Atul Subash Complete Story अतुल सुभाष की दर्दनाक कहानी: न्याय की तलाश, और सिस्टम की हार

9 दिसंबर की सुबह बेंगलुरु पुलिस कंट्रोल रूम में एक कॉल आई। खबर थी कि एक व्यक्ति ने अपनी जान ले ली है। पुलिस जब घटना स्थल पर पहुंची, तो कमरे में एक आदमी की लाश लटकी हुई मिली। उसकी छाती पर एक A4 साइज के कागज पर बड़े अक्षरों में लिखा था—“JUSTICE IS DUE”। मृतक ने पीछे 90 मिनट का एक वीडियो और 24 पन्नों का पत्र छोड़ा था।

आखिर यह व्यक्ति कौन था? ऐसा क्या हुआ होगा जिसने उसे यह कदम उठाने पर मजबूर कर दिया? और उसने इतनी विस्तार से अपना संदेश क्यों लिखा?

यह शख्स था अतुल सुभाष, बिहार के एक छोटे से कस्बे का रहने वाला। वह अपने परिवार का सबसे बड़ा बेटा था। उसके माता-पिता, अंजू और पवन मोदी, ने बड़ी कठिनाई से अतुल को पढ़ाया-लिखाया और काबिल बनाया। बेंगलुरु की एक नामी कंपनी में वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के विशेषज्ञ इंजीनियर के रूप में काम करता था। वह अपने बूढ़े माता-पिता और छोटे भाई विकास की जिम्मेदारी बखूबी निभाता था।

अतुल की जिंदगी हर तरह से सही दिशा में थी—एक अच्छा बेटा, ज़िम्मेदार भाई, और मेहनती कर्मचारी। लेकिन उसकी जिंदगी में एक कमी थी—एक जीवनसाथी की। इस कमी को पूरा करने के लिए उसने Shaadi.com पर एक प्रोफाइल बनाई। जल्द ही, 2018 में, उसकी मुलाकात निकिता सिंघानिया से हुई, जो जौनपुर, उत्तर प्रदेश की रहने वाली थी।

पहली बार निकिता से बातचीत में अतुल को लगा कि वह बेहद समझदार लड़की है। निकिता कम बोलती थी और हमेशा सोच-समझकर जवाब देती थी। अतुल, जो खुद एक बातूनी और खुलकर बोलने वाला इंसान था, इसे समझदारी और परिपक्वता का प्रतीक मानता था।

लेकिन निकिता के शांत स्वभाव के पीछे एक और कहानी छिपी थी। निकिता ने खुद अतुल को बताया था कि शादी से पहले उसके परिवार ने उसे सिखाया था कि कम बोलना ही बेहतर है। ज्यादा बोलने से रिश्ते टूट सकते हैं। अतुल को अब समझ में आ रहा था कि यह सलाह क्यों दी गई होगी। शायद ज्यादा बोलने से सच्चाई सामने आ जाती, और लोग उसे अलग नजरिए से देखने लगते।

अतुल और निकिता की शादी: उम्मीदों और सच्चाई का टकराव”

शादी से पहले धीरे-धीरे अतुल और निकिता के बीच बातचीत बढ़ने लगी थी। निकिता का शांत स्वभाव और परिपक्वता अतुल को भा गई, और जनवरी 2019 में दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया। अप्रैल 2019 में शादी हुई, जो निकिता के परिवार के लिए एक अहम कदम था। उनके पिता की तबीयत अक्सर खराब रहती थी, और परिवार चाहता था कि वे अपनी बेटी को खुशी-खुशी विदा होते देखें।

शादी के बाद भी शुरुआत में सब कुछ ठीक लग रहा था। निकिता कम ही बोलती थी, लेकिन अतुल को इससे कोई परेशानी नहीं थी। वह अपनी नई जिंदगी के लिए बेहद उत्साहित था और मोरीशस में हनीमून की योजना बनाई थी। अतुल नई यादें बनाने के लिए तैयार था, लेकिन हनीमून पर उसे महसूस हुआ कि निकिता उससे कुछ दूर-दूर सी रहती थी।

समय के साथ यह दूरी और स्पष्ट होने लगी। निकिता न तो उससे ढंग से बात करती थी, न ही उसके साथ कहीं बाहर जाने में रुचि दिखाती थी। परेशान और चिंतित अतुल ने कई बार उससे पूछा, “क्या मैंने कुछ गलत किया है? क्या बात है?”

आखिरकार, निकिता ने एक सच्चाई बताई जिसने अतुल का दिल तोड़ दिया। निकिता ने कहा कि उसने कभी अतुल से शादी करना ही नहीं चाहा था। वह तो अपने परिवार के दबाव और अपने बीमार पिता की आखिरी इच्छाओं के चलते इस रिश्ते के लिए राजी हुई थी। अतुल एक “संपूर्ण दूल्हा” था—अच्छी नौकरी, प्रतिष्ठित पृष्ठभूमि, और नेक स्वभाव वाला। लेकिन निकिता के लिए यह रिश्ता सिर्फ एक समझौता था।

यह सच जानने के बाद अतुल के लिए यह भावनात्मक रूप से कठिन समय था। हालांकि, उसने हार मानने से इनकार कर दिया। उसने सोचा, “शायद अगर मैं उसे अपने प्यार और देखभाल का अहसास दिलाऊं, तो वह मेरे साथ जुड़ने का मन बना लेगी।”

मोरीशस से लौटने के बाद अतुल ने निकिता को खुश करने और आरामदायक महसूस कराने के लिए हर संभव प्रयास करना शुरू कर दिया। वह हर दिन 13-14 किलोमीटर बाइक पर सफर करके निकिता को उसके ऑफिस छोड़ने और वापस लेने जाता। यह भी बेंगलुरु के कुख्यात ट्रैफिक में।

अतुल के ये प्रयास उसकी गहरी चाहत और रिश्ते को बचाने की उम्मीद को दिखाते थे। लेकिन क्या इन कोशिशों से निकिता का दिल पिघल पाया? या यह कहानी आगे और अधिक जटिल मोड़ लेने वाली थी?

अतुल की रोजमर्रा की जिंदगी एक बेहद थकाने वाले शेड्यूल में बदल चुकी थी। सुबह अपनी पत्नी निकिता को ऑफिस छोड़ना, फिर अपने ऑफिस जाना, और शाम को वापस आकर उसे घर लाना। यह सब आसान नहीं था। लेकिन यह सब अतुल के लिए सिर्फ एक जिम्मेदारी नहीं थी, बल्कि अपने रिश्ते को बचाने की कोशिश थी।

अतुल के लगातार प्रयास आखिरकार रंग लाने लगे। निकिता ने उसके प्यार और समर्पण को महसूस करना शुरू किया। धीरे-धीरे, वह अतुल के करीब आने लगी, और जल्द ही उनकी जिंदगी में एक नया मोड़ आया—निकिता गर्भवती हो गई।

लेकिन जब सब कुछ ठीक होने जैसा लग रहा था, तब हालात ने एक और करवट ली। निकिता को नौकरी से निकाल दिया गया। अनुशासन से जुड़ी समस्याओं के कारण उसे काम से हटाया गया, और अब वह पूरा दिन घर पर ही रहने लगी। वह अपना समय कभी अपनी मां से फोन पर बात करके बिताती, तो कभी कोरियन ड्रामा देखकर।

इस दौरान, अतुल ने निकिता की हर संभव तरीके से देखभाल की। वह उसे नियमित डॉक्टर चेकअप के लिए ले जाता, दवाइयां लाता, और यह सुनिश्चित करता कि घर में मेड और कुक की व्यवस्था हो ताकि निकिता को कोई परेशानी न हो। उसकी तबीयत थोड़ी खराब रहती थी, इसलिए अतुल ने अपनी मां को भी दिसंबर में बेंगलुरु बुला लिया, ताकि वह निकिता और आने वाले बच्चे का ध्यान रख सकें।

2021 में, निकिता ने एक बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम उन्होंने “व्यम” रखा। बच्चे के जन्म के बाद अतुल को लगा कि अब उनकी जिंदगी खुशियों से भर जाएगी। उसे यकीन था कि व्यम के आने से उनकी शादी में आई दूरियां हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगी।

लेकिन यह खुशी स्थायी नहीं थी। अतुल को जल्द ही एहसास हुआ कि जिस सुकून और प्रेम की वह उम्मीद कर रहा था, वह शायद उसे कभी नहीं मिलेगा। उसकी दुनिया में एक और चुनौती आने वाली थी—जो उसकी उम्मीदों और दिल को चूर-चूर कर देगी।

बेटे के जन्म के बाद निकिता का व्यवहार और भी बदल गया, और यह बदलाव अच्छे के लिए नहीं था। उसने अतुल से साफ कह दिया कि वह अपने बच्चे का ख्याल नहीं रख सकती। इसके पीछे कई वजहें थीं। एक तो उसकी शारीरिक कमजोरी, जो बच्चे के जन्म के बाद आम है, और दूसरी—जिसे स्वीकारना कठिन था—उसका बच्चे में कोई खास दिलचस्पी न होना।

इसी दौरान, भारत में पहला लॉकडाउन लग गया। बेंगलुरु कोरोना के सबसे बुरे प्रकोप का सामना कर रहा था। शहर में न मेड्स मिल रही थीं, न दुकानें खुल रही थीं। लेकिन अतुल ने अपनी सूझबूझ और मेहनत से किसी तरह एक घरेलू सहायक का इंतजाम किया ताकि निकिता को कोई दिक्कत न हो। इसके बावजूद निकिता पूरे दिन आराम करती और अपनी मां से फोन पर बातें करती थी, जबकि अतुल ऑफिस का काम, घर की जिम्मेदारियां, और बच्चे की देखभाल, सब अकेले संभालता था।

अतुल को धीरे-धीरे महसूस हुआ कि निकिता की यह निष्क्रियता उनके रिश्ते और परिवार पर भारी पड़ रही है। उसने सोचा कि शायद काम पर लौटने से निकिता का ध्यान बंटेगा और वह बेहतर महसूस करेगी। इसके लिए अतुल ने उसे प्रोग्रामिंग सिखाई, उसका रिज्यूमे तैयार किया, और कई जगह इंटरव्यू के लिए आवेदन भी किए। आखिरकार, निकिता को एक नौकरी मिल गई।

लेकिन नौकरी लगने के बाद हालात और खराब हो गए। निकिता ने अतुल से पैसों की मांग शुरू कर दी। पहले भी वह पैसे मांगती थी, लेकिन अब यह मांगें बढ़ने लगीं। उसने कहा कि उसे अपने बिजनेस के लिए पैसों की जरूरत है। यह मामूली रकम नहीं थी। निकिता और उसके परिवार ने पहले 3 लाख मांगे, फिर 9 लाख, और उसके बाद 4 लाख।

अतुल, जो पहले से मानसिक और शारीरिक रूप से थका हुआ था, इन भारी मांगों के बीच भी परिवार को बचाने की कोशिश कर रहा था। उसने काफी सोचने के बाद यह रकम देने का फैसला किया।

इस बीच, दूसरा लॉकडाउन लग गया। निकिता की तबीयत और भी बिगड़ने लगी, जिसके चलते उसकी मां, नीशा, बेंगलुरु आकर उनके साथ रहने लगीं। लेकिन इस बदलाव के साथ ही अतुल की जिंदगी और भी जटिल हो गई।

एक आदमी की टूटी उम्मीदें: अतुल की न्याय की लड़ाई”

जब निकिता की मां, नीशा, उनके साथ रहने बेंगलुरु आईं, तो यह अतुल के लिए एक बड़े संकट की शुरुआत थी। नीशा हर रोज अतुल से ₹50 लाख की मांग करती थीं। उनका दावा था कि यह रकम जौनपुर के सेंट्रल इलाके में एक शानदार घर खरीदने के लिए चाहिए। लेकिन अतुल ने साफ मना कर दिया। उसने पहले ही निकिता और उसके परिवार को लाखों रुपये दे रखे थे। इस मुद्दे पर घर में रोज झगड़े होने लगे।

17 मई 2021 को, यह तनाव अपने चरम पर पहुंच गया। निकिता अपना सामान पैक करके, अपने बेटे व्यम को साथ लेकर घर छोड़कर चली गई। उसने दिल्ली में एक कंपनी, सेंसर, में नौकरी शुरू कर दी और अब वह वहीं अपने बेटे के साथ रह रही थी, जबकि उसका परिवार जौनपुर में रहता था। अतुल, जो पहले ही अपनी जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहा था, एक बार फिर बेंगलुरु में पूरी तरह अकेला हो गया।

2024 तक आते-आते, अतुल की जिंदगी पूरी तरह बिखर चुकी थी। उस पर नौ कानूनी मामले चल रहे थे, जिनमें दहेज उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, अप्राकृतिक यौन संबंध, और तलाक जैसे गंभीर आरोप शामिल थे। इनमें से कई केस केवल अतुल पर ही नहीं, बल्कि उसके परिवार पर भी दर्ज थे। आरोप था कि वे निकिता से दहेज मांगते थे और उसके साथ मारपीट करते थे।

अतुल महीनों से अपने बेटे व्यम से नहीं मिला था। उसे अपने बेटे का चेहरा तक याद नहीं था। बीते तीन वर्षों में, वह 40 बार बेंगलुरु से जौनपुर कोर्ट में हाजिरी देने जा चुका था। कई बार उसकी फैमिली को भी वहां जाना पड़ा। लेकिन हर बार एक नई निराशा उसका इंतजार करती थी—कभी जज नहीं आते थे, तो कभी वकीलों की हड़ताल होती थी। इस वजह से अतुल का लंबा सफर और सारी मेहनत बेकार हो जाती थी।

निकिता की मांगे और बढ़ती मुश्किलें

जब अतुल ने निकिता से कहा कि वे मामले को कोर्ट के बाहर सुलझा लें, तो उसने सीधे ₹1 करोड़ की मांग की। जल्द ही यह रकम बढ़कर ₹3 करोड़ हो गई। लेकिन अतुल के पास इतनी बड़ी रकम नहीं थी। उसका एकमात्र विकल्प यही बचा कि वह कोर्ट की सुनवाई में शामिल होता रहे।

कोर्ट में भी स्थिति अतुल के लिए बेहद कठिन थी। पेशकार माधव से उसने मदद मांगी ताकि कोर्ट की तारीखें दूर-दूर पड़ें और उसे बार-बार यात्रा न करनी पड़े। लेकिन माधव, जो पूरी तरह भ्रष्ट था, ने अतुल से बस पैसे ऐंठने की कोशिश की।

जो लोग कोर्ट के चक्कर काट चुके हैं, वे जानते होंगे कि यह प्रक्रिया कितनी थकाने वाली होती है। सुनवाई के लिए सिर्फ कोर्ट जाना ही काफी नहीं होता। उससे पहले आपको दर्जनों लोगों से मिलना पड़ता है, उन्हें पैसे देने पड़ते हैं, और हर किसी के साथ अपना पक्ष रखना पड़ता है।

अतुल, जो पहले से ही मानसिक और शारीरिक रूप से थक चुका था, इस दुश्चक्र में और भी फंसता चला गया। हर यात्रा, हर सुनवाई, और हर रिश्वत ने उसकी उम्मीदों को थोड़ा और तोड़ दिया। उसके पास न पैसे बचे थे, न सहारा। जो इंसान कभी अपने परिवार और रिश्ते को बचाने के लिए सबकुछ कर रहा था, वह अब खुद ही न्याय पाने के लिए संघर्ष कर रहा था।

न्याय की लड़ाई और अंतहीन यातना: अतुल की कहानी”

अतुल, एक 34 वर्षीय इंजीनियर, अपनी पत्नी निकिता और उसके परिवार द्वारा लगाए गए झूठे आरोपों के बोझ तले पूरी तरह दब चुका था। लेकिन उसकी त्रासदी यहीं खत्म नहीं होती। उसकी जिंदगी का सबसे अंधकारमय हिस्सा तब शुरू हुआ, जब उसने भारतीय न्याय प्रणाली से न्याय पाने की उम्मीद की।

अतुल का केस जज रीता कौशिक के सामने था। लेकिन रीता कौशिक, जो न्याय की कुर्सी पर बैठी थीं, खुद भ्रष्ट निकलीं। उन्होंने अतुल से केस को निपटाने के लिए ₹5 लाख की रिश्वत मांगी। जब अतुल ने कोर्ट में कहा कि उसकी पत्नी ने उस पर झूठे आरोप लगाए हैं, तो जज ने तिरस्कारपूर्ण लहजे में कहा, “तो क्या हुआ? वो तुम्हारी पत्नी है, इतना तो चलता है।”

यह बयान अतुल के लिए एक सदमे जैसा था। उसने जज से कहा कि हर साल ऐसे झूठे मामलों की वजह से न जाने कितने पति आत्महत्या कर लेते हैं। इस पर निकिता ने कड़वाहट से जवाब दिया, “तुम भी अपनी जान क्यों नहीं ले लेते?” और इस दर्दनाक क्षण को और भी अपमानजनक बना दिया जब जज रीता कौशिक ने इस पर हंसते हुए निकिता को कोर्टरूम से बाहर भेज दिया।

कोर्ट का पेशकार, जो तारीखें तय करता था, ₹50,000 तक की रिश्वत लेता था। इस पूरी व्यवस्था में अतुल के लिए हर कदम मुश्किल और अपमानजनक था। उसके परिवार पर भी झूठे मामले दायर किए गए थे, और उन्हें बार-बार कोर्ट के चक्कर काटने पड़ते थे।

अतुल के ससुराल वालों की क्रूरता की हद तब पार हो गई जब उसकी सास, नीशा, ने कोर्ट में कहा, “तुम अभी तक जिंदा हो? मुझे लगा था कि तुम्हारे मरने की खबर मिलेगी।” जब अतुल ने जवाब दिया, “अगर मैं मर जाऊं, तो तुम्हारी पार्टी कैसे चलेगी?” तो नीशा ने बेहिचक कहा, “तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारी संपत्ति पर तुम्हारी पत्नी का हक होगा।”

आत्महत्या: अन्याय का अंतिम परिणाम

इस सबके बाद, 8 दिसंबर 2024 को अतुल ने एक 90 मिनट का वीडियो रिकॉर्ड किया और 24 पन्नों का सुसाइड नोट लिखा। उसने इसमें सभी घटनाओं, गवाहों और दोषियों का विवरण दिया। उसने अपनी अंतिम इच्छा में कहा कि यदि उसे न्याय नहीं मिला, तो उसकी अस्थियां कोर्ट के पास के गटर में बहा दी जाएं, ताकि यह सिस्टम की विफलता का प्रतीक बन सके।

अतुल की आत्महत्या के बाद, बेंगलुरु पुलिस ने निकिता, उसकी मां नीशा, और भाई अनुराग को गिरफ्तार किया। हालांकि, जज रीता कौशिक फिलहाल छुट्टी पर हैं, और मामले की स्थिति अनिश्चित है।

अतुल की कहानी केवल उसकी नहीं है। यह भारतीय समाज और न्याय व्यवस्था में पुरुषों के प्रति पूर्वाग्रह और भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें दिखाती है। अतुल की अंतिम इच्छाओं और उसके सुसाइड नोट ने इस समस्या को उजागर किया है।

अतुल का सपना था कि उसका बेटा व्योम उसके माता-पिता द्वारा पाला जाए और उसे अच्छे संस्कार दिए जाएं। उसने अपनी पत्नी पर आरोप लगाया कि वह उसका उपयोग केवल पैसे के लिए कर रही थी।

यह मामला अभी न्यायिक प्रक्रिया में है, लेकिन अतुल के माता-पिता और भाई न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनकी उम्मीद है कि दोषियों को कड़ी सजा मिले और अतुल की अंतिम इच्छा पूरी हो।

अतुल की यह कहानी उन तमाम लोगों के लिए चेतावनी है जो सिस्टम पर भरोसा करते हैं, और उन बदलावों की मांग करती है जिनसे भविष्य में कोई और अतुल न बने।

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