसलिए, दोनों परिवार अपनी-अपनी जिंदगी में लौट गए। टीटू ने दोहरी यादों के साथ अपने बचपन को जिया और अपने गांव में रहकर पढ़ाई की।
आज टीटू कहां है?
आज टीटू सिंह (असली नाम – तोरन सिंह) बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। उन्हें आज भी अपना पिछला जन्म याद है। वे अक्सर आगरा जाकर अपने पिछले परिवार से मिलते हैं।
आज उनका मानना है कि हम दोहरी जिंदगी नहीं जी सकते। जो बीत गया, उसे छोड़ना ही बेहतर है। जो बाकी है, वही हमारा आज है।
पुनर्जन्म का यह अनोखा केस हमें सिखाता है कि जीवन कोई सीधी लकीर नहीं, बल्कि एक सर्कल है – जहां शुरुआत और अंत एक ही जगह आकर मिलते हैं।
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