पुजारी की आड़ में हैवान मंदिर में अक्षता के साथ दरिंदगी – अक्षता महात्रे हत्या का मामला – Hindi Crime Story

अक्षता की अधूरी उम्मीद

जुलाई 2024, बेलापुर, नवी मुंबई। 30 साल की अक्षता महात्रे की शादी को छह साल हो चुके थे, लेकिन इन सालों में उसने कभी सुकून का एक भी दिन नहीं देखा। शादी के पहले ही दिन से उसे ससुराल में प्यार और सम्मान नहीं मिला। उसकी सास उसके लुक्स को लेकर ताने मारती थी, और ननद भी उसे नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी। उसके पति, कुनाल, बेहद शक करने वाला इंसान था। अक्षता एक प्राइवेट बैंक में जॉब करती थी, लेकिन कुनाल बिना वजह उस पर शक करता और चरित्र पर गलत आरोप लगाता। हालात इतने खराब हो गए कि अक्षता ने अपना करियर छोड़ दिया और नौकरी से इस्तीफा दे दिया।

शादी के दो साल बाद, जब हालात और बिगड़ गए, तो अक्षता ने ससुराल छोड़ दिया और अपने माता-पिता के पास कोपर खैराने चली आई। दो महीने बाद, कुनाल वहां आया, माफी मांगी और नई शुरुआत का वादा किया। उसने अक्षता और उसके परिवार का भरोसा जीत लिया और उसे फिर अपने घर ले गया। तीन साल पहले, उनके बेटे का जन्म हुआ, तो अक्षता को उम्मीद जगी कि शायद अब चीजें बेहतर हो जाएं। उसे लगा कि घर में आए नए मेहमान के कारण रिश्तों में मिठास आ जाएगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उम्मीद और निराशा के बीच झूलती अक्षता को आखिरकार सिर्फ निराशा ही मिली।

Mumbai Murder Mystery
Hindi Crime Story

अक्षता का दर्द और घर छोड़ने का फैसला

कुनाल को जुए और सट्टेबाजी की लत थी, और यह वक्त के साथ बढ़ती ही गई। वह म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में नौकरी करता था, लेकिन अपनी बेपरवाह अय्याशियों के लिए उसे हमेशा पैसों की जरूरत पड़ती थी। हैरानी की बात यह थी कि जो इंसान अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करता था, वही खुद गलत रास्तों पर चल रहा था। कुनाल के घरवाले भी उसकी इस आदत को नजरअंदाज करते थे, बल्कि वे खुद भी पैसे के उतने ही बड़े लालची थे। पहले वे अक्षता की सैलरी पर निर्भर थे और अब उनकी नजर अक्षता के पिता की पेंशन पर थी।

अक्षता पर रोज पैसों के लिए दबाव बनाया जाता, गालियां दी जातीं, ताने कसे जाते और उसके मां-बाप को भी बुरा-भला कहा जाता। यह मानसिक यातना इतनी बढ़ गई कि वह घर उसके लिए एक घुटन बन गया। यही सब 5 जुलाई 2024 की रात को भी हुआ। रोज-रोज के झगड़ों से तंग आकर, अगले दिन यानी 6 जुलाई 2024 की सुबह 6 बजे, अक्षता बिना किसी को बताए घर से निकल गई। वैसे भी, उस घर में किसी को उसकी परवाह नहीं थी, इसलिए शुरुआती कुछ घंटों तक किसी ने यह जानने की कोशिश भी नहीं की कि वह कहां गई। तीन साल का मासूम बेटा घर पर ही था। जब दोपहर तक अक्षता वापस नहीं आई, तो कुनाल ने उसके माता-पिता को फोन किया। पता चला कि वह वहां भी नहीं पहुंची थी। ऐसे हालात में, जब बेटी की ससुराल पहले से ही दुश्मनों जैसी हो, माता-पिता के मन में अनहोनी का डर बैठ ही जाता है।

अक्षता की गुमशुदगी और ससुरालवालों का बेरुखी भरा रवैया

अक्षता आमतौर पर हर शनिवार बेलापुर गांव के एक मंदिर जाया करती थी, लेकिन जब वहां पता किया गया, तो पता चला कि वह उस दिन वहां भी नहीं गई थी। जब उसकी कोई खबर नहीं मिली, तो आखिरकार उसके माता-पिता और पति कुनाल ने एनआरआई कोस्टल पुलिस स्टेशन में उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई। हालांकि, पुलिस ने कहा कि वे 24 घंटे पूरे होने के बाद ही एफआईआर लिखेंगे।

इस बीच, अक्षता के ससुरालवालों का रवैया बेहद अजीब था। ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें उसकी कोई फिक्र ही नहीं थी। ना तो वे उसे खोजने में कोई दिलचस्पी दिखा रहे थे, और ना ही पुलिस पर कोई दबाव बना रहे थे कि जल्दी कार्रवाई की जाए। उनका यह बर्ताव उनकी नीयत पर सवाल खड़े कर रहा था। लेकिन यह मामला एक ऐसे मोड़ पर आकर ठहर गया, जिसने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए—वे सवाल जिनका जवाब अक्सर इस देश में एक बेटी के माता-पिता के पास भी नहीं होता।

अक्षता की दर्दनाक मौत और छुपा हुआ सच

मिसिंग पर्सन केस में समय सबसे अहम होता है, क्योंकि जल्दी तलाश ही एकमात्र विकल्प होता है। लेकिन अक्षता के मामले में वक्त हाथ से रेत की तरह फिसलता जा रहा था। 6 जुलाई, शनिवार दोपहर 2 बजे उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गई थी, लेकिन दो दिन बीतने के बाद भी पुलिस उसे खोज नहीं पाई। फिर, 9 जुलाई, मंगलवार को शीवाड़ी पुलिस स्टेशन में एक कॉल आया। यह कॉल कल्याण शिलफाटा के गणेश घोल मंदिर में दर्शन करने गए एक व्यक्ति ने किया था। उसने मंदिर परिसर में सीढ़ियों के पास एक खाई में एक महिला की लाश देखी थी।

जब पुलिस मौके पर पहुंची, तो पाया कि लाश के कुछ कपड़े गायब थे, सिर पर गहरी चोट थी और गर्दन पर दबाव के निशान थे। रिकॉर्ड चेक करने पर पुष्टि हुई कि यह शव तीन दिन पहले लापता हुई अक्षता महात्रे का ही था। अक्षता की दर्दनाक हालत उसके आखिरी पलों में हुई क्रूरता की गवाही दे रही थी। यह देख उसके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा—उन्होंने अपनी बेटी हमेशा के लिए खो दी थी। अक्षता का तीन साल का बेटा इस सच से अनजान था कि उसकी मां उसे हमेशा के लिए छोड़ चुकी थी।

10 जुलाई को पुलिस ने शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजने के बाद, अक्षता के मोबाइल फोन से उसकी आखिरी लोकेशन ट्रेस की। 6 जुलाई की सुबह 6 बजे, वह बेलापुर स्थित अपने ससुराल से निकली थी। इसके बाद, उसने महाप के एक रेस्टोरेंट में नाश्ता किया और फिर 10 बजे कल्याण शिलफाटा के गणेश घोल मंदिर के लिए रवाना हो गई। पुलिस ने इस जानकारी की पुष्टि रेस्टोरेंट और मंदिर के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों से की। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि कैमरे में अक्षता को सुबह 10 बजे मंदिर में जाते हुए तो देखा गया, लेकिन बाहर निकलते हुए नहीं। मंदिर का अंदर जाने और बाहर निकलने का सिर्फ एक ही रास्ता था, इसलिए यह साफ हो गया कि हत्यारा मंदिर के आसपास रहने वाला ही कोई व्यक्ति था।

अक्षता की तलाश और मंदिर में छुपा राज

समझ नहीं आ रहा था कि पुलिस ने यह जांच उसी दिन क्यों नहीं की, जब अक्षता लापता हुई थी। आखिरकार, तीन टीमों ने जांच शुरू की। घोल गणपति मंदिर शिलफाटा नाम की पहाड़ी पर स्थित था और चारों तरफ घने जंगलों से घिरा हुआ था। यह मंदिर आम मंदिरों की तरह भीड़भाड़ वाला नहीं था, बल्कि शहर की हलचल से दूर एक शांत जगह थी। शायद यही वजह थी कि मानसिक रूप से थकी हुई अक्षता ने वहां जाने का फैसला किया। जब मन भारी हो, तो इंसान सुकून की जगह ढूंढ ही लेता है।

मंदिर के मुख्य परिसर तक पहुंचने के लिए प्रवेश द्वार से होकर कई सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, जो जंगल के बीच से गुजरती हैं। पुलिस को मंदिर के अंदर एक और सीसीटीवी कैमरा मिला, लेकिन उसका तार कटा हुआ था। तार के कटने का तरीका देख कर साफ हो गया कि किसी ने जानबूझकर उसे काटा था।

जांच के दौरान, पुलिस को मंदिर में एक पुजारी और एक केयरटेकर मिले। पता चला कि मंदिर के मुख्य पुजारी, बालक दास, कुछ दिन पहले यूपी के ललितपुर स्थित अंजनी माता मंदिर गए थे। अपनी गैरमौजूदगी में उन्होंने इस नए पुजारी और दो केयरटेकर को मंदिर की जिम्मेदारी सौंप दी थी। जब पुलिस ने उस नए पुजारी से सवाल किए, तो उसने गोलमोल जवाब देने शुरू कर दिए। इससे पुलिस का शक बढ़ गया। जब पुजारी और केयरटेकर से सख्ती से पूछताछ की गई, तो जो सच सामने आया, उसने पूरी इंसानियत को शर्मसार कर दिया।

मंदिर में छुपे दरिंदों का घिनौना सच

इस अपराध में तीन लोग शामिल थे—एक पुजारी और दो केयरटेकर। इनमें से एक शख्स 62 साल का श्याम सुंदर शर्मा कोटा, राजस्थान का था, जबकि बाकी दो यूपी के प्रतापगढ़ से थे। घटना के बाद श्याम सुंदर शर्मा फरार हो गया था, लेकिन पुलिस की एक टीम ने उसे मुंबई से गिरफ्तार कर लिया।

6 जुलाई को जब अक्षता मंदिर पहुंची, तो वह मानसिक रूप से बहुत परेशान थी। वह शायद सुकून की तलाश में वहां आई थी, लेकिन उसे नहीं पता था कि वहां इंसान के भेष में छुपे शैतान उसका इंतजार कर रहे थे। अक्षता को उदास और परेशान देखकर उन तीनों ने हमदर्दी जताने के बहाने पहले उसका भरोसा जीता। जब उन्होंने उसकी पूरी कहानी सुनी, तो समझ गए कि वह बिना किसी को बताए वहां आई थी, यानी कोई नहीं जानता था कि वह उस वक्त कहां थी। अक्षता को भी लगा होगा कि मंदिर में उसे कोई खतरा नहीं हो सकता, क्योंकि यह तो एक पवित्र स्थान था और पुजारी से दुख बांटने कई लोग आते हैं। लेकिन वहां दरअसल संत के भेष में राक्षस बैठे थे।

इन दरिंदों ने मौके का फायदा उठाया और चुपके से अक्षता की पानी में भांग की गोली मिला दी। जब वह बेहोश हो गई, तो उसे मंदिर के परिसर में बने एक कमरे में बंद कर दिया। रात को मंदिर के दरवाजे बंद होने के बाद तीनों ने बारी-बारी से उसके साथ घिनौना अपराध किया। अगले दिन 7 जुलाई की सुबह जब अक्षता को होश आया, तो वह असहनीय दर्द में चीखने लगी। उसकी चीख सुनकर तीनों को डर सताने लगा कि अगर किसी ने सुन लिया, तो वे पकड़े जाएंगे। इसलिए उन्होंने बेरहमी से उसका सिर दीवार पर पटकना शुरू कर दिया, फिर उसे बुरी तरह पीटा और आखिर में गला घोंटकर उसकी जान ले ली।

क्योंकि मंदिर चारों तरफ से जंगल से घिरा हुआ था, इसलिए तीनों ने उसकी लाश को सीढ़ियों से नीचे खाई में फेंक दिया, यह सोचकर कि कोई उसे देख नहीं पाएगा और जंगली जानवर शव को खा जाएंगे। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में सिर पर गहरी चोट, सीने में अंदरूनी चोटें और गंभीर यौन हिंसा के निशान पाए गए। इन तीनों को अपने अपराध को छुपाने पर इतना भरोसा था कि वारदात के बाद वे वहां से भागे भी नहीं।

न्याय की मांग और पुलिस की लापरवाही

12 जुलाई को तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन हजारों लोग सड़कों पर उतरकर अक्षता को न्याय दिलाने की मांग कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाया जाए और दोषियों को जल्द से जल्द फांसी दी जाए।

जब पुलिस ने इस मंदिर के असली पुजारी बालक दास को फोन किया, तो उस वक्त वह ललितपुर से अयोध्या जा रहे थे। उनसे जब इस मामले में सवाल किया गया, तो उन्होंने चौंकाने वाला जवाब दिया  “हम किसी को रख के नहीं गए थे साब। अचानक में आ गए और हमें जाना था, तो सोचा ये पंडित लोग हैं, संभाल लेंगे मंदिर। हम उन्हें जानते नहीं हैं, बस कुंभ मेले में कभी मिले थे। प्रयागराज मेले में ऐसे लोग नंबर ले जाते हैं, हमारी उनसे कोई पहचान नहीं थी।” उन्होंने यह भी कहा कि न तो उन्हें नशीली दवा के बारे में कोई जानकारी थी और न ही उन्होंने उस कमरे की चाबी किसी को दी थी, जिसमें अक्षता को कैद किया गया था।

लेकिन सवाल उठता है कि अगर वे इन लोगों को जानते ही नहीं थे, तो उन्होंने इतनी बड़ी जिम्मेदारी किसी अनजान व्यक्ति को कैसे सौंप दी? कई लोगों ने पुजारी बालक दास को भी इस मामले में जांच के घेरे में लेने और उनकी लापरवाही के लिए सजा देने की मांग की है।

इस पूरे केस में पुलिस का रवैया भी बेहद शर्मनाक रहा। अगर एनआरआई कोस्टल पुलिस ने लापरवाही न की होती और समय पर सही कदम उठाए होते, तो शायद अक्षता आज जिंदा होती। सबसे बड़ा सवाल यह है कि पुलिस ने अक्षता की कॉल डिटेल और लोकेशन ट्रेसिंग पर उसी दिन से काम क्यों नहीं किया?

दरअसल, 6 जुलाई की दोपहर को अक्षता ने अपनी एक दोस्त को कॉल किया था और उसे अपनी परेशानियों के बारे में बताया था। उसने यह भी कहा था कि वह अब अपने माता-पिता के घर भी नहीं जा सकती, क्योंकि उसके इनलॉज उसके पिता के पेंशन फंड की मांग कर रहे थे। अगर पुलिस चाहती, तो आसानी से कॉल डिटेल से पता लगा सकती थी कि उसने उस दिन कब, किससे और कहां बात की थी। लेकिन पुलिस ने ऐसा कुछ भी नहीं किया।

उल्टा, अक्षता के माता-पिता और उसकी बहन कोमल ने पुलिस स्टेशन के कई चक्कर लगाए और अधिकारियों से मदद की गुहार लगाई, लेकिन पुलिस ने कोई ध्यान नहीं दिया। अक्षता की बहन कोमल का कहना है कि न तो पुलिस ने घरवालों से अक्षता की आखिरी लोकेशन शेयर की और न ही सीसीटीवी फुटेज दिखाए। पुलिस की इस लापरवाही की वजह से अक्षता को अपनी जान गंवानी पड़ी, और अब पूरा समाज न्याय की मांग कर रहा है।

अक्षता के गुनहगार सिर्फ तीन नहीं

इस केस में सिर्फ वे तीन अपराधी दोषी नहीं हैं, बल्कि अक्षता के पति कुनाल और उसके ससुराल वाले भी बराबर के गुनहगार हैं। उन्होंने अक्षता को हर दिन तिल-तिल कर मारा। दुख की बात यह है कि इन लोगों को उस मासूम तीन साल के बच्चे की भी परवाह नहीं थी। आखिर उस बच्चे का क्या दोष था? कुनाल और उसके परिवार ने एक बार भी नहीं सोचा कि जिसे वे हर दिन मानसिक और शारीरिक यातनाएं दे रहे हैं, वह एक मां भी थी।

अगर इस घटना में सबसे ज्यादा किसी ने कुछ खोया है, तो वह अक्षता का छोटा बेटा है। वह इतना मासूम है कि शायद अभी उसे इस त्रासदी की पूरी समझ भी न हो। अगर हम अक्षता की मानसिक और भावनात्मक स्थिति का विश्लेषण करें, तो हमें खुद को एक पल के लिए उसकी जगह रखकर सोचना होगा—एक ऐसी लड़की, जिसे हर दिन अपमान सहना पड़े, जिसे कभी प्यार से दो शब्द न कहे जाएं, जिसके चरित्र पर बिना वजह सवाल उठाए जाएं—उसकी मनोदशा कैसी होगी? उसकी उलझन, उसकी घुटन, उसकी पीड़ा कितनी गहरी होगी? ऐसे में कोई भी शख्स ऐसी जगह जाना चाहेगा, जहां उसे कुछ पल की शांति मिल सके।

अक्षता भी सुकून की तलाश में मंदिर गई थी, लेकिन वहां छिपे दरिंदों ने उसे अपना शिकार बना लिया। इन लोगों ने पहले विश्वास जीतने का नाटक किया और फिर भरोसे का गला घोंट दिया। सिंधुताई सकपाल ने सही कहा था—आज के दौर में एक लड़की के लिए श्मशान घाट और कब्रिस्तान से ज्यादा सुरक्षित कोई जगह नहीं, क्योंकि इंसानों से बेहतर तो मुर्दे हैं।

अक्षता अब हमारे बीच नहीं रही, लेकिन इस केस से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। कुनाल और उसके परिवार जैसे लोग हजारों की संख्या में हैं, जहां पत्नी और बहू को सिर्फ एक नौकरानी या एटीएम मशीन समझा जाता है। जब चीजें उनकी मर्जी के मुताबिक नहीं होतीं, तो वे उसे इंसान की तरह ट्रीट करना भी बंद कर देते हैं।

सबसे ज्यादा अफसोस उन माता-पिता के लिए होता है, जो अपनी बेटी को ऐसे जहरीले रिश्ते में फंसा हुआ देख भी कुछ नहीं कर पाते। कुछ इसे ‘भाग्य’ कहकर अपनी बेटी की जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेते हैं। लेकिन क्या यह सही है? माना कि शादीशुदा बेटी की जिंदगी में माता-पिता सीधा दखल नहीं दे सकते, लेकिन क्या यह मतलब है कि उन्हें अन्याय सहने के लिए छोड़ दिया जाए?

दुनिया में एक अजीब असंतुलन है—जहां बेटियां अच्छी होती हैं, वहां दामाद और ससुराल गलत निकलते हैं। और जहां दामाद और ससुराल अच्छे होते हैं, वहां उनकी कद्र करने वाली लड़की नहीं मिलती। इंसान की मानसिकता इतनी गिर चुकी है कि उसने मंदिर जैसे पवित्र स्थान का भी लिहाज नहीं किया।

इसलिए मेरी आप सभी से अपील है—किसी भी धार्मिक स्थल पर या किसी अनजान व्यक्ति पर आंख मूंदकर भरोसा न करें। हमेशा सतर्क रहें, अपने आसपास के माहौल को समझें और अपनी समस्याओं को अपरिचित लोगों से शेयर करने से बचें, क्योंकि आप नहीं जानते कि कौन आपकी कमजोरियों का फायदा उठा सकता है।

अगर आप भी मेरी इन बातों से सहमत हैं, तो अपनी राय जरूर साझा करें। हमें उम्मीद है कि अक्षता के गुनहगारों को कड़ी से कड़ी सजा मिलेगी, ताकि भविष्य में किसी और को इस तरह की त्रासदी से न गुजरना पड़े।

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