मां बेटी के साथ हैवानियत – कैसे मस्तराम और लोकेश ने रची खतरनाक साजिश – Hindi Crime Story

राजस्थान के कोटा शहर में 31 जनवरी 2019 को बारिश ने ठंड बढ़ा दी थी, लेकिन इस इलाके में जैन मंदिर, राम मंदिर और गुरुद्वारा होने के कारण हमेशा की तरह उस दिन भी लोगों की चहल-पहल बनी हुई थी। पौश इलाके में जैन मंदिर के ठीक सामने ज्वेलर राजेंद्र विजयवर्गीय का दो मंजिला मकान था। परिवार में उनके पिता चांदमल, पत्नी गायत्री, और 18 वर्षीय बेटी पलक रहती थीं। स्टेशन रोड पर उनकी “विजय ज्वेलर्स” नामक एक ज्वेलरी की दुकान थी।

चांदमल रोज शाम 7:00 बजे जैन मंदिर की आरती के बाद राम मंदिर जाने के लिए घर से निकलते थे और वहां से स्कूटर पर अपनी दुकान पहुंचते थे। रात 8:30 बजे दुकान बंद करने के बाद वे और उनका बेटा राजेंद्र अक्सर साथ में घर लौटते थे। लेकिन 31 जनवरी को जरूरी काम के कारण राजेंद्र दुकान पर ही रुक गया, जबकि चांदमल अपने नौकर के साथ 8:30 बजे घर लौट आए। नौकर घर के बाहर से ही लौट गया, और चांदमल ऊपरी मंजिल पर अपने घर पहुंचे।

उन्होंने डोर बेल बजाई, लेकिन दरवाजा नहीं खुला। अजीब बात यह थी कि डोर बेल की आवाज बाहर से साफ सुनाई दे रही थी, लेकिन घर के अंदर कोई हलचल नहीं थी। चांदमल ने दरवाजा खटखटाया तो वह खुल गया। यह देखकर वे चौंक गए, क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ था जब दरवाजा अंदर से बंद नहीं किया गया था।

जैसे ही वे बहू गायत्री के कमरे की ओर बढ़े और उसे आवाज लगाई, अचानक ठिठक गए। उनके पैरों तले जमीन खिसक गई जब उन्होंने देखा कि कमरे के बाहर खून फैला हुआ था। गायत्री की खामोशी और फर्श पर बिखरे खून को देखकर चांदमल डर गए और जोर-जोर से चिल्लाने लगे।

Kota Murder Mystery
Kota mother daughter killed by servant

कोटा के दोहरे हत्याकांड की खौफनाक दास्तान

चांदमल की चीखें सुनकर ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाली किराएदार रश्मी भी घबरा गईं। हिम्मत करके जब रश्मी ऊपर पहुंचीं, तो वहां बदहवास खड़े चांदमल ने गायत्री के कमरे के सामने फैले खून की ओर इशारा किया। थोड़ी हिम्मत जुटाकर रश्मी और चांदमल गायत्री के कमरे की ओर बढ़े, लेकिन कमरे के अंदर गायत्री नहीं थीं। जब दोनों ड्राइंग रूम पहुंचे, तो वहां का दृश्य देखकर उनकी आंखें फटी की फटी रह गईं। ड्राइंग रूम के फर्श पर गायत्री की खून में सनी लाश पड़ी थी। रश्मी को थोड़ा आगे गायत्री की बेटी पलक भी खून में लथपथ हालत में पड़ी दिखी। उसके आसपास भी खून का दरिया सा बह रहा था, जिससे साफ था कि उसकी भी मौत हो चुकी थी।

इस भयानक दृश्य को देखकर चांदमल के होश उड़ गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे और क्यों हुआ। उन्होंने खुद को संभालने की कोशिश की और तुरंत अपने बेटे राजेंद्र को फोन करके घटना की जानकारी दी। इसके बाद उन्होंने रश्मी को अपना मोबाइल दिया और पुलिस को फोन करने के लिए कहा। पुलिस को सूचना देने के बाद रश्मी ने पड़ोसियों को आवाज लगाई, और थोड़ी ही देर में राजेंद्र के घर के बाहर पड़ोसियों की भीड़ जमा हो गई।

भीमगंज मंडी पुलिस स्टेशन, जो वहां से केवल एक किलोमीटर दूर था, की टीम थाना प्रभारी चंद्र सिंह के नेतृत्व में तुरंत मौके पर पहुंच गई। इस दोहरे हत्याकांड ने कोटा के पुलिस महकमे को हिलाकर रख दिया। फॉरेंसिक टीम और डॉग स्क्वाड को भी बुलाया गया, जबकि घर के बाहर भारी भीड़ जमा हो चुकी थी।

पुलिस ने देखा कि खून बेडरूम में फैला हुआ था, लेकिन गायत्री और पलक के शव ड्राइंग रूम में पड़े थे। इससे उन्होंने अंदाजा लगाया कि हत्यारों ने पहले मां-बेटी को उनके कमरे में ही कत्ल किया और फिर उनके शवों को घसीटते हुए ड्राइंग रूम में लाकर फेंक दिया। बेडरूम से ड्राइंग रूम तक खून की लकीरें इस ओर इशारा कर रही थीं। लेकिन जिस दरिंदगी से मां-बेटी की हत्या की गई थी, वह इस बात का संकेत दे रही थी कि यह कत्ल किसी गहरी रंजिश का नतीजा था।

लोहे के दरवाजे के पीछे छिपा खौफनाक सच

गायत्री के पति राजेंद्र का कहना था, “हम तो सीधे-साधे लोग हैं, इसलिए किसी से दुश्मनी या रंजिश का तो सवाल ही नहीं है।” लेकिन एसपी दीपक भार्गव उनके इस जवाब से सहमत नहीं थे। दोनों शवों की हालत देखकर यह घटना किसी गहरी रंजिश की ओर इशारा कर रही थी। हत्यारों ने भारी हथियारों से गायत्री और पलक के सिर, गर्दन, और हाथों पर इतने खतरनाक वार किए थे कि उनका भेजा तक बाहर आ गया था।

जांच के दौरान पुलिस को बेड पर दो लोहे की सरिए मिले और बेड के नीचे एक खून से सना चाकू भी मिला। चाकू पर लगे खून से स्पष्ट था कि मां-बेटी के गले इसी चाकू से काटे गए थे। इसके अलावा, बेडरूम में रखी अलमारियों के ताले टूटे हुए थे, जिससे लूटपाट के इरादे का शक और गहरा गया। राजेंद्र अपनी पत्नी और बेटी की मौत के सदमे में थे, जिससे वे ज्यादा कुछ बताने की स्थिति में नहीं थे।

एसपी भार्गव का मानना था कि हत्यारे दो या उससे अधिक रहे होंगे। शुरुआती जांच के बाद पुलिस ने शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए भिजवाया। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि गायत्री की मौत सिर में चोट लगने से हुई थी। उसके सिर पर पांच गहरे घाव थे और कई हड्डियां टूटी हुई थीं। बेटी पलक की रिपोर्ट में यह सामने आया कि पहले उसके साथ दुष्कर्म किया गया था और फिर उसकी हत्या की गई। उसके सिर पर दो घाव थे, जिनमें से एक इतना गहरा था कि उसका भेजा बाहर आ गया था।

मौका-ए-वारदात पर सबसे पहले पहुंचने वाले जांच अधिकारी चंद्र सिंह ने बताया, “31 जनवरी 2019 की रात जब इस दोहरे हत्याकांड की सूचना मिली, मैं थाने के बाहर खड़ा था। सबसे पहले मैं मौके पर पहुंचा। मां-बेटी की खून में सनी लाशें देखकर मैं पांच मिनट तक खुद को संभाल नहीं सका। इस केस का मुझ पर इतना प्रेशर था कि मैंने तीन दिन तक बिना खाना खाए और बिना सोए काम किया। यह मेरी जिंदगी का सबसे दर्दनाक मामला था।”

पुलिस ने पाया कि लुटेरों ने सरियों को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया था। मां-बेटी के हाथों पर गहरी खरोंच और चोटें थीं, और फर्श पर टूटी चूड़ियां पड़ी थीं, जो उनके संघर्ष की गवाही दे रही थीं। उनके नाखूनों में त्वचा और मांस के टुकड़े मिले, जो संभवतः हत्यारों के थे।

राजेंद्र के घर से एक सड़क स्टेशन की ओर जाती थी, जबकि दूसरी हटवाड़ा की ओर, जो सैन्य क्षेत्र तक पहुंचती थी। पुलिस को लगा कि हत्यारे इसी रास्ते से बिना किसी की नजर में आए फरार हो गए। इस वारदात को जिस तरीके से अंजाम दिया गया था, उससे पुलिस को शक था कि आरोपी विजयवर्गीय परिवार के करीबी ही हो सकते थे। घर का मुख्य दरवाजा लोहे का था, लेकिन उसकी कुंडी ऐसी थी जो अंदर और बाहर से आसानी से खोली जा सकती थी।

राजेंद्र विजयवर्गीय के घर का रहस्य और संदिग्ध गमछा

राजेंद्र विजयवर्गीय की पत्नी गायत्री और पिता चांदमल सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय थे, जिससे उनके घर पर लोगों का आना-जाना लगा रहता था। राजेंद्र ने बताया कि उनके घर में पांच सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे, और गायत्री या उनकी बेटी कैमरे में देखकर ही दरवाजा खोलती थीं। इसका मतलब था कि जिस दिन यह वारदात हुई, उस दिन घर आने वाले लोग उनकी जान-पहचान के ही रहे होंगे।

पुलिस को घर के सभी सीसीटीवी कैमरे टूटे हुए और उनकी डीवीआर गायब मिली, जो यह दर्शाता था कि हत्यारे घर के हर कोने से परिचित थे। घर की दोनों तिजोरियों के ताले टूटे हुए थे, और बदमाशों को पता था कि घर की सारी जमा पूंजी उन्हीं तिजोरियों में रखी हुई थी। इस घटना से व्यापारियों में भी आक्रोश फैल गया। उन्होंने पुलिस पर दबाव बनाने के लिए धरना प्रदर्शन की चेतावनी दी।

1 फरवरी को, एसपी दीपक भार्गव ने राजेंद्र से चोरी हुए सामान के बारे में पूछा। राजेंद्र ने बताया कि तिजोरी से ₹5 लाख नगद और लगभग ₹10 लाख के सोने-चांदी के गहने गायब थे। इससे यह स्पष्ट हो गया कि इस वारदात को पैसों के लालच में अंजाम दिया गया था, जिसे राजेंद्र ने भी स्वीकार किया।

एसपी दीपक भार्गव ने तुरंत 200 पुलिसकर्मियों की कई टीमें बनाईं। पुलिस ने इलाके के सभी सीसीटीवी कैमरे खंगालने शुरू किए और अपराधियों की तलाश में होटलों और धर्मशालाओं में छापेमारी की। कोटा शहर की नाकाबंदी कर दी गई ताकि अपराधी शहर छोड़कर भाग न सकें।

2 फरवरी को मामले में नया मोड़ आया जब पुलिस को घटना स्थल से सफेद रंग का एक गमछा मिला। अफरा-तफरी में अपराधियों में से एक ने वह गमछा छोड़ दिया था। पुलिस ने राजेंद्र से इसके बारे में पूछा, लेकिन वे कुछ नहीं बता पाए। बाद में एक मुखबिर ने संदेह जताया कि ऐसा गमछा राजेंद्र की दुकान पर चौकीदारी करने वाले मस्तराम का हो सकता है।

जांच के दौरान पुलिस की नजर कई और संदिग्धों पर थी, लेकिन 3 फरवरी की शाम को एक मुखबिर ने कांस्टेबल शिवराज को सूचना दी कि राजेंद्र का एक पुराना नौकर इन दिनों खूब पैसे उड़ा रहा है। मुखबिर ने बताया कि उस नौकर ने हाल ही में ₹50,000 का मोबाइल और महंगे कपड़े खरीदे हैं। यह जानकारी पुलिस के लिए अहम सुराग साबित हो सकती थी।

शोक सभा में अपराधी का पर्दाफाश

कहावत है कि अपराधी वारदात के बाद किसी न किसी बहाने से मौके पर लौटता है, और यही उसकी सबसे बड़ी गलती बन जाती है। गायत्री और पलक की शोक सभा के दौरान भी कुछ ऐसा ही हुआ। 3 फरवरी को आयोजित इस सभा में एक व्यक्ति जोर-जोर से दहाड़ें मारकर रोने लगा। वह बार-बार कह रहा था, “मालिक, यह सब कैसे हो गया?” जब वह राजेंद्र को सांत्वना देने के लिए उनके पास आया, तो उसके मुंह से शराब की गंध राजेंद्र के नाक तक पहुंच गई।

राजेंद्र ने उसे जबरन पीछे हटाने की कोशिश की, लेकिन वह व्यक्ति और जोर-जोर से रोने लगा। इस हरकत ने सभा में मौजूद साधारण कपड़ों में तैनात पुलिसवालों का ध्यान खींचा। पुलिस ने राजेंद्र से उस व्यक्ति के बारे में पूछा। राजेंद्र ने बताया कि वह उनका पुराना और बेहद वफादार नौकर मस्तराम मीणा है, जो ढाई साल पहले उनकी दुकान पर चौकीदारी करता था।

मस्तराम का नाम सुनते ही पुलिस चौकन्नी हो गई। वह वही व्यक्ति था, जिसका जिक्र एक मुखबिर ने किया था। मुखबिर ने बताया था कि मस्तराम इन दिनों खूब पैसे उड़ा रहा है। मस्तराम की इस संदिग्ध हरकत ने पुलिस का शक पुख्ता कर दिया। उन्होंने उसे तुरंत हिरासत में लिया और भीमगंज थाने ले आए।

थाने में जब मस्तराम से कड़ाई से पूछताछ की गई, तो वह जल्दी ही टूट गया। उसने जो कहानी बताई, उसे सुनकर पुलिसवालों का दिल दहल गया। यह खुलासा इस हत्याकांड की जटिलता को उजागर करने वाला था और मस्तराम की भूमिका ने पूरे मामले को एक नया मोड़ दे दिया।

मस्तराम की साजिश और वारदात का खुलासा

पूछताछ के दौरान मस्तराम ने चौंकाने वाला खुलासा किया। उसने बताया कि इस खौफनाक वारदात को उसने अपने दोस्त लोकेश मीणा के साथ मिलकर अंजाम दिया था। मस्तराम और लोकेश बचपन के दोस्त थे और एक ही गांव के रहने वाले थे। मस्तराम अब तक अविवाहित था, और तीन साल पहले अपने पिता की मौत के बाद उसे पुश्तैनी जमीन बेचने से ₹1 लाख मिले थे। लेकिन वह रकम उसने शराब और अय्याशी में उड़ा दी। गांव में उसकी शराबखोरी और हुड़दंग के कारण वह कई बार पिट चुका था।

लोकेश मीणा भी अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति था। दसवीं कक्षा में फेल होने के बाद उसने ठेकेदारी का काम शुरू किया, लेकिन झगड़े और विवादों के कारण उसे कोई काम नहीं मिलता था। उसके खिलाफ केशव रायपाटन थाने में कई मुकदमे दर्ज थे। स्थिति और बिगड़ गई जब उसने अपनी भाभी के साथ भागने की कोशिश की, जिसके बाद उसके परिवार ने उसे घर से निकाल दिया।

दोनों दोस्त अब यह सोचने लगे कि किसी बड़ी लूटपाट की वारदात को अंजाम देकर आरामदायक जीवन जिया जा सकता है। तीन साल पहले मस्तराम ने राजेंद्र विजयवर्गीय की दुकान पर नौकरी की थी, इसलिए उसे घर के बारे में सारी जानकारी थी। उसे पता था कि परिवार के सदस्य कब घर में होते हैं और कब बाहर जाते हैं। साथ ही उसे यह भी मालूम था कि पैसे और गहने कहां रखे हैं।

मस्तराम ने लोकेश को समझाया कि लूट के दौरान उन्हें एक-दो लोगों की हत्या करनी पड़ सकती है, लेकिन इसके बदले उन्हें बड़ी रकम और सोना मिलेगा। पैसे का लालच सुनते ही लोकेश तैयार हो गया।

मस्तराम ने बताया कि वारदात से पहले उन्होंने कई दिनों तक राजेंद्र के घर और दुकान की रेकी की। उन्होंने शाम 7:00 बजे का समय चुना क्योंकि उस वक्त राजेंद्र अपनी दुकान पर होते थे, और उनके पिता चांदमल राम मंदिर में दर्शन के बाद दुकान पर पहुंच जाते थे। रात 8:30 या 9:00 बजे से पहले परिवार का कोई सदस्य घर पर नहीं होता था। इसी जानकारी के आधार पर दोनों ने अपने अपराध की योजना बनाई।

मस्तराम और लोकेश की खौफनाक वारदात का खुलासा

राजेंद्र के घर के ग्राउंड फ्लोर पर उनकी किराएदार रश्मी अकेली रहती थी, लेकिन शाम के समय रश्मी अक्सर सब्जी लेने मंडी चली जाती थी। मस्तराम और लोकेश ने इसी मौके का फायदा उठाया। उनके लूटपाट के प्लान में गायत्री और उसकी बेटी पलक की हत्या पहले से तय थी। दोनों सरिया और चाकू साथ लेकर आए थे।

गायत्री और पलक मस्तराम को पहले से जानती थीं। इसलिए जब उसने दरवाजे की डोरबेल बजाई, तो गायत्री ने बिना किसी शक के दरवाजा खोल दिया। दरवाजा खुलते ही दोनों घर के अंदर घुस गए। गायत्री ने उन्हें बैठने को कहा, लेकिन जैसे ही वह अपने कमरे की ओर मुड़ी, दोनों ने सरिए से उसके सिर पर ताबड़तोड़ वार कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया।

गायत्री की चीख सुनकर पलक अपने कमरे से बाहर आई। उन दरिंदों ने उसे पकड़ लिया और उसके साथ पहले दुष्कर्म किया। इसके बाद दोनों ने उसे भी बेरहमी से मार डाला। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई भी जिंदा न बचे, उन्होंने चाकू से मां और बेटी दोनों का गला भी रेत दिया।

हत्या के बाद मस्तराम और लोकेश ने शवों को ड्राइंग रूम में घसीट कर डाल दिया। मस्तराम को पता था कि ज्वेलरी और नकद पैसे गायत्री के कमरे की तिजोरी में रखे होते हैं। वह एक बैग लेकर आए थे। उन्होंने तिजोरी तोड़ी और सारा कैश व गहने बैग में भर लिए। इसके बाद वे मौके से फरार हो गए।

वारदात के बाद की गतिविधियां

दोनों बस पकड़कर अपने गांव पहुंचे। वहां उन्होंने लूट का माल घर में छिपा दिया। रात को वे बूंदी जिले से रोडवेज बस पकड़कर जयपुर चले गए। जयपुर में वे बस स्टैंड के पास एक होटल में रुके। अगले दिन उन्होंने जमकर खरीदारी की, शराब पी, और ₹70,000 के महंगे मोबाइल व कपड़े खरीदे। 2 फरवरी को वे कोटा लौट आए।

मस्तराम की शोक सभा में गलती

मस्तराम को अपने प्लान पर पूरा विश्वास था। उसे पकड़े जाने का डर नहीं था, लेकिन उसने किसी को शक न होने देने के लिए गायत्री और पलक की शोक सभा में शामिल होने का नाटक किया। शोक सभा में उसने दहाड़े मारकर रोने का नाटक किया और बार-बार कहता रहा, “मालिक, यह सब कैसे हो गया।” लेकिन उसके शरीर से आ रही शराब की बदबू और उसकी ओवरएक्टिंग ने कांस्टेबल शिवराज को शक में डाल दिया।

पुलिस ने मस्तराम को गिरफ्तार कर लिया। राजेंद्र विजय ने पुलिस को बताया कि लूटेरों ने उनके घर से ₹5 लाख नकद और गहने चोरी किए थे। पूछताछ के बाद पुलिस ने ₹5 लाख में से ₹70,000, 1.35 किलो चांदी, और 2 किलो 26 ग्राम सोना बरामद कर लिया।

इसके अलावा, पुलिस को गायत्री और पलक के सोने की चेन और कंगन भी मिले, जो मस्तराम और लोकेश ने उतारे थे। लोकेश ने अपने हिस्से का सोना अपने गांव के एक खेत में गाड़ दिया था।

लूट की रकम का बंटवारा करने के बाद मस्तराम गुजरात के पाटन जिले में अपने रिश्तेदार के पास गया। उसने ₹2 लाख रिश्तेदार को यह कहकर दिए कि यह पैसे जमीन बेचकर मिले हैं और थोड़े दिन के लिए उनके पास रखे। मस्तराम ने रिश्तेदार से कहा कि वह बाद में आकर पैसे ले जाएगा।

इस जघन्य वारदात का नतीजा और सजा

मस्तराम और लोकेश द्वारा किए गए इस घिनौने अपराध के बाद, उनके रिश्तेदारों ने पुलिस को लूट की रकम यह कहते हुए सौंप दी कि उन्हें इस वारदात के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। एसपी दीपक भार्गव ने बताया कि इस अपराध का खुलासा करने में कांस्टेबल शिवराज की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही।

शोक सभा के दौरान कांस्टेबल शिवराज को मस्तराम के हावभाव और उसकी कलाइयों पर खरोंच के निशान देखकर शक हुआ। उन्होंने पूरे ध्यान से मस्तराम पर नजर रखी और यह उनकी सतर्कता का ही नतीजा था कि अपराधियों को जल्द पकड़ लिया गया।

18 फरवरी 2020 को पोक्सो कोर्ट ने इस मामले को “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” मानते हुए मस्तराम मीणा और लोकेश मीणा को फांसी की सजा सुनाई। दोनों पर ₹80,800 का जुर्माना भी लगाया गया। इसके अलावा, उन्हें अन्य कई धाराओं में भी सजा दी गई।

पोक्सो कोर्ट के जज अजय कुमार शर्मा ने अपने फैसले में कहा कि यह मामला समाज की सामूहिक चेतना से जुड़ा हुआ है। आरोपियों ने वह अपराध तब किया, जब दो महिलाएं अपने घर में अकेली थीं। उन्होंने न केवल संपत्ति लूटी, बल्कि बेटी के साथ दुष्कर्म किया और फिर दोनों महिलाओं की बेरहमी से हत्या कर दी।

न्यायाधीश अजय कुमार शर्मा ने कहा कि इस प्रकार के अपराध से समाज का हर वर्ग असुरक्षित महसूस करता है। ऐसे दरिंदों को समाज कभी भी अपने बीच नहीं देखना चाहता। अपने फैसले में उन्होंने लिखा कि आरोपियों को फांसी के वारंट जारी होने के बाद उन्हें तब तक लटकाया जाए, जब तक उनकी मृत्यु न हो जाए।

इस घटना को सुनाने का उद्देश्य किसी का दिल दुखाना या किसी को परेशान करना नहीं है, बल्कि समाज को जागरूक करना और सतर्क करना है। यह घटना बताती है कि सावधानी और सतर्कता क्यों जरूरी हैं, ताकि ऐसी त्रासदियों से बचा जा सके।

आपकी राय इस घटना के बारे में क्या है? हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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