बागेश्वर धाम: श्रद्धा और विश्वास का केंद्र
मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित बागेश्वर धाम न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि इसे आस्था और चमत्कारों का प्रतीक माना जाता है। यहां आने वाले भक्त अपनी मनोकामनाएं पूरी होने की कामना करते हैं। धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री अपनी कथाओं और दिव्य दरबार के माध्यम से लाखों लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं।
हालांकि, इसी पवित्र स्थल पर एक सनसनीखेज अपराध की कहानी ने हर किसी को चौंका दिया। कानपुर के एक छोटे से गांव रेसा से जुड़े दिनेश अवस्थी की हत्या के आरोपी—उनकी पत्नी पूनम और छोटे भाई मनोज—ने पुलिस से बचने के लिए बागेश्वर धाम को अपना छिपने का ठिकाना बना लिया। लेकिन पुलिस की सतर्कता और रणनीति के चलते दोनों को पकड़ा गया।
यह घटना इस बात का प्रमाण है कि किसी भी अपराध को कितना भी छिपाने की कोशिश की जाए, सच सामने आ ही जाता है। बागेश्वर धाम, जो आस्था का केंद्र है, इस दर्दनाक कहानी का भी एक मूक गवाह बना।
शांत गांव में उठी तूफान की लहर
कानपुर के पास स्थित एक छोटे से गांव रेसा में लोग अपनी मेहनत और छोटी-छोटी खुशियों में मस्त रहते थे। इसी गांव में 45 वर्षीय दिनेश अवस्थी अपने परिवार के साथ रहते थे। दिनेश पेशे से एक ट्रक ड्राइवर थे और उनकी जिंदगी का बड़ा हिस्सा ट्रक चलाने में ही बीत गया था। उनका परिवार छोटा था—उनके दो छोटे भाई, मनोज और अश्विनी, उनके साथ रहते थे। दिनेश की शादी डेढ़ साल पहले पूनम नाम की एक लड़की से हुई थी, जो उनसे 12 साल छोटी थी। उनकी शादी गांव में चर्चा का विषय बनी रही क्योंकि उम्र के इस बड़े अंतर के बावजूद पूनम न केवल खूबसूरत थी बल्कि बहुत समझदार भी लगती थी।
हालांकि, दिनेश का काम ऐसा था कि उन्हें लंबे समय तक घर से दूर रहना पड़ता था। उनके छोटे भाई अश्विनी दिनभर मेहनत करते थे और देर रात घर लौटते थे। लेकिन मनोज, जो परिवार का सबसे छोटा भाई था, अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति था। वह अपने आवारा दोस्तों के साथ सारा दिन घूमता रहता और कभी कोई स्थायी काम नहीं करता। मनोज पर पहले भी 1997 और 2011 में अपराध के मामले दर्ज हुए थे, जिसके कारण उसे कोई काम पर नहीं रखता था।
हत्या: प्रेम, गुस्सा और धोखे का अंत
24 अप्रैल 2024 का दिन था। दिनेश ने अपनी पत्नी पूनम को सरप्राइज देने का फैसला किया। वह बिना बताए घर लौट आया। लेकिन जब उसने घर का दरवाजा खोला, तो जो दृश्य उसने देखा, उससे उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। दिनेश ने अपनी पत्नी पूनम और भाई मनोज को एक ही बिस्तर पर पाया।
गुस्से में दिनेश ने मनोज पर हमला कर दिया और पूनम पर भी हाथ उठाया। खुद को बचाने के लिए मनोज ने घर के अंदर से एक लाठी उठाई और दिनेश के सिर पर जोरदार वार किया। दिनेश वहीं गिर गया, लेकिन अभी जिंदा था। इस दौरान पूनम ने किचन से चाकू उठाया और दिनेश पर लगातार वार किए, जब तक कि उसने दम नहीं तोड़ दिया।
सबूत मिटाने की कोशिश
दिनेश की हत्या के बाद पूनम और मनोज ने उसकी लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई। उन्होंने लाश को टुकड़ों में काटकर एक बोरे में भर दिया और उसे गांव के तालाब में फेंकने का फैसला किया। रात के अंधेरे में, जब अश्विनी घर पर नहीं था, वे लाश को तालाब में फेंक आए। इसके बाद उन्होंने घर की सफाई की और ऐसा दिखाया जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
लेकिन, जैसा कि कहा जाता है, लाश चाहे कितनी भी छुपाई जाए, सच सामने आ ही जाता है। दो दिन बाद, तालाब में तैरता हुआ बोरा गांववालों की नजर में आ गया। जब बोरा बाहर निकाला गया, तो उसमें से लाश के टुकड़े और खून से सनी चीजें मिलीं। गांववालों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी।
पुलिस ने मौके पर पहुंचकर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा। रिपोर्ट में साफ हो गया कि दिनेश की मौत सिर पर डंडे से प्रहार और चाकू के कई वार से हुई थी। अश्विनी ने अपने भाई मनोज और भाभी पूनम पर हत्या का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करवाई।
बागेश्वर धाम में छुपे अपराधी: पुलिस की चतुराई से हुआ खुलासा
दिनेश अवस्थी की हत्या के बाद पूनम और मनोज गांव से फरार हो गए थे। महीनों तक पुलिस के हाथ खाली थे, लेकिन उनकी तलाश लगातार जारी थी। इसी दौरान पुलिस को एक अहम सुराग मिला—पूनम ने बागेश्वर धाम से अपने किसी रिश्तेदार को फोन किया था। कॉल ट्रेस करने के बाद पुलिस को पता चला कि दोनों अपराधी बागेश्वर धाम में छिपे हुए हैं।
बागेश्वर धाम, जहां हर दिन हजारों भक्त आते हैं, अपराधियों के छिपने के लिए एक सुरक्षित स्थान बन गया। साधुओं और भक्तों के बीच पूनम और मनोज ने खुद को साधारण भिक्षुओं जैसा दिखाने की कोशिश की। उन्हें भरोसा था कि इस भीड़भाड़ वाले धार्मिक स्थल में पुलिस उन्हें पहचान नहीं पाएगी।
पुलिस ने सीधे कार्रवाई करने के बजाय एक सूझ-बूझ भरी रणनीति अपनाई। साधुओं का वेश धारण करके पुलिस की एक टीम धाम में प्रवेश कर गई। अगले दो दिन तक पुलिस ने धाम के हर कोने पर नजर रखी। भक्तों की भीड़ और साधुओं के बीच सही अपराधियों को पहचानना आसान नहीं था।
पुलिस ने धैर्य बनाए रखा और उनका व्यवहार, हावभाव और गतिविधियां ध्यान से देखी। आखिरकार, उन्होंने पूनम और मनोज को पहचान लिया। हालांकि, दोनों अपराधी वहां भी निश्चिंत थे, क्योंकि उन्हें यकीन था कि इतने बड़े धार्मिक स्थल में पुलिस उन्हें पकड़ने में असफल रहेगी।
अगर पुलिस ने तुरंत पूनम और मनोज को गिरफ्तार करने की कोशिश की होती, तो भगदड़ मच सकती थी, और दोनों भागने में सफल हो सकते थे। लेकिन पुलिस ने बड़े ही संयम और सावधानी से काम लिया। दोनों को अलग-अलग समय पर धीरे से घेरा गया और पूछताछ के लिए बाहर ले जाया गया।
गिरफ्तारी के बाद, मनोज ने खुद को बचाने के लिए सारा दोष अपने ऊपर ले लिया। उसने दावा किया कि दिनेश की हत्या में पूनम का कोई हाथ नहीं था। लेकिन जब पुलिस ने पूनम से सख्ती से पूछताछ की, तो वह टूट गई और सच्चाई सामने आ गई। पूनम ने स्वीकार किया कि दिनेश की हत्या उनके और मनोज के अनैतिक संबंधों को छिपाने के लिए की गई थी।
पूनम और मनोज की गिरफ्तारी के बाद गांव में सनसनी फैल गई। यह घटना एक कड़वा सबक बन गई कि लालच, धोखा और अनैतिकता का अंत कभी अच्छा नहीं होता। दिनेश की मौत ने यह साबित कर दिया कि रिश्तों में ईमानदारी और भरोसे की कितनी अहमियत होती है।
इस अपराध ने गांववालों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि कैसे एक छोटी सी गलती या अनैतिक कदम किसी की जिंदगी को तबाह कर सकता है।
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