तकनीक से उजागर हुआ वर्षों पुराना सच
क्या आप जानते हैं कि कोई अपराधी कितनी भी कोशिश करे, सच को छिपाना असंभव है? वक्त चाहे कितना भी गुज़र जाए, सच्चाई एक न एक दिन ज़रूर सामने आ जाती है। जैसे-जैसे समय बदल रहा है, इन्वेस्टिगेशन के तरीके भी आधुनिक होते जा रहे हैं। एजेंसियां अब मामलों की जांच में टेक्नोलॉजी, खासतौर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), का इस्तेमाल कर रही हैं। आज की यह कहानी भी एआई की ताकत और तकनीकी चमत्कार पर आधारित है, जिसने वर्षों पुराने एक ठंडे बस्ते में पड़े केस को फिर से जीवित कर दिया। यह कहानी एक मां की है, जिसने न्याय पाने के लिए दशकों तक इंतजार किया।
घटना की शुरुआत केरल के कोल्लम जिले के एक छोटे से अर्बन टाउन, अंचल, से होती है। यहां एरम नामक इलाके में एक किराए के घर में एक छोटा-सा परिवार रहता था। यह कहानी फरवरी 2006 की है, लेकिन 2025 में भी इसकी चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि इसमें छिपा सच आपको चौंका देगा। इस घर में बूढ़ी मां संथ मम्मा, उनकी 24 वर्षीय बेटी रंजनी और रंजनी की दो नवजात जुड़वा बेटियां, जो केवल 16-17 दिन की थीं, साथ रहते थे। बेटियों के जन्म से परिवार में खुशी का माहौल था। बच्चियों का नामकरण और बर्थ सर्टिफिकेट बनवाने की तैयारी चल रही थी।
10 फरवरी 2006 की सुबह करीब 11 बजे, संथ मम्मा पंचायत ऑफिस गईं ताकि जुड़वा नातिनों के बर्थ सर्टिफिकेट की जानकारी ले सकें। इस दौरान घर में केवल रंजनी और उनकी दोनों नवजात बेटियां थीं। लेकिन जब वह 11:30 बजे पंचायत ऑफिस से लौटकर घर पहुंचीं, तो दरवाजा बंद मिला। जैसे ही उन्होंने भिड़का हुआ दरवाजा खोलकर अंदर कदम रखा, लिविंग रूम की हालत देखकर उनके होश उड़ गए। वह चीखती-चिल्लाती बाहर दौड़ीं और पड़ोसियों को बुलाने लगीं। उनकी आवाज़ सुनकर आस-पड़ोस के लोग और वहां से गुजर रहे वार्ड मेंबर भी मौके पर पहुंचे।
जब सभी लोग घर के अंदर गए, तो दृश्य दिल दहला देने वाला था। लिविंग रूम में रंजनी रक्त से लथपथ फर्श पर पड़ी थीं। उनके शरीर के विभिन्न हिस्सों से खून बह रहा था, और गले पर गहरे कट के निशान थे। ऐसा लग रहा था जैसे किसी तेज धारदार हथियार से उन पर बेरहमी से हमला किया गया हो।
इस भयावह घटना ने पूरे इलाके को झकझोर दिया। लेकिन कैसे यह मामला दशकों बाद तकनीक की मदद से फिर से खुला और न्याय की उम्मीद जगी, यह जानना वाकई हैरान कर देने वाला है।
खौफनाक साजिश का सुराग: जुड़वा बेटियों और मां की हत्या
कुछ लोगों ने जब कमरे के अंदर झांककर देखा, तो दृश्य और भी भयावह था। बेड पर 17 दिनों की जुड़वा बेटियों के शव पड़े हुए थे। उनके गले पर भी गहरे कट के निशान थे। यह दिल दहला देने वाली घटना देखकर लोगों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी। जल्द ही अंचल थाने की पुलिस मौके पर पहुंची। बेटी और नवजात नातिनों की दशा देखकर संथ मम्मा बेहोश हो गईं। उन्हें तुरंत नजदीकी डॉक्टर के पास ले जाया गया।
इस बीच, पुलिस ने अपने सीनियर अधिकारियों को सूचित किया। उस समय के सर्कल इंस्पेक्टर (सीआई) मिस्टर सन ने जांच का नेतृत्व अपने हाथों में लिया। थाने में अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर उन्होंने अपनी टीम के साथ जांच शुरू कर दी। शव की स्थिति देखकर अनुमान लगाया गया कि हत्या घटना के एक से डेढ़ घंटे पहले हुई होगी, क्योंकि लिविंग रूम में खून अभी भी बह रहा था। पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दिया।
शुरुआती जांच में यह स्पष्ट हो गया कि यह हत्या लूटपाट के लिए नहीं की गई थी। घर से कोई कीमती सामान गायब नहीं था, और जबरदस्ती घुसने के भी कोई संकेत नहीं थे। यह 2006 का समय था, और ऊपर से यह घटना गांव में घटी थी। उस समय ऐसे इलाकों में सीसीटीवी कैमरे नहीं होते थे, और मोबाइल फोन भी हर किसी के पास नहीं थे। इसलिए, पुलिस को पुराने ढंग से जांच करनी पड़ी—गांव के लोगों से पूछताछ करना।
पुलिस ने आसपास के ग्रामीणों से पूछा कि क्या उन्होंने इस परिवार के घर के पास किसी अनजान व्यक्ति को आते-जाते देखा। यह मामला काफी गंभीर था, क्योंकि दिन के समय एक पूरे परिवार के तीन लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। इस घटना से गांव के लोग भी दहशत में आ गए थे।
जांच के दौरान पुलिस ने पाया कि इस परिवार के पड़ोस में एक और परिवार रहता था। उनसे पूछताछ के दौरान, उन्होंने बताया कि संथ मम्मा की चीख-पुकार सुनने से कुछ समय पहले उन्होंने एक टू-व्हीलर गाड़ी की आवाज सुनी थी। उस समय गांव में टू-व्हीलर या कारें बहुत कम हुआ करती थीं, और लोग अधिकतर साइकिल का इस्तेमाल करते थे। इसलिए, टू-व्हीलर की आवाज ने उनका ध्यान खींचा।
घर की तलाशी के दौरान पुलिस के हाथ एक आरसी बुक (रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट) लगी। यह एक महत्वपूर्ण सुराग था, क्योंकि यह दस्तावेज किसी वाहन के मालिक की जानकारी देता है। यह सुराग इस खौफनाक हत्या के रहस्य को सुलझाने की दिशा में पहला बड़ा कदम साबित हो सकता था।
अधूरी उम्मीदें और टूटा विश्वास: रंजनी की दर्दभरी दास्तान
संथ मम्मा, जो रंजनी की मां थीं, जब होश में आईं तो पुलिस ने उनसे पूछताछ शुरू की। रंजनी पहले कोल्लम के अल मोन इलाके में रहती थी, जहां वह पढ़ाई करती और छोटे-मोटे काम भी करती थी। संथ मम्मा और उनके पति का काफी समय पहले तलाक हो चुका था। तलाक के बाद, पति ने संथ मम्मा और बच्चों को घर से निकाल दिया और किसी और से शादी कर ली। इसके बाद, संथ मम्मा ने अकेले ही मेहनत-मज़दूरी करके अपने बच्चों को पाला और पढ़ाया। बड़ी बेटी के साथ वह रनाकुलम में रहती थीं, जबकि छोटी बेटी रंजनी अल मोन में रहकर अपनी ज़िंदगी संवारने की कोशिश कर रही थी।
रंजनी जहां रहती थी, वहीं पड़ोस में दिबल कुमार नाम का एक युवक भी रहता था, जो भारतीय सेना में जवान था और पंजाब के पठानकोट आर्मी कैंप में पोस्टेड था। जब भी वह छुट्टियों में घर आता, तो रंजनी से उसकी मुलाकात होती। धीरे-धीरे उनकी बातचीत दोस्ती में बदल गई, और यह दोस्ती जल्द ही प्यार का रूप ले बैठी।
रंजनी अपनी मौसी ललितम्मा, जो कन्ननलोर में रहती थीं, से बहुत करीब थी और अपनी हर बात उनके साथ साझा करती थी। 2005 के सितंबर-अक्टूबर के महीने में रंजनी ने अपनी मौसी को बताया कि वह छह महीने की गर्भवती है। यह सुनकर मौसी हैरान रह गईं। रंजनी ने खुलासा किया कि उसके गर्भ में पलने वाला बच्चा दिबल कुमार का है। उसे भी यह तब पता चला जब उसकी बॉडी में बदलाव दिखाई देने लगे।
रंजनी ने यह बात दिबल कुमार से साझा की और कहा कि अब उन्हें शादी कर लेनी चाहिए। उसे उम्मीद थी कि दिबल उससे शादी करेगा और वे बच्चे के साथ खुशहाल जीवन बिताएंगे। लेकिन दिबल ने शादी करने से साफ इनकार कर दिया और कहा कि उसे यह बच्चा नहीं चाहिए। उसने रंजनी पर गर्भपात का दबाव डालना शुरू कर दिया।
बिना शादी के गर्भवती होने की बात रंजनी के लिए समाज में बदनामी का कारण बन सकती थी, इसलिए यह बात चुपचाप रखी गई। लेकिन रंजनी को अपनी मां संथ मम्मा को यह सब बताना पड़ा। पहले तो संथ मम्मा को इस पर विश्वास नहीं हुआ। वह तुरंत रनाकुलम से भागकर रंजनी के पास आईं। उन्होंने अपनी बेटी पर गुस्सा जताया और दिबल कुमार की हरकतों से बेहद नाराज़ हुईं। उन्हें लगा कि दिबल ने झूठे वादे करके रंजनी का शारीरिक शोषण किया है।
संथ मम्मा गुस्से में दिबल के घर गईं और उसके परिवार से बात की। लेकिन उस समय दिबल अपनी ड्यूटी पर पठानकोट में था। उल्टा, दिबल के परिवार ने रंजनी के कैरेक्टर पर सवाल उठाने शुरू कर दिए और उसे बदनाम करने की कोशिश की। धीरे-धीरे यह मामला गांव में फैल गया, और लोग रंजनी के बारे में भला-बुरा कहने लगे। इस बदनामी से बचने के लिए मां-बेटी को थिरुवनंतपुरम जाना पड़ा।
दिबल कुमार ने न सिर्फ शादी करने से इनकार किया, बल्कि वह अपने घर लौटकर भी नहीं आया। उसके परिवार ने संथ मम्मा और रंजनी को धमकियां देनी शुरू कर दीं। दिबल का कहना था कि बच्चा गिरा दिया जाए। यहां तक कि संथ मम्मा ने भी रंजनी से कहा कि बच्चा रखना मुश्किल होगा और उसे गर्भपात करना चाहिए। लेकिन रंजनी ने अपनी मां और समाज की परवाह किए बिना बच्चे को जन्म देने का फैसला किया। वह अपने बच्चे को पालना और एक नई ज़िंदगी देना चाहती थी।
रंजनी का यह संघर्ष उसके टूटे हुए सपनों और समाज की कठोरता की एक मार्मिक कहानी है, जो आज भी इंसाफ की गुहार लगा रही है।
अनजान मददगार और एक नई शुरुआत
जब रंजनी की गर्भावस्था छह से सात महीने तक पहुंच गई, तो मां-बेटी डॉक्टर के पास चेकअप के लिए गईं। डॉक्टर ने बताया कि अब गर्भपात करना सुरक्षित नहीं होगा क्योंकि बहुत देर हो चुकी थी। यह भी पता चला कि रंजनी जुड़वा बच्चों की मां बनने वाली है। डॉक्टर ने डिलीवरी की संभावित तारीख भी बता दी। इस खबर से संथ मम्मा का दिल पिघल गया। उन्होंने रंजनी का पूरा साथ देने का फैसला किया और उसे गृहनगर से दूर तिरुवनंतपुरम के एसटी हॉस्पिटल में एडमिट करवाया।
हॉस्पिटल में दाखिल होने के कुछ समय बाद, एक अजनबी व्यक्ति रंजनी और संथ मम्मा के पास आया। उसने रंजनी से कहा कि यदि डिलीवरी के समय खून की ज़रूरत पड़ेगी, तो वह अपना खून देने के लिए तैयार है। यह व्यक्ति बेहद फ्रेंडली तरीके से दोनों के साथ घुल-मिल गया और हरसंभव मदद करने लगा। डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाइयां खरीदने से लेकर छोटी-मोटी जरूरतें पूरी करने तक, वह हर चीज का ध्यान रख रहा था।
रंजनी और संथ मम्मा ने उससे पूछा कि वह कौन है और इतनी मदद क्यों कर रहा है। उसने अपना नाम अनिल कुमार बताया और कहा कि वह कोल्लम का रहने वाला है। उसने यह भी कहा कि वह हॉस्पिटल किसी काम से आया था, लेकिन उन्हें देखकर अपनापन महसूस हुआ और उनकी मदद करने का मन बना लिया। इस तरह, अनिल और रंजनी के बीच एक दोस्ती की शुरुआत हुई।
24 जनवरी 2006 को, रंजनी ने जुड़वा बेटियों को जन्म दिया। डिलीवरी बिना किसी कॉम्प्लिकेशन के पूरी हुई, और खून की ज़रूरत भी नहीं पड़ी। यह खुशी का पल था। अनिल ने रंजनी और संथ मम्मा को हर तरह से सहयोग का भरोसा दिया। इस दौरान, रंजनी और उसकी मां ने अनिल को अपनी जिंदगी की पूरी कहानी सुनाई—कैसे सेना के जवान दिबल कुमार ने शादी का वादा करके रंजनी का शारीरिक शोषण किया और फिर उसे अकेला छोड़कर भाग गया।
बच्चों के जन्म के बाद, रंजनी और संथ मम्मा वापस अपने गांव कोल्लम लौटने की योजना बना रही थीं। लेकिन अनिल ने उन्हें सुझाव दिया कि वहां मत जाइए, क्योंकि लोग जुड़वा बेटियों के जन्म को लेकर रंजनी पर और भी सवाल उठाएंगे। अनिल ने कहा कि यह बदनामी मां और बच्चों की परवरिश पर बुरा असर डालेगी। उन्होंने कहीं और जाकर नई जिंदगी शुरू करने का सुझाव दिया।
संथ मम्मा ने अनिल की बात मानी और कोल्लम से कुछ किलोमीटर दूर अंचल नामक गांव में एक किराए का मकान लिया। कहा जाता है कि इस मकान को दिलाने में भी अनिल ने मदद की थी। हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने के बाद, रंजनी और उसकी मां सीधे उसी मकान में आ गईं।
इस बीच, समाज रंजनी के खिलाफ बातें बना रहा था। कुछ लोग कह रहे थे कि वह दिबल कुमार को बदनाम करने के लिए यह सब कर रही है क्योंकि दिबल ने शादी करने से मना कर दिया था। लेकिन इन आरोपों के बीच, रंजनी ने अपनी बेटियों को पालने और एक नई शुरुआत करने का फैसला किया। अनिल उनके जीवन में एक मददगार बनकर सामने आया, जिसे संथ मम्मा ने ऊपरवाले का भेजा हुआ “फरिश्ता” मान लिया।
आरोप, उम्मीद और शक का जाल
झूठे आरोपों और समाज की बदनामी से परेशान होकर रंजनी और उसकी मां संथ मम्मा ने मिलकर केरल वूमन राइट्स कमीशन में एक एप्लीकेशन लिखकर न्याय की गुहार लगाई। उन्होंने शिकायत में कहा कि बच्चों का पिता दिबल कुमार उन्हें अपनाने से इंकार कर रहा है। अब ऐसे में बच्चों की परवरिश कैसे होगी? रंजनी ने साफ किया कि दिबल ही बच्चों का असली पिता है, और इस बात को साबित करने के लिए उसका डीएनए टेस्ट होना चाहिए। यह कदम समाज के दबाव के कारण उठाना पड़ा, जबकि रंजनी खुद अकेले ही बच्चों को पालने के लिए तैयार थी। दिबल के परिवार वाले भी रंजनी के चरित्र पर सवाल उठा रहे थे, जो इस पूरे मामले को और अधिक जटिल बना रहा था।
फरवरी 2006 के शुरुआती हफ्तों में केरल स्टेट वूमन राइट्स कमीशन ने दिबल कुमार का डीएनए टेस्ट कराने का आदेश जारी किया। अगर टेस्ट में यह साबित होता कि दिबल ही बच्चों का पिता है, तो उसे बच्चों की जिम्मेदारी उठानी पड़ती। इस दौरान, हॉस्पिटल में रंजनी और संथ मम्मा से मिलने वाला अनिल कुमार भी उनके साथ था। वह अक्सर उनके घर आता-जाता था और हर तरह से मदद करने की कोशिश करता था। हालांकि, अनिल धीरे-धीरे रंजनी के करीब जाने की कोशिश करने लगा, लेकिन एक बार धोखा खा चुकी रंजनी ने उसे साफ-साफ मना कर दिया। अनिल ने भी इसे समझा और दोस्ती के नाते परिवार का साथ देना जारी रखा।
10 फरवरी 2006 को, जब संथ मम्मा पंचायत ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रही थीं, उसी समय अनिल कुमार घर पर आया। चौखट पर दोनों के बीच थोड़ी बातचीत हुई। अनिल ने कहा कि उसे भी कुछ काम है और वह थोड़ी देर में वापस आएगा। इसके बाद वह स्कूटर पर निकल गया। उन दिनों स्कूटर ही मुख्य यातायात साधन हुआ करते थे।
जब 11:30 बजे संथ मम्मा वापस घर लौटीं, तो उन्होंने रंजनी और उसकी जुड़वा बेटियों के शव देखकर चीख-पुकार मचा दी। पुलिस को इस मामले में सबसे पहला शक दिबल कुमार पर गया। रंजनी ने उसके खिलाफ डीएनए टेस्ट के लिए शिकायत दर्ज करवाई थी, और फैसला भी दिबल के खिलाफ आया था। यह माना गया कि शायद इसी वजह से दिबल ने गुस्से में आकर हत्या कर दी हो।
दूसरा शक अनिल कुमार पर गया, जो रंजनी से अचानक हॉस्पिटल में मिला था और धीरे-धीरे उसके जीवन में काफी करीब आ गया था। अंचल गांव के आस-पड़ोस के लोगों ने भी अनिल को अक्सर रंजनी के घर आते-जाते देखा था। लेकिन पुलिस को जल्द ही पता चला कि हत्या वाले दिन दिबल कुमार पठानकोट में अपनी ड्यूटी पर था। ऐसे में उसकी मौजूदगी अंचल में कैसे साबित होगी? यह सवाल अब जांच का मुख्य बिंदु बन गया।
पुलिस की जांच में आरसी बुक से बड़ा सुराग
रंजनी और उसके बच्चों की हत्या के मामले में पुलिस को क्राइम सीन से केवल एक आरसी बुक मिली। पहले तो इसे मामूली सबूत समझा गया, लेकिन यही कागज की पुड़िया जांच को एक नई दिशा देने वाली थी। आरसी बुक को लेकर पुलिस रीजनल ट्रैफिक ऑफिस पहुंची, जहां से जानकारी मिली कि यह गाड़ी हाल ही में बिक चुकी थी। गाड़ी के पूर्व मालिक ने इसे बेचने के दौरान सारे डॉक्यूमेंट्स सेकंड-हैंड व्हीकल डीलर को सौंप दिए थे।
पुलिस श्रीकरियम नामक एक रीसेल शॉप पर पहुंची, जहां यह गाड़ी बेची गई थी। शॉप के स्टाफ ने बताया कि गाड़ी खरीदने दो आदमी आए थे। इनमें से एक गोरा और साफ-सुथरे लुक वाला था, जबकि दूसरा दाढ़ी वाला। शॉप के कर्मचारी ने यह भी कहा कि गाड़ी खरीदने के बाद दाढ़ी वाला आदमी एक बार फिर शॉप पर आया और एक लड़के को पंचर बनवाने के लिए अपने साथ ले गया।
पुलिस को अब उस लड़के से पूछताछ करनी थी, लेकिन वह शॉप पर मौजूद नहीं था। उन दिनों मोबाइल फोन आम नहीं थे, जिससे उसे बुलाना भी संभव नहीं था। पुलिस को लड़के का इंतजार करना पड़ा।
दिबल कुमार की तलाश
पुलिस ने दूसरी ओर दिबल कुमार के घर पर दबिश दी। रंजनी की मां संथ मम्मा द्वारा दिए गए पते के अनुसार, पुलिस को पता चला कि दिबल कई दिनों से घर नहीं आया था। उसके परिवार ने भी सहयोग नहीं किया। जांच में यह भी सामने आया कि दिबल पठानकोट से अप्रैल तक की छुट्टी लेकर गायब था।
पुलिस को जैसे-तैसे यह पता चला कि हाल ही में दिबल ने किसी शादी में हिस्सा लिया था, जहां ग्रुप फोटो खींचे गए थे। इन्हीं फोटो से पुलिस को दिबल की पहचान का एकमात्र सुराग मिला।
पंचर बनाने वाला लड़का और एटीएम का सुराग
श्रीकरियम शॉप पर इंतजार के बाद पुलिस को वह पंचर बनाने वाला लड़का मिल गया। उसने बताया कि दाढ़ी वाला आदमी उसे उल्लूर केशवदास पुरम रोड पर एक एटीएम के पास ले गया था, जहां उसने पैसे निकाले और फिर पंचर बनवाने चला गया।
यह जानकारी महत्वपूर्ण थी। सीआई नवास ने एटीएम से निकाले गए पैसों की ट्रांजैक्शन डिटेल्स निकलवाईं। हजारों ट्रांजैक्शन की जांच के बाद, पुलिस को पठानकोट के एक बैंक अकाउंट का पता चला। इस अकाउंट से उल्लूर एटीएम से पैसे निकाले गए थे, और यही अकाउंट नागपुर, नासिक, दिल्ली, और अन्य जगहों पर भी सक्रिय था।
राजेश कुमार का नाम आया सामने
इस अकाउंट का नाम था राजेश कुमार। पुलिस को याद आया कि दिबल कुमार भी पठानकोट में पोस्टेड था। आगे की जांच में यह सामने आया कि राजेश कुमार कन्नूर के श्रीकंदपुरम का रहने वाला था और आर्मी का जवान था।
अब पुलिस के पास दो नाम थे—दिबल कुमार और राजेश कुमार। दोनों ही सेना से जुड़े थे और पठानकोट में पोस्टेड थे। यह जांच के लिए एक बड़ा मोड़ था, क्योंकि पैसे की ट्रांजैक्शन और आरसी बुक दोनों की कड़ियां इन्हीं दो व्यक्तियों की ओर इशारा कर रही थीं।
पुलिस को अब राजेश कुमार की पहचान और उसकी गतिविधियों की पूरी जानकारी निकालनी थी। जांच ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि कत्ल से पहले पैसे की निकासी उल्लूर और उसके आस-पास से हो रही थी, लेकिन कत्ल के बाद यह ट्रांजैक्शन अन्य जगहों—नागपुर, नासिक, और दिल्ली में होने लगीं।
अब सवाल यह था कि राजेश कुमार का इस हत्याकांड में क्या रोल था? और क्या वह दिबल कुमार से जुड़ा हुआ था? पुलिस के पास अब कई धागे थे, जिन्हें जोड़ने का काम शुरू हो गया।
दिबल और राजेश का कनेक्शन और जांच में नया खुलासा
जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि दिबल कुमार और राजेश कुमार दोनों सेना में थे और एक ही रेजिमेंट में पोस्टेड थे। जनवरी 2006 से ही राजेश छुट्टी पर था, और दोनों गायब हो चुके थे। जब आर्मी अधिकारियों से संपर्क किया गया, तो पता चला कि मार्च 2006 में इन्हें डेज़र्टर (सेना छोड़कर भागने वाला) घोषित कर दिया गया था।
आर्मी ने राजेश की तस्वीर पठानकोट से केरल पुलिस को भेजी। जैसे ही पुलिस ने राजेश की फोटो संथ मम्मा को दिखाई, वह हैरान रह गईं। उन्होंने तुरंत पहचान लिया कि यह वही आदमी था जो अनिल कुमार के नाम से अस्पताल में मिला था और परिवार की मदद करता था।
राजेश की असलियत का खुलासा
संथ मम्मा को अब समझ में आया कि राजेश, जो खुद को अनिल कुमार कहता था, असल में दिबल का दोस्त था। उसने जानबूझकर रंजनी के करीब जाने की कोशिश की और उसे अपने साथ कहीं और ले जाने का सुझाव दिया। दरअसल, यह सब रंजनी और बच्चों की हत्या की साजिश का हिस्सा था।
10 फरवरी 2006 को संथ मम्मा पंचायत ऑफिस जाने की तैयारी कर रही थीं। उसी समय, राजेश उर्फ अनिल कुमार उनके घर पर आया था और काम का बहाना बनाकर चला गया। बाद में संथ मम्मा ने महसूस किया था कि कोई उनकी बात सुन रहा था। उन्हें अब समझ आया कि राजेश ने उसी वक्त रंजनी को अकेला पाकर उसकी हत्या की होगी।
डीएनए टेस्ट और हत्या की पुष्टि
पोस्टमॉर्टम के दौरान डॉक्टर ने जुड़वा बच्चों की डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए सैंपल्स सुरक्षित रख लिए थे। कोर्ट से आदेश आया कि दिबल कुमार का डीएनए टेस्ट कराया जाए। यह टेस्ट राजीव गांधी सेंटर ऑफ बायोटेक्नोलॉजी में होना था, जिससे यह तय हो सकता था कि बच्चे दिबल के हैं या नहीं।
लेकिन दिबल फरार था, और पुलिस को उसे पकड़ना था। यह भी स्पष्ट हुआ कि यदि डीएनए मैच हो गया, तो दिबल को बच्चों और रंजनी का पूरा खर्च उठाना पड़ता। यही वजह थी कि उसने अपने दोस्त राजेश की मदद से हत्या की योजना बनाई।
फरार संदिग्ध और पुलिस की नाकामी
दिबल और राजेश, दोनों संदिग्ध, गायब हो चुके थे। पुलिस ने दोनों को ढूंढने के लिए हर संभव कोशिश की। उनके परिवारों पर नजर रखी गई, उनके संपर्कों की जांच हुई, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। समय बीतता गया और 2006 से 2010 तक पुलिस इनका पता लगाने में असफल रही।
केस सीबीआई को सौंपा गया
2010 में संथ मम्मा ने केरल हाई कोर्ट में यह केस सीबीआई को सौंपने की अपील की। कोर्ट ने फरवरी 2010 में केस को सीबीआई के हवाले कर दिया।
सीबीआई की जांच में वही थ्योरी सामने आई जो पुलिस की थी—दिबल कुमार डीएनए टेस्ट से बचने के लिए रंजनी और बच्चों की हत्या करवाना चाहता था। डीएनए मैच होने पर उसे बच्चों का खर्च उठाना पड़ता, जिससे बचने के लिए उसने अपने दोस्त राजेश की मदद ली।
अब सीबीआई की टीम ने भी दिबल और राजेश को खोजने की कोशिश शुरू कर दी। मामले की गहराई में जाकर यह पता लगाने की कोशिश की गई कि आखिर ये दोनों कहां छिपे हैं।
क्या होगा अगला कदम?
दिबल और राजेश की फरारी ने मामले को और उलझा दिया। हालांकि, पुलिस और सीबीआई दोनों की जांच ने यह साफ कर दिया कि हत्या एक सोची-समझी साजिश थी। सवाल यह था कि क्या सीबीआई इन दोनों संदिग्धों को पकड़ पाएगी? जांच का अगला कदम इन्हीं दो मुख्य आरोपियों की गिरफ्तारी पर टिका था।
20 साल बाद: रंजनी और बच्चों के कातिलों को न्याय के कटघरे तक लाने की कहानी
सीबीआई ने दिबल कुमार और राजेश कुमार को पकड़ने के लिए वर्षों की मेहनत और नई तकनीकों का सहारा लिया। पहले पुलिस ने इन पर ₹50,000 का इनाम रखा था, जिसे सीबीआई ने बढ़ाकर ₹2 लाख कर दिया। 2013 में, एरनाकुलम कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई, लेकिन दोनों आरोपी फरार थे। केस ठंडा पड़ने लगा, और 2013 से 2023 के बीच इस पर कोई प्रगति नहीं हुई।
2023-24 में केरला के एडीजीपी लॉ एंड ऑर्डर मनोज अब्राहम ने पुरानी फाइलें फिर से खंगालने का फैसला किया। जब रंजनी और बच्चों के हत्या का मामला सामने आया, तो उन्होंने इसे सुलझाने की ठानी। उनकी टीम ने नई तकनीकों और एआई टूल्स की मदद से दोनों आरोपियों की पुरानी तस्वीरों को एडिट किया, यह देखने के लिए कि 19 साल बाद वे कैसे दिख सकते हैं। इन फोटोज को सोशल मीडिया और अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर रिवर्स सर्च किया गया।
कई महीनों की मेहनत के बाद नवंबर-दिसंबर 2024 में एक सोशल मीडिया अकाउंट पर एक फोटो मिला, जो एआई से बनाए गए फोटो से 90% मेल खाता था। इस सुराग ने चेन्नई यूनिट को अलर्ट किया। सीबीआई ने गुप्त निगरानी के दौरान एक व्यक्ति को “राजेश” नाम से पुकारा, और जब वह पलटकर देखता है, तो पुष्टि हो जाती है कि वह राजेश कुमार है। 4 जनवरी 2025 को राजेश और दिबल दोनों को गिरफ्तार किया गया। पूछताछ में दोनों ने जुर्म कबूल कर लिया।
जांच में पता चला कि दोनों ने हत्या के बाद अपनी पहचान बदल ली थी। दिबल “विष्णु” और राजेश “प्रवीण” बन गए थे। उन्होंने पॉन्डिचेरी में नया जीवन शुरू किया, नए आधार कार्ड और पैन कार्ड बनवाए, और इंटीरियर डिजाइनिंग का बिज़नेस खोला। दोनों ने शादी की, और उनकी पत्नियां स्कूल टीचर थीं।
जब लोकल पुलिस ने संथ मम्मा को आरोपियों की गिरफ्तारी की सूचना दी, तो वह मंदिर में थीं। यह खबर सुनकर वह रोने लगीं। उन्होंने वर्षों तक मंदिर में प्रार्थना की थी कि उनकी बेटी और मासूम बच्चों के कातिल पकड़े जाएं। अब 20 साल बाद, उनके कातिल सलाखों के पीछे हैं। सीबीआई ने आरोपियों को जेल भेज दिया है, और जल्द ही उन पर मुकदमा चलेगा।
आप इस मामले के बारे में क्या सोचते हैं? अपनी राय कमेंट में बताएं।
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