लंदन में भारतीय परिवार के रहस्यमय लापता होने की घटना
यह सच्ची घटना लंदन में रहने वाले एक भारतीय परिवार के रहस्यमय तरीके से गायब होने की है। एक व्यक्ति, जो मूल रूप से भारत का था, अच्छी जिंदगी की तलाश में इंग्लैंड चला जाता है। वहां वह कड़ी मेहनत करता है और अच्छा पैसा कमाने लगता है। कुछ समय बाद उसकी पूरी फैमिली भी इंग्लैंड में बस जाती है और उनकी जिंदगी आराम से चलने लगती है। लेकिन अचानक एक दिन, जब यह परिवार डाइनिंग टेबल पर खाना खा रहा था, तभी सभी पांच लोग लापता हो जाते हैं। महीनों तक उनकी तलाश की जाती है, लेकिन उनका कोई सुराग नहीं मिलता। हजारों पुलिसकर्मी इस केस को सुलझाने में जुट जाते हैं और 100 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च किए जाते हैं। अंत में एक चौंकाने वाली सच्चाई सामने आती है, जिसे सुनकर हर किसी की आंखें नम हो जाती हैं। इस परिवार में दो छोटे बच्चे भी थे—एक सिर्फ दो साल का और दूसरा महज दो महीने का। जब सच्चाई का खुलासा होता है, तो हर किसी का दिल दहल जाता है। आखिर इस परिवार के साथ क्या हुआ और इसके पीछे किसका हाथ था?
अमरजीत चौहान और उनके परिवार का रहस्यमय लापता होना
यह कहानी अमरजीत चौहान और उनके परिवार की है। कुछ साल पहले अमरजीत भारत से ब्रिटेन जाते हैं और वहां कड़ी मेहनत करके अपनी एक्सपोर्ट-इंपोर्ट कंपनी खोल लेते हैं, जिसका नाम “सीबा फ्रेट” था। उनकी कंपनी हीथ्रो एयरपोर्ट के पास थी। लंदन में रहते हुए अमरजीत की शादी नैंसी नाम की लड़की से होती है, जो पंजाब की रहने वाली थी। शादी के बाद उनके दो बच्चे होते हैं और पूरा परिवार लंदन के पास एक इलाके में रहने लगता है।
उन दिनों नैंसी की मां, चरणजीत कौर, भी उनके साथ लंदन में रह रही थीं क्योंकि नैंसी का दूसरा बेटा सिर्फ दो महीने का था। नैंसी का एक भाई, ओंकार वर्मा, न्यूजीलैंड में रहता था, लेकिन भाई-बहन की अक्सर फोन पर बात होती थी। 14 फरवरी 2003 को नैंसी ने अपने भाई से फोन पर बात की, लेकिन इस बार वह घबराई हुई थी। जब ओंकार ने इसकी वजह पूछी, तो नैंसी ने बताया कि अमरजीत 13 फरवरी को ऑफिस गए थे और फिर घर वापस नहीं लौटे।
नैंसी ने कई बार अमरजीत को फोन किया, लेकिन उनका मोबाइल स्विच ऑफ था। फिर उसने अमरजीत की कंपनी में फोन किया, जहां से उसे बताया गया कि अमरजीत एक अर्जेंट बिजनेस मीटिंग के लिए नीदरलैंड गए हैं। यह सुनकर नैंसी और ज्यादा परेशान हो गई क्योंकि अमरजीत ने उसे इस मीटिंग के बारे में कुछ नहीं बताया था। सबसे अजीब बात यह थी कि कुछ दिन पहले अमरजीत ने रेजिडेंसी परमिट के लिए अप्लाई किया था, जिसके चलते उनका पासपोर्ट ब्रिटेन सरकार के ऑफिस में जमा था। ऐसे में बिना पासपोर्ट के नीदरलैंड जाना नामुमकिन था।
अभी नैंसी इस बात को समझने की कोशिश ही कर रही थी कि तभी उसके मोबाइल पर एक वॉइस मेल आया। यह मैसेज अमरजीत चौहान का था, जिसमें वह कह रहे थे कि उन्हें अर्जेंट काम से ब्रिटेन के बाहर जाना पड़ा है, लेकिन वह जल्दी लौट आएंगे। लेकिन इस वॉइस मेल ने नैंसी की चिंता और बढ़ा दी क्योंकि यह पहली बार था जब अमरजीत ने उसे अंग्रेजी में संदेश भेजा था, जबकि वह हमेशा पंजाबी में ही बात करते थे।
13 फरवरी 2003 को अमरजीत आखिरी बार ऑफिस गए और फिर कभी वापस नहीं लौटे। अगले दिन, नैंसी ने यह सारी बातें अपने भाई ओंकार को बताईं। ओंकार ने अपनी बहन को समझाया और उसे दिलासा दिया, लेकिन इस लापता होने की घटना के पीछे क्या सच्चाई थी, यह किसी को नहीं पता था।
पूरे परिवार के लापता होने के बाद भी पुलिस क्यों हुई लापरवाह?
15 फरवरी 2003 को जब ओंकार ने अपनी बहन नैंसी को फोन किया तो उसका भी फोन बंद आने लगा। उसने कई बार कॉल किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। इधर, अमरजीत की कंपनी “सीबा फ्रेट” के कर्मचारी भी लगातार उनके घर फोन कर रहे थे, लेकिन किसी से संपर्क नहीं हो पा रहा था। आखिरकार, कंपनी ने पुलिस को सूचना दी कि अमरजीत दो दिन से ऑफिस नहीं आए हैं और उनकी पत्नी नैंसी से भी संपर्क नहीं हो रहा है।
इसके बाद पुलिस अमरजीत के घर पहुंची, लेकिन वहां कोई नहीं था। अब यह साफ हो गया कि सिर्फ अमरजीत ही नहीं, बल्कि उनकी पत्नी नैंसी, दोनों छोटे बच्चे और नैंसी की मां भी रहस्यमय तरीके से लापता हो चुके थे। पुलिस इस बात को समझने की कोशिश कर ही रही थी कि तभी उन्हें एक चौंकाने वाली जानकारी मिली।
अमरजीत और उनके परिवार के लापता होने के कुछ दिन बाद, केनेथ रेगन नाम का एक व्यक्ति अमरजीत की कंपनी में एक चिट्ठी लेकर पहुंचा। इस चिट्ठी पर अमरजीत के दस्तखत थे और उसमें लिखा था कि वह इंग्लैंड से तंग आ चुके हैं, इसलिए हमेशा के लिए भारत लौट रहे हैं। साथ ही, उन्होंने अपनी कंपनी एक नए मालिक को सौंपने की बात भी लिखी थी। इसके अलावा, कंपनी ट्रांसफर से जुड़े जरूरी दस्तावेज भी थे, जिन पर अमरजीत के सिग्नेचर थे। जब पुलिस ने इन कागजों की जांच करवाई, तो वे पूरी तरह सही पाए गए।
इस सबके बाद पुलिस को लगा कि अमरजीत सच में अपनी मर्जी से इंग्लैंड छोड़कर चले गए हैं, इसलिए जांच की रफ्तार धीमी कर दी गई। इधर, अमरजीत और उनके परिवार को गायब हुए छह हफ्ते हो चुके थे। इसी दौरान, एक लोकल अखबार में खबर छपी कि अमरजीत चौहान आर्थिक संकट से जूझ रहे थे, इसलिए उन्होंने अपनी कंपनी बेच दी और इंग्लैंड छोड़ दिया।
अब पुलिस, कंपनी के कर्मचारी और आस-पड़ोस के लोग यही मानने लगे कि अमरजीत अपनी मर्जी से गए हैं। लेकिन न्यूजीलैंड में रह रहे नैंसी के भाई ओंकार वर्मा को यह बात हजम नहीं हो रही थी। उसे पुलिस की जांच और अखबार की खबरों पर भरोसा नहीं था। जब उसे लगा कि पुलिस इस मामले में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रही है, तो उसने खुद सच का पता लगाने का फैसला किया। आखिरकार, 5 मार्च 2003 को वह न्यूजीलैंड से सीधा इंग्लैंड पहुंच गया।
पुलिस की लापरवाही और ओंकार वर्मा की लड़ाई
इंग्लैंड पहुंचने के बाद ओंकार वर्मा लगातार पुलिस से अमरजीत और उनके परिवार की तलाश करने की अपील करता रहा, लेकिन पुलिस इस केस पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रही थी। जब उसे लगा कि पुलिस इसे गंभीरता से नहीं ले रही, तो उसने कुछ लोगों के साथ मिलकर पुलिस के खिलाफ एक अभियान शुरू कर दिया। इस दबाव के कारण पुलिस को आखिरकार दोबारा जांच शुरू करनी पड़ी।
जांच की शुरुआत अमरजीत के घर से हुई, लेकिन यह तलाशी कई हफ्तों बाद हो रही थी, जबकि यह काम पहले ही दिन हो जाना चाहिए था। जब पुलिस घर के अंदर गई, तो वहां की हालत देखकर कहीं से भी ऐसा नहीं लगा कि अमरजीत और उनका परिवार अपनी मर्जी से घर छोड़कर गया है। वॉशिंग मशीन में कपड़े वैसे ही पड़े थे, टेबल पर खाना रखा था, बच्चों के कपड़े कमरे में बिखरे थे। सबसे अहम बात यह थी कि नैंसी की मां, चरणजीत कौर, हमेशा गुरु ग्रंथ साहिब को अपने साथ रखती थीं, लेकिन इस बार वह टेबल पर पड़ा था। यह देखकर ओंकार वर्मा ने पुलिस से कहा कि उसकी मां सब कुछ छोड़ सकती है, लेकिन गुरु ग्रंथ साहिब को इस तरह पीछे नहीं छोड़ सकती।
जांच आगे बढ़ ही रही थी कि पुलिस को एक और अहम जानकारी मिली। अमरजीत के कुछ रिश्तेदारों को फ्रांस से एक लेटर मिला था, जिसे अमरजीत के नाम से भेजा गया था। इसमें लिखा था कि वह अपने परिवार के साथ भारत आ गए हैं क्योंकि उन्हें इंग्लैंड से ऊब हो गई थी। लेकिन रिश्तेदारों को यह बात अजीब लगी क्योंकि अमरजीत हमेशा अपने हाथ से ही पत्र लिखा करते थे, जबकि यह लेटर कंप्यूटर से टाइप किया गया था। इससे संदेह और गहरा गया कि मामला कुछ और ही है।
लापता परिवार और अमरजीत चौहान की लाश मिलने से खुला राज
अमरजीत चौहान और उनके परिवार को गायब हुए एक महीने से ज्यादा हो चुका था, लेकिन पुलिस अब तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई थी। जब उनके घर की तलाशी ली गई थी, तो वहां की हालत देखकर साफ था कि वे अपनी मर्जी से नहीं गए थे। अगर ऐसा होता, तो घर का सामान यूं बिखरा न होता। ओंकार वर्मा ने इस मामले को अपहरण करार दिया, जिसके बाद 21 मार्च 2003 को पुलिस ने यह केस स्कॉटलैंड यार्ड के सीरियस क्राइम ग्रुप को सौंप दिया।
स्कॉटलैंड यार्ड ने जांच शुरू की, लेकिन कई हफ्तों तक कोई सुराग हाथ नहीं लगा। पूरा चौहान परिवार फरवरी में गायब हुआ था और अब अप्रैल 2003 आ चुका था। इस बीच, अमरजीत की कंपनी नए मालिक के हाथों में जा चुकी थी, जबकि असली मालिक और उनका परिवार लापता था। पुलिस यह जानने की कोशिश कर रही थी कि अगर अमरजीत सच में भारत गए हैं, तो क्या वे वहां सुरक्षित पहुंचे हैं। इसके लिए इंग्लैंड की पुलिस ने भारत की एजेंसियों से संपर्क किया, लेकिन पता चला कि अमरजीत न तो अपने गांव पहुंचे और न ही किसी रिश्तेदार के पास। अब पुलिस के लिए यह केस और भी उलझता जा रहा था।
अचानक, अप्रैल के महीने में समुद्र के किनारे एक लाश मिलने की खबर आई। जब पुलिस ने जांच की, तो खुलासा हुआ कि यह लाश किसी और की नहीं, बल्कि अमरजीत चौहान की थी। ओंकार वर्मा ने भी लाश की पहचान अमरजीत के रूप में की। इस खुलासे ने पूरे केस का रुख बदल दिया। अब तक पुलिस मान रही थी कि अमरजीत कहीं आराम से जिंदगी बिता रहे हैं, लेकिन सच तो यह था कि उनकी जान ली जा चुकी थी। इस लाश के मिलने से यह साफ हो गया कि अमरजीत के अचानक गायब होने और उनके इंग्लैंड छोड़कर भागने की कहानी पूरी तरह झूठ थी।
पुलिस जांच और केनेथ रेगन का काला सच
अमरजीत चौहान की लाश मिलने के बाद पुलिस पूरी तरह से हरकत में आ गई। इस केस को हल करने के लिए सैकड़ों पुलिसकर्मी लगाए गए। पुलिस को सबसे पहला शक केनेथ रेगन नाम के उस शख्स पर हुआ, जिसने अमरजीत के गायब होने के अगले ही दिन कंपनी में आकर मालिकाना हक के दस्तावेज दिखाए थे। लेकिन जब पुलिस ने केनेथ रेगन की पृष्ठभूमि की जांच शुरू की, तो जो सच्चाई सामने आई, उसने सबको चौंका दिया।
केनेथ रेगन कोई मामूली इंसान नहीं था। 1980 के दशक में वह ब्रिटेन की अंडरवर्ल्ड दुनिया का एक बड़ा नाम हुआ करता था। वह ड्रग स्मगलिंग, फर्जी पासपोर्ट बनाने और ह्यूमन ट्रैफिकिंग जैसे कई गैरकानूनी धंधों में शामिल था। साल 1998 में लंदन पुलिस ने उसे रंगे हाथों गिरफ्तार किया था, और उसके पास से 30 किलो हेरोइन बरामद हुई थी, जिसकी कीमत करोड़ों में थी। अनुमान था कि वह अब तक 200 करोड़ रुपये से ज्यादा का ड्रग्स बेच चुका था।
उस पर मुकदमा चला, और अदालत ने उसे 20 साल की सजा सुनाई। लेकिन जेल में रहते हुए उसने पुलिस को एक डील ऑफर की। उसने वादा किया कि अगर उसकी सजा कम कर दी जाए, तो वह पुलिस का सरकारी गवाह बनकर बड़े अपराधियों की जानकारी देगा। पुलिस ने यह डील मान ली। केनेथ की दी गई जानकारी के आधार पर लंदन और ब्रिटेन के अन्य इलाकों में बड़े ड्रग रैकेट का पर्दाफाश हुआ, और कई अपराधियों को पकड़ा गया। इसके बदले में केनेथ की सजा 20 साल से घटाकर 8 साल कर दी गई। बाद में, पुलिस की और भी मदद करने के कारण उसकी सजा और कम होती गई, और आखिरकार 2002 में वह सिर्फ 3 साल की सजा काटकर जेल से बाहर आ गया।
लेकिन जेल से बाहर आने के बाद केनेथ की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी। उसका आपराधिक रिकॉर्ड होने के कारण उसे कहीं भी काम नहीं मिल रहा था। ऐसे में अमरजीत चौहान ने उसकी मदद की। अमरजीत अक्सर बेसहारा लोगों को अपनी कंपनी में काम पर रखते थे। जब केनेथ रेगन उनकी कंपनी में नौकरी मांगने आया, तो अमरजीत को उस पर दया आ गई और उन्होंने उसे अपनी “सीबा फ्राइट” कंपनी में डिलीवरी बॉय की नौकरी दे दी।
पुलिस की सख्ती और केनेथ रेगन का खुलासा
अमरजीत चौहान की लाश मिलने के बाद पुलिस ने तुरंत सीबा फ्राइट कंपनी के नए मालिक केनेथ रेगन को हिरासत में ले लिया। यह वही शख्स था, जो अमरजीत के जिंदा रहते उनकी कंपनी में एक मामूली डिलीवरी बॉय की नौकरी करता था। पूछताछ के दौरान केनेथ रेगन ने दावा किया कि अमरजीत चौहान ने ब्रिटेन छोड़ने से पहले खुद ही उसे कंपनी का मालिक बना दिया था। अपनी बात को साबित करने के लिए उसने पुलिस को कंपनी के मालिकाना हक से जुड़े पूरे दस्तावेज भी दिखाए।
लेकिन इस बार पुलिस पूरी तैयारी के साथ आई थी। वह पहले ही केनेथ रेगन का आपराधिक इतिहास खंगाल चुकी थी और जानती थी कि यह शख्स कितना बड़ा अपराधी रह चुका है। इसलिए पुलिस को उसकी किसी भी बात पर यकीन नहीं हुआ और उन्होंने उससे सख्ती से पूछताछ शुरू कर दी।
हालांकि, केनेथ रेगन भी कोई साधारण अपराधी नहीं था। वह पुलिस की हर चाल को समझ रहा था और बड़ी चतुराई से जवाब दे रहा था। कई घंटों तक पूछताछ के बावजूद पुलिस के हाथ कोई ठोस सबूत नहीं लगा, जिससे यह साबित हो सके कि अमरजीत चौहान और उनके परिवार के गायब होने में केनेथ रेगन का हाथ था।
ऐसा लग रहा था कि पुलिस फिर से खाली हाथ रह जाएगी, लेकिन तभी 9 अप्रैल 2003 को पुलिस के पास एक अनजान महिला का फोन आया। इस महिला ने पुलिस को कुछ ऐसा बताया, जिससे पूरा केस ही पलट गया। इस फोन कॉल के बाद पुलिस ने केनेथ रेगन के खिलाफ और भी ज्यादा सख्ती बरतनी शुरू कर दी।
अब तक चालाकी दिखा रहा केनेथ रेगन पुलिस की कड़ी पूछताछ के आगे धीरे-धीरे टूटने लगा। अंत में, जब पुलिस ने पूरी बेरहमी से उससे सच उगलवाने की कोशिश की, तो उसकी सारी चालाकी धरी की धरी रह गई और उसने एक ऐसा खुलासा कर दिया, जिसे सुनकर हर कोई दंग रह गया।
केनेथ रेगन की साजिश और चौहान परिवार की दर्दनाक हत्या
केनेथ रेगन ने पुलिस के सामने जो खुलासा किया, वह बेहद खौफनाक और साजिश से भरा था। उसने बताया कि जब वह अमरजीत चौहान की कंपनी में डिलीवरी बॉय की नौकरी कर रहा था, तभी उसे पता चला कि अमरजीत अपनी कंपनी बेचकर परिवार सहित भारत लौटना चाहते हैं। यह सुनकर केनेथ ने एक खतरनाक योजना बना ली।
उसने अमरजीत से कहा कि वह एक अमीर खरीदार को जानता है, जो उनकी कंपनी को अच्छी कीमत में खरीद सकता है। अमरजीत, जो पहले ही कंपनी बेचने की योजना बना रहे थे, इस प्रस्ताव में दिलचस्पी लेने लगे। इसी बहाने 12 फरवरी 2003 को केनेथ रेगन ने अमरजीत को अपने घर बुलाया, यह कहकर कि खरीदार वहीं मीटिंग करना चाहता है।
लेकिन जैसे ही अमरजीत वहां पहुंचे, केनेथ और उसके दो साथियों ने उन्हें किडनैप कर लिया। इसके बाद अमरजीत को बेरहमी से पीटा गया और जबरदस्ती कई ब्लैंक दस्तावेजों पर साइन करवाए गए। इनमें कंपनी के ओनरशिप ट्रांसफर पेपर भी शामिल थे। जब अमरजीत ने साइन करने से मना किया, तो उसे और ज्यादा टॉर्चर किया गया, जिसके बाद आखिरकार उसने साइन कर दिए।
इसके बाद केनेथ रेगन ने अमरजीत से उनकी पत्नी नैंसी को एक वॉइस मेल भेजवाया, जिसमें अमरजीत को यह कहना था कि वह बिजनेस डीलिंग के सिलसिले में देश से बाहर जा रहे हैं। जब यह सब पूरा हो गया, तो केनेथ ने अमरजीत को बेरहमी से मार डाला।
शुरू में केनेथ का प्लान सिर्फ अमरजीत को मारकर कंपनी हड़पने का था। लेकिन बाद में उसे एहसास हुआ कि जब तक उनकी पत्नी नैंसी और बच्चे जिंदा हैं, तब तक उसकी यह साजिश पूरी तरह सफल नहीं हो पाएगी। इसलिए 15 फरवरी 2003 को, केनेथ अपने एक साथी के साथ अमरजीत के घर पहुंचा और वहां नैंसी, उनके 18 महीने के बेटे देवेंद्र, 2 महीने के बेटे रविंद्र और नैंसी की मां चरणजीत कौर की हत्या कर दी।
इतना ही नहीं, उसने इन सभी की लाशों को ठिकाने लगा दिया और अमरजीत के हस्ताक्षर वाले एक ब्लैंक पेपर पर एक फर्जी पत्र टाइप किया। इस पत्र में उसने लिखा कि अमरजीत अपनी मर्जी से पूरे परिवार सहित इंग्लैंड छोड़कर जा रहे हैं। इस तरह केनेथ रेगन ने पूरे चौहान परिवार को खत्म कर अपनी साजिश को अंजाम दिया।
सबक और सतर्कता की जरूरत
यह कहानी एक खौफनाक साजिश, निर्मम हत्या और कानून की जीत की मिसाल है। केनेथ रेगन ने सिर्फ लालच और अपने अपराधी मंसूबों को पूरा करने के लिए एक पूरे परिवार को बेरहमी से खत्म कर दिया। लेकिन आखिरकार, कानून के लंबे हाथों से वह और उसके साथी बच नहीं पाए।
इस केस में सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब केनेथ की गर्लफ्रेंड वेलिंडा ब्रेविन ने पुलिस को फोन करके इस भयानक अपराध की जानकारी दी। अगर वेलिंडा ने हिम्मत न दिखाई होती, तो शायद केनेथ रेगन इस अपराध से भी बच निकलता।
इस घटना से हमें यह सीखने को मिलता है कि अपराध कितना भी शातिर तरीके से किया जाए, सच सामने आ ही जाता है। पुलिस और कानून की मेहनत, हजारों अधिकारियों की दिन-रात की जांच, और करोड़ों रुपये की लागत के बावजूद, आखिरकार इंसाफ हुआ और अपराधियों को उनकी सजा मिली।
हालांकि, यह दुखद है कि अमरजीत चौहान के दो मासूम बच्चों की लाश कभी नहीं मिल सकी। यह अपराध जितना दर्दनाक है, उतना ही यह समाज के लिए एक चेतावनी भी है कि हमें हमेशा सतर्क रहना चाहिए और गलत इरादों वाले लोगों को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए।
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