चंद्रवीर हत्याकांड: पत्नी और देवर ने मिलकर की जघन्य हत्या
गाजियाबाद के थाना नंदग्राम के गांव सिकरोड का रहने वाला चंद्रवीर आज बेहद खुश था। उसने अपनी पैतृक जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा अच्छे दामों में एक बनिए को बेच दिया था। बनिया वहां दुकान बनाना चाहता था, लेकिन अब इससे चंद्रवीर को कोई फर्क नहीं पड़ता था। नोटों की गड्डी अंगोछे में बांधकर और देसी दारू की बोतल अंटी में खोंसकर वह मस्त चाल में अपने घर की ओर लौट रहा था। घर के पास पहुंचते ही उसने अपने पड़ोसी अरुण को बुलाया, जो दुबला-पतला, गोरे रंग का एक नौजवान था। अरुण ने चंद्रवीर के चेहरे की खुशी देखकर तुरंत भांप लिया कि वह जमीन बेचने में कामयाब हो गया है। चंद्रवीर ने उसे बाजार से चिकन लाने के लिए पैसे थमाए और जल्दी वापस आने को कहा, क्योंकि घर में आज दावत का माहौल बनने वाला था।
चिकन खरीदने के लिए अरुण तेज़ी से मुरगा मंडी की ओर चला गया, और चंद्रवीर अपने घर के अंदर दाखिल हो गया। बैठक में पहुंचकर उसने अपनी पत्नी सविता को बुलाया, जो घर के कामकाज में व्यस्त थी। सविता, जो गेहुंए रंग और भरी-भरी काया वाली महिला थी, उम्र के बावजूद अपनी खूबसूरती से जवां नजर आती थी। चंद्रवीर ने सविता को एक लाख रुपए थमाते हुए कहा कि वह इन पैसों को संभाल ले और अपने लिए नए कपड़े और गहने खरीद ले। साथ ही उसने बताया कि उसने अपने शौक के लिए कुछ पैसे अलग रखे हैं और अरुण चिकन लेने बाजार गया है।
सविता ने कुछ पुरानी बातों को लेकर हल्की नाराजगी जताई, लेकिन चंद्रवीर ने उसे समझा दिया कि ऐसी छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है। उसने सविता से कहा कि पैसे सुरक्षित रख ले और साथ ही चिकन के लिए मसाले भी तैयार कर ले। आज का दिन उनके लिए खास था, और चंद्रवीर ने तय कर लिया था कि वह इस खुशी को पूरी तरह से जीएगा। जीवन के छोटे-छोटे पलों को भरपूर आनंद से जीने का यह चंद्रवीर का अपना तरीका था।
सविता की शर्म और अरुण की नज़रों का बोझ
सविता ने चंद्रवीर से मिले रुपए लिए और सीधे अपने बैडरूम में चली गई। वहां एक संदूक रखा था, जिसमें उसने रुपए संभालकर रख दिए। इसके बाद वह किचन की ओर बढ़ी, लेकिन उसके दिल और दिमाग में एक अजीब सी उथल-पुथल मची हुई थी। आज उसने चंद्रवीर से झूठ बोला था और बड़ी सफाई से बात को घुमा दिया था। असल में, सच्चाई कुछ और ही थी।
दोपहर में जब सविता घर के आंगन में लगे हैंडपंप पर नहाने बैठी थी, तो उसने अपने कपड़े उतारकर उन्हें धोने के लिए अलग रख दिया था। तेज धूप में खुले आंगन में नहाना उसे हमेशा अच्छा लगता था। उसकी पीठ चारदीवारी के दरवाजे की तरफ थी, और वह अपनी देह को मलने में मग्न थी। उसे इस बात की खबर नहीं थी कि उसका देवर अरुण कब चुपचाप आंगन में आ गया और उसे नहाते हुए देखने लगा। अरुण की निगाहें उसके नग्न शरीर पर जमी थीं, और उसके चेहरे पर एक अजीब सी वासना भरी चमक थी।
सविता को तब तक कुछ पता नहीं चला, जब तक वह तौलिया उठाने के लिए खड़ी नहीं हुई। जैसे ही उसने पीछे मुड़कर देखा, उसकी नजर अरुण पर पड़ी। वह बुरी तरह घबरा गई। तुरंत तौलिया उठाकर अपने शरीर पर लपेटा और कमरे की ओर भागी। अरुण उसकी इस हड़बड़ाहट को देखकर खिलखिला कर हंस पड़ा। सविता ने कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लिया। अंदर पहुंचने के बाद उसकी सांसें तेज़ी से चल रही थीं।
कमरे के अंदर तौलिया उसके हाथ से गिर पड़ा, और उसने खुद को शीशे में देखा। उसे एहसास हुआ कि उसका नग्न शरीर किसी और की आंखों ने देखा है। यह सोचकर वह शर्म और घबराहट से भर गई। अरुण की आंखों में झलकती वासना उसे झकझोर गई थी। उसे लगा, अगर वह क्षण भर भी और आंगन में रुकती, तो अरुण उसे काबू में कर लेता।
अरुण भले ही चचिया ससुर का लड़का था, लेकिन आखिरकार वह एक मर्द था। यह सविता की जिंदगी का पहला मौका था, जब उसके पति चंद्रवीर के अलावा किसी और मर्द ने उसे इस हालत में देखा था। उस घटना के बाद वह काफी देर तक कमरे में बैठी अपनी सांसों को सामान्य करने की कोशिश करती रही। जब उसने दरवाजा खोलकर बाहर झांका, तो अरुण जा चुका था। उसे थोड़ी राहत मिली, लेकिन उसकी शर्म और बेचैनी खत्म नहीं हुई।
उसके मन में लगातार यही सवाल गूंज रहा था कि आखिर गलती किसकी थी। अगर उसने आंगन में नहाने से पहले दरवाजा बंद कर लिया होता, तो यह सब नहीं होता। लेकिन फिर उसे यह भी लगा कि अरुण को तुरंत वहां से हट जाना चाहिए था, बजाय इसके कि वह उसे घूरता रहता। सारा दिन यही सोच-सोचकर सविता खुद को शर्मसार महसूस करती रही। अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि जब अगली बार अरुण से सामना होगा, तो वह उसकी आंखों में कैसे देखेगी।
सविता और अरुण: एक जटिल एहसास की शुरुआत
सविता सारा दिन इसी उधेड़बुन में रही कि अरुण से नजरें कैसे मिलाए। उसने तय कर लिया था कि कम से कम दो-चार दिन तक वह उसके सामने नहीं जाएगी। लेकिन चंद्रवीर ने अरुण को शराब की दावत देकर चिकन लाने बाजार भेज दिया था, जिससे अब अरुण का घर आना तय था। सविता का दिल, जिसे उसने दोपहर में बड़ी मुश्किल से काबू किया था, फिर से तेजी से धड़कने लगा।
रसोई में काम करते हुए सविता पूरी तरह सामान्य नहीं थी। वह खुद को व्यस्त रखने की कोशिश कर रही थी, लेकिन दिमाग में अरुण की छवि बार-बार उभर रही थी। तभी चंद्रवीर की आवाज उसके कानों में पड़ी, जो बता रहा था कि अरुण चिकन ले आया है। सविता ने जानबूझकर किचन से ही मना कर दिया कि वह बाहर नहीं आएगी। चंद्रवीर खुद थैला उठाकर लाया और बाकी चीजें लेकर बाहर चला गया।
सविता ने जैसे-तैसे खाना तैयार किया। जब चंद्रवीर ने उसे खाना लाने को कहा, तो उसने थाली में भोजन सजाया और बैठक में गई। अपने सिर पर चुन्नी इस तरह खींच ली कि अरुण से नजरें मिलाने की नौबत ही न आए। जब उसने थालियां उनके सामने रखीं, तो उसके हाथ कांप रहे थे। उसका दिल बुरी तरह धड़क रहा था, और सांसें तेज चल रही थीं। उसने चोर नजरों से देखा कि अरुण उसकी तरफ बेशर्मी से मुस्कुरा रहा था। सविता तुरंत वहां से बाहर आ गई।
रात के 10 बजे तक चंद्रवीर और अरुण की दावत खत्म हुई, और जब अरुण चला गया, तो सविता ने राहत की सांस ली। लेकिन उसके भीतर एक फैसला पक चुका था। अगली सुबह, जब चंद्रवीर काम पर चला गया, तो सविता ने अरुण के घर का रुख किया। वह रात में ही तय कर चुकी थी कि अरुण से उसकी हरकत के लिए सख्ती से बात करनी होगी।
अरुण के घर का दरवाजा आधा खुला था। सविता ने धक्का दिया और सीधे अंदर चली गई। अरुण उस समय बिस्तर पर लेटा टीवी देख रहा था। उसे देख, वह घबराकर उठ बैठा। सविता ने बिना किसी भूमिका के उससे तीखे स्वर में सवाल किया कि उसने ऐसी बेहूदा हरकत क्यों की। अरुण ने पहले अनजान बनने की कोशिश की, लेकिन फिर बेशर्मी से मुस्कुराते हुए उसकी खूबसूरती की तारीफ करने लगा। उसने कहा कि सविता इतनी हसीन है कि चाहकर भी वह अपनी नजरें हटा नहीं सका।
सविता उसकी बात सुनकर अचकचा गई। अरुण की बातों ने उसे विचलित कर दिया। वह आगे बढ़ता गया, उसकी सुंदरता और गदराए यौवन की तारीफें करता रहा। उसने यहां तक कहा कि वह मूर्ख नहीं है, और अगर वह उसकी किस्मत में होती, तो वह उसे सिंहासन पर बैठाकर पूजता। सविता उसकी बातों से मंत्रमुग्ध हो गई। उसकी तारीफें सुनकर वह रोमांचित हो उठी।
अरुण की बातें उसके दिल को अजीब सी खुशी दे रही थीं। सविता को लगा कि अरुण वास्तव में उससे शिद्दत से प्यार करता है। वह उसकी चाहत का प्यासा है, और उसकी बातें सविता के मन में हलचल मचा रही थीं। अरुण के शब्दों ने उसके भीतर एक नई भावना जगा दी थी—एक ऐसा एहसास, जो उसे लंबे समय बाद किसी के आकर्षण का केंद्र होने का अहसास करा रहा था।
मोह का बंधन: रिश्तों की मर्यादा से परे
सविता अरुण को डांटने और उसकी हरकत पर सख्त बात करने आई थी, लेकिन उसकी बातों ने उसे पूरी तरह मोहपाश में बांध लिया। अरुण के शब्दों में छिपे इश्क और दीवानगी ने सविता को निरुत्तर कर दिया। जब वह कुछ कह नहीं पाई, तो अरुण ने उसकी कलाई थाम ली और उसकी हथेली अपने सीने पर रख दी। दीवानगी से भरे स्वर में उसने कहा कि उसका दिल बरसों से सिर्फ सविता को चाहता है।
सविता, जो अभी तक खुद को संभाले हुए थी, अचानक उसकी बातों में बह गई। उसने आंखें बंद कर धीमे से पूछा, ‘‘तो पहले क्यों नहीं कहा?’’ अरुण ने जवाब दिया कि वह डरता था। उसे चिंता थी कि सविता उसे गलत न समझे, क्योंकि वह चंद्रवीर की अमानत थी। लेकिन अब, अपनी भावना के भार से दबा, उसने सविता को सबकुछ बता दिया।
अरुण का स्पर्श और उसके प्रेम से भरे शब्द सविता को मदहोश कर रहे थे। जब उसने कहा कि उसका दिल उसे पूरी तरह से पाना चाहता है, तो सविता खुद को रोक नहीं पाई। आंखें बंद कर, उसने फुसफुसाते हुए अरुण को इजाजत दे दी। अरुण ने बिना किसी झिझक के उसे अपनी बाहों में भर लिया। उस पल में देवर-भाभी के रिश्ते की पवित्र दीवार ढह गई।
जब सविता अरुण के कमरे से बाहर निकली, तो उसका गुस्सा और आक्रोश मानो कपूर की तरह उड़ चुका था। जिस अरुण ने उसे नहाते हुए नग्न अवस्था में देखा था, वही अरुण अब उसके तन-मन पर छा चुका था। सविता के चेहरे पर खुशी थी—एक ऐसी खुशी, जो उसे लंबे समय बाद महसूस हुई। अब उसने अपने पति चंद्रवीर के साथ अपने दिल में अरुण के लिए भी जगह बना ली थी।
यह घटना 2017 की है, जब सविता ने अपने जीवन के सबसे बड़े मोड़ का सामना किया। रिश्तों की मर्यादा और सामाजिक बंधनों से परे, उसने अपने दिल की बात सुनी और अपनी इच्छाओं को अपना लिया।
लापता चंद्रवीर: एक परिवार की चिंता और तलाश
42 वर्षीय चंद्रवीर, जिसने अपने हिस्से की पैतृक संपत्ति के सहारे अपने परिवार की जरूरतें पूरी कर रखी थीं, अचानक एक दिन लापता हो गया। अपनी पत्नी सविता और बेटी दीपा (काल्पनिक नाम) के साथ वह एक सादा लेकिन संतुष्ट जीवन जी रहा था। पैतृक संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा चंद्रवीर के पास था, और वह इसे धीरे-धीरे बेचकर अपने परिवार की गृहस्थी को सुचारु रूप से चला रहा था।
28 सितंबर, 2018 की सुबह, चंद्रवीर खेत का एक बड़ा हिस्सा बेचने के इरादे से घर से निकला। लेकिन जब शाम ढल गई और अंधेरा हर तरफ फैल गया, तो सविता की चिंता बढ़ने लगी। पति के लौटने का इंतजार करते-करते जब काफी समय बीत गया, तो उसने अपनी बेटी दीपा को साथ लिया और उन सभी जगहों पर चंद्रवीर को ढूंढने निकल पड़ी, जहां वह आमतौर पर जाया करता था।
सविता और दीपा ने संभावित हर ठिकाने पर तलाश की, लोगों से पूछताछ की, लेकिन हर जगह से उन्हें निराशा हाथ लगी। चंद्रवीर का कोई पता नहीं चल पाया। थकी-हारी मां-बेटी जब घर लौटीं, तो सविता का मन अनगिनत आशंकाओं से भर गया। जैसे-तैसे रात गुजरी, लेकिन चंद्रवीर का कोई सुराग नहीं मिला।
सुबह होते ही सविता ने अरुण को बुलाया और अपनी चिंता साझा की। उसने बताया कि चंद्रवीर कल सुबह से ही लापता है और अब तक घर नहीं लौटा। सविता ने अरुण से आग्रह किया कि वह चंद्रवीर को रिश्तेदारी में ढूंढने की कोशिश करे। इस उम्मीद में कि शायद कहीं कोई सुराग मिल जाए, सविता और अरुण ने चंद्रवीर की तलाश की जिम्मेदारी आगे बढ़ाई।
चंद्रवीर की इस अचानक गुमशुदगी ने परिवार को गहरे तनाव में डाल दिया। एक व्यक्ति, जो अपने परिवार की जरूरतें और जिम्मेदारियां बखूबी निभा रहा था, अब कहीं गुम हो चुका था। सविता की आंखों में चिंता और दिल में अनगिनत सवाल थे—चंद्रवीर आखिर कहां गया?
चंद्रवीर की तलाश: पांच दिनों की बेचैनी और शक की सुई
अरुण अपने साथ दो-तीन लोगों को लेकर उन रिश्तेदारियों में गया, जहां चंद्रवीर का आना-जाना होता था। उसने कई रिश्तेदारों से चंद्रवीर के बारे में पूछा, लेकिन किसी ने उसे चंद्रवीर के बारे में कोई जानकारी नहीं दी। वहां मालूम हुआ कि चंद्रवीर कई दिनों से किसी से मिलने नहीं आया था। दो दिन की तलाश के बाद अरुण घर लौटा और सविता को बताया कि चंद्रवीर का किसी रिश्तेदारी में भी पता नहीं चला। यह सुनते ही सविता फूट-फूटकर रोने लगी।
अब तक यह बात पूरे गांव में फैल चुकी थी कि चंद्रवीर तीन दिनों से लापता है। गांव वाले सविता की मदद के लिए आगे आए और चंद्रवीर की तलाश शुरू कर दी। गांवभर में चंद्रवीर को ढूंढा गया। नदी, तालाब, खेत-खलिहान हर जगह तलाश की गई, लेकिन चंद्रवीर का कोई सुराग नहीं मिला। चंद्रवीर का भाई भूरे, जिसके साथ उसकी बनती नहीं थी और जो उसके घर आना-जाना भी नहीं करता था, भी इस तलाश में शामिल हो गया। हालांकि भूरे और चंद्रवीर के बीच संपत्ति विवाद था, लेकिन सगा भाई होने के नाते भूरे ने भी पूरी कोशिश की।
जब पांच दिनों की तलाश के बाद भी चंद्रवीर का कोई पता नहीं चला, तो 5 अक्टूबर, 2018 को भूरे ने गाजियाबाद के नंदग्राम थाने में उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। सूचना मिलते ही नंदग्राम थाने के तत्कालीन एसएचओ पुलिस टीम के साथ सिकरोड गांव में सविता के घर पहुंचे। सविता पिछले पांच दिनों से रो रही थी। उसकी बेटी दीपा भी पिता की याद में सिसक रही थी और दोनों पूरी तरह से बेसुध और बेहाल नजर आ रही थीं।
सविता को ढांढस बंधाते हुए एसएचओ ने कहा, “देखो, रोओ मत। चंद्रवीर की तलाश में हम पूरी जान लगा देंगे। तुम हमें यह बताओ कि चंद्रवीर के घर से जाने से पहले क्या तुम्हारा उनसे कोई झगड़ा हुआ था?”
सविता ने आंसू पोंछते हुए जवाब दिया, “नहीं, मैं उनसे आज तक नहीं लड़ी। वह भी मुझसे कभी नहीं लड़ते थे। वह दिल के बहुत अच्छे और नेक इंसान थे। मुझे और हमारी बेटी को बहुत प्यार करते थे।”
एसएचओ ने दूसरा सवाल किया, “क्या चंद्रवीर ने जाने से पहले बताया था कि वह कहां और क्यों जा रहे हैं?”
“कहां जा रहे हैं, यह भी नहीं बताया था। मेरे सामने वह घर से नहीं निकले। वह अंधेरे में ही निकल गए थे। हम मां-बेटी तब सोई हुई थीं,” सविता ने कहा।
एसएचओ ने फिर पूछा, “तुम्हें किसी पर शक है?”
सविता ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “मेरे पति का उनके भाई भूरे से संपत्ति को लेकर विवाद रहता था। मुझे लगता है कि वे अंधेरे में घर से नहीं गए। मुझे शक है कि उन्हें अंधेरे में गायब कर दिया गया है। यह काम भूरे ने किया है। उसने शायद मेरे पति की हत्या कर दी है।”
एसएचओ ने सविता की बात ध्यान से सुनी और कहा, “यह पक्का कहना मुश्किल है। जांच के बाद ही पता चलेगा कि क्या भूरे ने संपत्ति विवाद के कारण चंद्रवीर को गायब करने की कोशिश की है।”
यह कहकर एसएचओ ने एसआई को भूरे को पकड़कर थाने लाने का आदेश दिया और मामले की जांच शुरू कर दी।
एसएचओ ने आवश्यक जानकारी जुटाने के बाद थाने लौटकर मामले की गहराई से जांच शुरू कर दी। दूसरी ओर, एसआई दो कांस्टेबलों के साथ भूरे को हिरासत में लेने गया और थोड़ी ही देर में भूरे को थाने लेकर आ गया। भूरे, जिसने पहले कभी थाना-कचहरी नहीं देखी थी, काफी डरा हुआ था और आते ही एसएचओ से रहम की गुहार करने लगा। एसएचओ ने उससे कड़ाई से पूछताछ की, लेकिन भूरे ने सविता के आरोपों को सिरे से नकारते हुए खुद को निर्दोष बताया। उसने दावा किया कि चंद्रवीर के साथ उसका संपत्ति का कोई विवाद नहीं था और यह भी कहा कि अगर उसने कोई अपराध किया होता तो खुद थाने में आकर गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज क्यों कराता।
भूरे के जवाबों और उसकी स्थिति को देखते हुए एसएचओ को लगा कि वह सच बोल रहा है, लेकिन वे पूरी तरह संतुष्ट होना चाहते थे। भूरे के घर की तलाशी ली गई, लेकिन वहां से कोई ऐसा सबूत नहीं मिला जो उसे चंद्रवीर की हत्या या गायब करने से जोड़ सके। सविता के शक के आधार पर पुलिस ने चंद्रवीर और भूरे के घरों के आंगन और कमरों तक को खुदवाकर देखा, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। पुलिस ने अपनी ओर से हर संभव प्रयास किया, लेकिन चंद्रवीर के गायब होने का रहस्य सुलझ नहीं सका। आखिरकार, 2021 में पुलिस ने चंद्रवीर की गुमशुदगी की फाइल बंद कर दी।
इस दौरान, सविता ने अपने दिल पर पत्थर रख लिया और अपनी जिंदगी में बदलाव लाने लगी। पहले चोरी-छिपे अरुण के साथ उसका प्रेमसंबंध था, लेकिन अब अरुण खुलकर उसके घर आने-जाने लगा और सविता के साथ अधिकतर समय बिताने लगा। सविता ने आस-पड़ोस में यह बात फैलाना शुरू कर दिया कि चंद्रवीर के जाने के बाद अरुण सच्चे मन से उसके और उसकी बेटी के परिवार का साथ दे रहा है। गांववालों ने इसे सामान्य माना, क्योंकि अरुण सविता का चचेरा देवर था और किसी बाहरी व्यक्ति जैसा नहीं था। इस तरह, चंद्रवीर के गायब होने की गुत्थी अनसुलझी रह गई, जबकि सविता ने अरुण के साथ अपने जीवन को एक नई दिशा में ढाल लिया।
समय बीतता रहा और चंद्रवीर को लापता हुए पूरे चार साल गुजर गए। 2021 में बंद हुई उसकी फाइल, जो धूल खा रही थी, अचानक 2022 में दोबारा से खुल गई। यह तब हुआ जब 4 अप्रैल, 2022 को गाजियाबाद के नए एसएसपी मुनिराज जी ने सभी अनसुलझे मामलों की फाइलें पुनः खोलने का आदेश दिया। इन्हीं में चंद्रवीर का मामला भी शामिल था। एसएसपी ने यह फाइल थाना नंदग्राम से लेकर क्राइम ब्रांच की एसपी दीक्षा शर्मा को सौंप दी।
एसपी दीक्षा शर्मा ने इस केस की जिम्मेदारी इंस्पेक्टर अब्दुर रहमान सिद्दीकी को दी। इंस्पेक्टर ने मामले की पूरी फाइल का गहराई से अध्ययन किया और महसूस किया कि चंद्रवीर का लापता होना सामान्य घटना नहीं थी। यह स्पष्ट था कि उसे खामोशी से गायब करना संभव नहीं था, खासकर जब वह अकेला व्यक्ति नहीं था जिसे आसानी से गायब किया जा सके। यह कार्य दो या उससे अधिक व्यक्तियों के सहयोग से ही संभव हो सकता था। इंस्पेक्टर को यह भी लगा कि अगर कोई शोर या हलचल हुई थी, तो सविता और उसकी बेटी ने जरूर कुछ सुना होगा। उन्होंने तय किया कि जांच की शुरुआत इन्हीं से करनी चाहिए।
इंस्पेक्टर अपनी टीम के साथ सविता के घर पहुंचे। उस समय सविता घर पर नहीं थी, लेकिन उसकी 16 वर्षीय बेटी दीपा घर में मौजूद थी। इंस्पेक्टर ने पूछताछ की शुरुआत दीपा से की। दीपा के हावभाव और उसकी स्थिति को देखकर इंस्पेक्टर को आभास हुआ कि उसके दिल में कोई राज दफन है। दीपा चार साल से अपने दिल में एक बात दबाए हुए थी। उसकी मां और चाचा के व्यवहार से वह पहले ही डरी हुई थी, और आस-पड़ोस में किसी को बताने का मतलब था उसके पिता की बदनामी। दीपा की इस दबी हुई सच्चाई ने मामले को एक नई दिशा देने का संकेत दिया।
चंद्रवीर हत्याकांड का पर्दाफाश और अभियुक्तों की गिरफ्तारी
इंसपेक्टर को दीपा की गवाही से चंद्रवीर के लापता होने का रहस्य स्पष्ट होने लगा। दीपा ने खुलासा किया कि उसके पिता की हत्या उसकी मां सविता और चाचा अरुण ने मिलकर की थी। दीपा ने बताया कि 28 सितंबर, 2018 की रात अरुण ने सविता के कहने पर तमंचे से चंद्रवीर के सिर में गोली मारी, जब वह गहरी नींद में थे। इसके बाद, सविता और अरुण ने मिलकर शव को अरुण के घर में खोदे गए सात फुट गहरे गड्ढे में दफन कर दिया।
क्राइम ब्रांच की टीम ने 13 नवंबर, 2022 को सविता और अरुण को गिरफ्तार किया। सख्ती से पूछताछ के दौरान, दोनों ने हत्या की साजिश और क्रियान्वयन की पूरी कहानी स्वीकार की। सविता ने अपने देवर अरुण के साथ अवैध संबंधों को हत्या का कारण बताया। उसने स्वीकार किया कि चंद्रवीर द्वारा आपत्तिजनक स्थिति में देखे जाने और गाली-गलौज के बाद उसने अरुण को हत्या के लिए उकसाया।
हत्या के बाद, दोनों ने गड्ढे में शव और खून से सना तकिया डालकर उसे मिट्टी से भर दिया और फर्श दोबारा बनवा दिया। इस सब के बावजूद, सविता नियमित रूप से थाने जाकर चंद्रवीर को ढूंढने की गुहार लगाती रही, जिससे किसी को शक न हो।
अपराध स्वीकारने के बाद सविता और अरुण के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 201 (सबूत मिटाना) और 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत मामला दर्ज कर उन्हें हिरासत में ले लिया गया। चंद्रवीर हत्याकांड का यह रहस्य आखिरकार चार साल बाद सुलझ गया।
चंद्रवीर हत्याकांड में गड्ढे से बरामद लाश और सविता-अरुण की गिरफ्तारी
क्राइम ब्रांच की टीम और एसपी दीक्षा शर्मा की निगरानी में अरुण के कमरे में खोदे गए गड्ढे से चंद्रवीर की सड़ी-गली लाश और तकिया बरामद हुआ। लाश को बाहर निकाल कर कब्जे में लिया गया और अरुण तथा सविता को न्यायालय में पेश कर दो दिन की पुलिस रिमांड पर ले लिया गया। रिमांड के दौरान अरुण से तमंचा, कुल्हाड़ी और खून से सनी बाल्टी भी बरामद की गई।
अरुण ने बताया कि चंद्रवीर के हाथ में चांदी का कड़ा था, जिसके बारे में उसे डर था कि अगर पुलिस को लाश मिलती तो इस कड़े से लाश की पहचान हो जाती। इसलिए उसने कुल्हाड़ी से चंद्रवीर का हाथ काट कर उसे कैमिकल फैक्ट्री के पीछे गड्ढे में दबा दिया था। पुलिस ने अरुण को कैमिकल फैक्ट्री के पीछे ले जाकर खुदाई की, जहां चंद्रवीर का कटा हुआ हाथ बरामद हुआ।
सविता और अरुण को दो दिन बाद जेल भेजने का आदेश दिया गया और पुलिस अब चंद्रवीर की अस्थिपंजर से डीएनए टेस्ट करवाने की तैयारी में थी, ताकि यह पुष्टि की जा सके कि गड्ढे से बरामद लाश चंद्रवीर की ही थी।
चंद्रवीर की पत्नी, जिसे वह अपनी खुशियों के लिए हर समय तैयार रहता था, ने अपने देवर के साथ मिलकर अपने पति की बर्बर हत्या कर दी।
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