रहस्यमयी मौत: सिस्टर अभया की कहानी
यह कहानी केरल के तिरुवनंतपुरम की है और साल 1992 की घटना है। केरल के कोट्टायम में सेंट पायस एक्स कॉन्वेंट नाम की एक धार्मिक संस्था थी, जहां 21 साल की सिस्टर अभया पढ़ाई कर रही थीं। वह पढ़ाई में तेज थीं और समाज सेवा करना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने नन बनने का फैसला किया। उनके माता-पिता थॉमस और लीला थे और उनका एक भाई बिज्जू थॉमस था। वे एक साधारण ईसाई परिवार से थे। जब सिस्टर अभया नन बनीं, तो उनका नाम बदलकर अभया रख दिया गया। वह सेंट जोसेफ कांग्रेगेशन ऑफ रिलीजियस सिस्टर्स की सदस्य थीं।
27 मार्च 1992 की सुबह, सिस्टर अभया ने परीक्षा की तैयारी के लिए सुबह 4 बजे का अलार्म लगाया। उन्हें प्यास लगी, इसलिए वह पानी लेने किचन में गईं। लेकिन वह वापस अपने कमरे में नहीं लौटीं। जब बाकी ननें उठीं और उन्हें ढूंढने लगीं, तो उन्होंने देखा कि किचन में फ्रिज का दरवाजा खुला था, पानी की बोतल गिरी पड़ी थी और पानी फर्श पर फैला था। वहीं, उनकी एक चप्पल भी पड़ी थी।
जब उनकी तलाश बढ़ी, तो कुएं के पास उनकी दूसरी चप्पल मिली। शक हुआ कि शायद वह कुएं में गिर गई हों। तुरंत पुलिस और फायर ब्रिगेड को बुलाया गया। उन्होंने कुएं की तलाशी ली और वहां सिस्टर अभया की लाश मिली। यह सुबह करीब 10 बजे की बात थी। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। इस घटना ने पूरे इलाके में सनसनी फैला दी।
सिस्टर अभया की मौत: आत्महत्या या हत्या?
जांच के दौरान पुलिस को सिस्टर अभया की एक चप्पल फ्रिज के पास पड़ी मिली। उन्होंने देखा कि फ्रिज का दरवाजा खुला था और पानी की बोतल फर्श पर गिरी हुई थी, जिससे पानी फैला हुआ था। इससे यह साफ था कि किसी ने फ्रिज से पानी की बोतल निकाली थी। सिस्टर अभया की दूसरी चप्पल कुएं के पास मिली, जिससे पुलिस के लिए यह सवाल खड़ा हुआ कि वह वहां कैसे पहुंची।
मामले की तहकीकात के लिए कुछ लोगों से पूछताछ की गई, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। आखिरकार, यही मान लिया गया कि सिस्टर अभया ने आत्महत्या की होगी, क्योंकि यह सोचना मुश्किल था कि वहां कोई बाहरी व्यक्ति आकर हत्या कर सकता था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह स्पष्ट था कि उनकी मौत पानी में डूबने से हुई थी। रिपोर्ट में यह भी लिखा था कि उनके शरीर पर जो चोटें थीं, वे कुएं में गिरने के कारण आई थीं।
स्थानीय पुलिस ने इस रिपोर्ट को सबूत मानते हुए अपनी फाइनल रिपोर्ट तैयार की और इसे आत्महत्या का मामला बताया। पुलिस और स्कूल प्रशासन ने भी इसे सही मानकर केस बंद कर दिया। लेकिन हॉस्टल में रहने वाली अन्य ननों को इस जांच और रिपोर्ट पर भरोसा नहीं था।
इस संदेह की एक अहम वजह यह थी कि एक नन ने उसी सुबह किचन के पास हॉस्टल की प्रभारी सिस्टर सेफी, फादर थॉमस कोटूर और एक अन्य फादर जोस पुत्र कैल को देखा था। यह चौंकाने वाली बात थी, क्योंकि हॉस्टल में फादर का आना मना था।
सिस्टर अभया की चप्पल का एक किचन में और दूसरी कुएं के पास मिलना यह सवाल खड़ा करता था कि अगर वह आत्महत्या करने गई, तो उसने दोनों जगहों पर अपनी चप्पलें क्यों छोड़ीं? अगर वह सच में आत्महत्या करने जा रही थी, तो वह फ्रिज का दरवाजा बंद करती और चप्पल पहनकर सीधे कुएं में कूदती। इसके अलावा, किचन का सामान अस्त-व्यस्त पड़ा था, जो इशारा करता था कि वहां कुछ और हुआ था।
इन सब तथ्यों से यह साफ होता है कि सिस्टर अभया की मौत आत्महत्या नहीं, बल्कि किसी और वजह से हुई थी, और यह घटना हत्या की ओर इशारा करती थी।
हॉस्टल की 66 ननों ने केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री के. करुणाकरण को पत्र लिखकर सीबीआई जांच की मांग की। उन्हें पुलिस की जांच और पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर भरोसा नहीं था। उनका मानना था कि घटनास्थल की स्थिति और मिले हुए सबूतों से यह साफ था कि सिस्टर अभया की मौत आत्महत्या नहीं थी। ननों ने सीबीआई से निष्पक्ष जांच की अपील की ताकि सच्चाई सामने आ सके और दोषियों को सजा मिल सके।
सिस्टर अभया केस: चोर की गवाही और बार-बार बदलती जांच
क्राइम ब्रांच ने जब इस मामले की जांच शुरू की, तो उस नन ने बताया कि उसने हॉस्टल के किचन में सिस्टर सेफी, फादर थॉमस कोटूर और फादर जोस पुथर कैल को देखा था। यह गवाही पहले से ही शक पैदा कर रही थी, लेकिन इसके बाद एक और अहम गवाह सामने आया—एक चोर, अद का राजा।
उस रात अद का राजा कॉन्वेंट में चोरी करने आया था। दरअसल, वह आकाशीय बिजली से सुरक्षा के लिए छत पर लगे तांबे के तार चुराने के इरादे से वहां पहुंचा था। लेकिन चोरी के दौरान उसने कुछ ऐसा देखा, जिससे यह मामला और रहस्यमय बन गया।
जब राजा छत पर चढ़कर तार चुराने की कोशिश कर रहा था, तभी उसने देखा कि सिस्टर सेफी, फादर थॉमस कोटूर और फादर जोस पुथर कैल टॉर्च लेकर किचन के दरवाजे पर खड़े थे। बाद में, जब राजा ने अखबारों में सिस्टर अभया की मौत की खबर पढ़ी, तो उसे समझ में आ गया कि यह आत्महत्या नहीं, बल्कि हत्या थी। उसने जो देखा था, उससे साफ था कि इन्हीं तीनों ने सिस्टर अभया की हत्या की थी।
राजा क्राइम ब्रांच के दफ्तर जाकर गवाही देने के लिए तैयार हुआ, लेकिन पुलिस ने उसकी बात सुनने के बजाय उसे चोरी के आरोप में जेल भेज दिया। क्राइम ब्रांच ने भी वही रिपोर्ट दी, जो स्थानीय पुलिस पहले ही दे चुकी थी—कि सिस्टर अभया की मौत कुएं में डूबने से हुई और यह आत्महत्या थी।
लेकिन ज्यादातर लोग इस निष्कर्ष को मानने को तैयार नहीं थे। मानवाधिकार कार्यकर्ता जेमोन पुथन पुक्कल और कई अन्य लोगों ने इस जांच के खिलाफ न्याय की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। मामला इतना बढ़ गया कि केरल विधानसभा में भी जोरदार हंगामा हुआ।
आखिरकार, जब यह मामला केरल हाई कोर्ट पहुंचा, तो 1993 में अदालत ने इसकी जांच सीबीआई को सौंप दी। आदेश मिलते ही सीबीआई की टीम सिस्टर अभया की मौत के रहस्य को सुलझाने में जुट गई। लेकिन जांच के बाद सीबीआई ने भी वही रिपोर्ट दी, जो पुलिस और क्राइम ब्रांच पहले ही दे चुकी थी।
सीबीआई का कहना था कि उन्हें कोई ठोस सबूत नहीं मिला, जिससे यह साबित हो कि यह हत्या का मामला है। चौंकाने वाली बात यह थी कि सीबीआई की टीम ने न तो उस नन की गवाही को गंभीरता से लिया और न ही चोर अद का राजा की गवाही को।
1996 में भी सीबीआई ने यही रिपोर्ट दी, लेकिन केरल हाई कोर्ट ने इसे खारिज कर दोबारा जांच के आदेश दिए। इसके बाद सीबीआई की दूसरी टीम को इस मामले की जांच सौंपी गई। 1999 में दूसरी टीम ने अपनी रिपोर्ट पेश की, लेकिन वह भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई। टीम का कहना था कि यह स्पष्ट नहीं हो सका कि सिस्टर अभया की हत्या हुई थी या उन्होंने आत्महत्या की। हालांकि, इस बार मामले को संदिग्ध जरूर माना गया, जिससे जांच आगे बढ़ने की उम्मीद बनी रही।
सीबीआई की इस टीम ने कहा कि मामला संदिग्ध है, लेकिन सबूतों की कमी के कारण वे किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकते। हाई कोर्ट ने सीबीआई की इस रिपोर्ट को खारिज करते हुए फटकार लगाई और ईमानदारी से दोबारा जांच करने के आदेश दिए। इसके बाद, सीबीआई की तीसरी टीम को जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई।
सीबीआई की नई जांच और बड़ा खुलासा
सीबीआई की तीसरी टीम ने गहन जांच के बाद कोर्ट को बताया कि यह हत्या का मामला है, आत्महत्या का नहीं। हालांकि, उनके पास कोई ठोस सबूत नहीं था जिससे किसी को दोषी ठहराया जा सके। टीम का कहना था कि अब तक सारे सबूत मिटाए जा चुके हैं, जिससे आगे की जांच करना मुश्किल हो गया है।
कोर्ट ने सीबीआई की इस रिपोर्ट को भी खारिज कर दिया और कड़ी फटकार लगाते हुए फिर से प्रभावी और ईमानदारी से जांच करने के आदेश दिए। इस बार, सीबीआई ने मामले में कोई भी ठोस सुराग देने वाले को 1 लाख रुपये इनाम देने की घोषणा की। इसके बावजूद, सीबीआई को कोई ठोस सबूत या गवाह नहीं मिला, जिससे यह साबित हो सके कि यह हत्या थी।
इसी बीच सीबीआई के तेजतर्रार अधिकारी वर्गीज पी. थॉमस, जो इस मामले की जांच कर रहे थे, ने अचानक 19 जनवरी 1994 को प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। इस दौरान उन्होंने समय से पहले नौकरी छोड़ने की घोषणा कर दी। उन्होंने कहा कि उन्हें इस मामले की ईमानदारी से जांच करने की अनुमति नहीं दी जा रही है।
वर्गीज पी. थॉमस ने खुलासा किया कि केरल के कोच्चि स्थित सीबीआई ऑफिस के सुपरिंटेंडेंट वी. त्यागराजन उन पर दबाव बना रहे थे कि सिस्टर अभया की मौत को आत्महत्या करार दिया जाए और कोर्ट में भी यही रिपोर्ट पेश की जाए।
इस खुलासे के बाद सीबीआई पर दबाव बढ़ गया और हंगामा मच गया। आखिरकार, वी. त्यागराजन को इस मामले से हटा दिया गया।
इसके बाद, कोर्ट के आदेश पर सीबीआई की चौथी टीम को जांच सौंपी गई। यह टीम केरल के कोच्चि स्थित सीबीआई ऑफिस के अधिकारियों की थी।
नार्को टेस्ट और छेड़छाड़ का आरोप
सीबीआई की चौथी टीम ने फादर थॉमस कोटूर, फादर जोस पुथर कयल और नन सिस्टर सेफी को संदिग्ध माना। उन्होंने इन तीनों का नार्को टेस्ट कराने का फैसला किया।
जब कॉन्वेंट को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने हॉस्टल की रसोइया के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर नार्को टेस्ट को रुकवाने की कोशिश की। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने नार्को टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
इसके बाद, बेंगलुरु में डॉक्टर मालिनी की देखरेख में इन तीनों का नार्को टेस्ट कराया गया। टेस्ट के दौरान जो बयान सामने आए, उन्हें सीबीआई ने एक सीडी में रिकॉर्ड किया और कोर्ट में पेश किया।
लेकिन बाद में यह खुलासा हुआ कि सीबीआई ने कोर्ट में जो सीडी सौंपी थी, उसमें छेड़छाड़ की गई थी। इसका मतलब था कि जो बयान फादर और नन सिस्टर सेफी ने नार्को टेस्ट के दौरान दिए थे, उन्हें बदलकर पेश किया गया था।
सिस्टर अभया की मौत की पूरी कहानी
सिस्टर अभया केस में बड़ा मोड़ तब आया जब कोर्ट ने डॉक्टर मालिनी से नार्को टेस्ट की ओरिजिनल रिकॉर्डिंग मांगी, लेकिन उनके बर्थ सर्टिफिकेट में गड़बड़ी पाई गई और उन्हें नौकरी से हटा दिया गया। इसके बाद मामला फिर अटक गया, और यह साफ नहीं हो पाया कि सीडी में दिखाया गया बयान सही था या नहीं। कुछ समय बाद, वही सीडी केरल के एक लोकल चैनल पर दिखाई दी, लेकिन यह कैसे लीक हुई, इसका कोई पता नहीं चला। इस सीडी में फादर थॉमस, फादर जोस और सिस्टर सेफी ने वही कहानी बताई थी जो उन्होंने नार्को टेस्ट के दौरान कही थी। इस खुलासे के बाद सीबीआई को जांच में कुछ नई कड़ियां मिलीं। साल 2008 में पहली बार सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की और फादर थॉमस कोटूर, फादर जोस पुथर कयल और नन सिस्टर सेफी को गिरफ्तार कर लिया। जांच के दौरान यह सामने आया कि 4 बजे सुबह सिस्टर अभया पानी पीने के लिए किचन में गई थीं, तभी उन्होंने कुछ आवाजें सुनीं। जब उन्होंने अंदर झांका, तो देखा कि फादर थॉमस और सिस्टर सेफी आपत्तिजनक स्थिति में थे। अभया को देखकर वे घबरा गए, क्योंकि अगर यह बात खुल जाती, तो उनकी बदनामी हो जाती और उन्हें चर्च से निकाल दिया जाता। डर के मारे उन्होंने सिस्टर अभया का मुंह दबा दिया, ताकि वह किसी को कुछ न बता सके।
इसके बाद सिस्टर सेफी ने किचन से कुल्हाड़ी उठाई और अभया के सिर पर वार कर दिया। जब वह बेहोश होकर गिर पड़ीं, तो फादर थॉमस और सिस्टर सेफी ने उन्हें कुएं में फेंक दिया। उन्होंने जल्दी-जल्दी किचन की सफाई कर दी, लेकिन वहां गिरी पानी की बोतल, चप्पल और अस्त-व्यस्त सामान की ओर ध्यान नहीं दिया। उसी रात, एक चोर ‘अद का राजा’ छत पर तांबे के तार चुराने आया था और उसने इन तीनों को वहां देखा था। बाद में उसने फादर थॉमस और सिस्टर सेफी की पहचान कर ली थी। हालांकि, कोर्ट ने नार्को टेस्ट को सबूत नहीं माना, क्योंकि उसमें दिया गया बयान नशे की हालत में लिया जाता है। 2009 में हाई कोर्ट ने तीनों आरोपियों को जमानत पर रिहा कर दिया। इस केस में सबूतों से छेड़छाड़ हुई थी—अभया के कपड़े गायब कर दिए गए, शरीर पर मौजूद चोटों के निशान छिपा दिए गए और सबूत मिटा दिए गए। मामले की जांच के दौरान कई गवाहों की रहस्यमय मौत हो गई, जिनमें कॉन्वेंट की प्रमुख सिस्टर लीक्स, चौकीदार एस. दास और खुद सिस्टर अभया के माता-पिता शामिल थे। इसके अलावा कई गवाह अपने पुराने बयानों से पलट गए। इस तरह, गवाह मरते गए, सबूत नष्ट होते गए, और सीबीआई 15 साल तक जांच के बावजूद आरोपियों को सजा दिलाने के लिए पुख्ता सबूत नहीं जुटा सकी।
सत्य की जीत: न्याय, संघर्ष और नैतिकता की सीख
2018 में जांच अधिकारी केटी माइकल को भी आरोपी बनाया गया, लेकिन इसी साल सबूतों के अभाव में फादर जोस को बरी कर दिया गया। 2019 में हाई कोर्ट के जज वी. जी. अरुण ने इस केस में हो रही देरी पर ध्यान दिया और निर्देश दिया कि इसे जल्द से जल्द निपटाया जाए। इसके बाद सीबीआई कोर्ट में इस मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हुई। आखिरकार, 28 साल बाद, 22 दिसंबर 2020 को फादर थॉमस कोटूर और सिस्टर सेफी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। यह केस भारतीय न्यायिक इतिहास के सबसे लंबे चले मामलों में से एक था, जिसमें न्याय मिलने में लगभग तीन दशक लग गए।
इस मामले में सिस्टर अभया की मौत को आत्महत्या साबित करने की कोशिश की गई, लेकिन सच धीरे-धीरे सामने आया। इससे यह सीख मिलती है कि अन्याय और झूठ को हमेशा छिपाया नहीं जा सकता। अगर किसी के साथ गलत हो रहा है, तो उसके लिए आवाज उठाना जरूरी है। सिस्टर अभया को न्याय दिलाने के लिए कई लोगों ने संघर्ष किया, और यही कारण था कि सच्चाई सामने आई। कई बार ताकतवर लोग सच को दबाने की कोशिश करते हैं, लेकिन देर-सवेर न्याय की जीत होती ही है।
जो लोग समाज में नैतिकता और आदर्शों की शिक्षा देते हैं, अगर वे खुद गलत रास्ते पर चलें, तो यह बहुत बड़ा अपराध होता है। यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें अपने चरित्र और नैतिक मूल्यों को बनाए रखना चाहिए। इस केस में गवाहों और सबूतों की भूमिका बहुत अहम रही, जिससे साबित हुआ कि सच के साथ खड़े होने का साहस जरूरी है। न्याय में देरी हो सकती है, लेकिन अगर ईमानदारी से संघर्ष किया जाए, तो दोषियों को सजा मिलकर रहती है।
इस घटना से हमें सीख मिलती है कि हमें सही फैसले लेने चाहिए और एक ऐसा समाज बनाने की कोशिश करनी चाहिए जहां ईमानदारी और सच्चाई की अहमियत हो। ऐसी सच्ची घटनाओं से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। सुरक्षित रहें, सतर्क रहें, और हर कदम सोच-समझकर उठाएं।
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