आज हम एक ऐसे सीरियल किलर की कहानी सुनने जा रहे हैं, जिसने न सिर्फ हत्या की, बल्कि पुलिस को भी खुलेआम चुनौती दी। एक ऐसा कातिल, जो जिस कमरे में खून करता था, वहां बैठकर खाना खाता था, और पुलिस को नाकों चने चबवा देता था। उसने सालों तक दिल्ली पुलिस को अपनी पहुंच से बाहर रखा। उसकी पहचान थी—चंद्रकांत झा।
बहुत से लोगों की तरह चंद्रकांत भी बिहार के एक छोटे से गांव से दिल्ली काम की तलाश में आया था। लेकिन आप सोचिए, क्या वजह थी कि बिहार का एक साधारण आदमी, जो एक दिहाड़ी मजदूर था, अचानक दिल्ली के सबसे खतरनाक सीरियल किलर्स में से एक बन गया? यह कहानी है चंद्रकांत झा की—एक ऐसे आदमी की, जिसने दिल्ली की गलियों में खौफ का पर्याय बनकर खून की हवाओं में अपने नाम की गूंज छोड़ दी।
कहानी शुरू होती है दिल्ली के तिहाड़ जेल से। यह एक विशाल जेल है, जो 400 एकड़ से भी ज्यादा क्षेत्र में फैला हुआ है, और दिल्ली पुलिस की सुरक्षा में रखा जाता है। इतना विशाल और कड़ी सुरक्षा वाला इलाका सुनकर आपको लगता होगा कि यहां कोई अपराध नहीं कर सकता। लेकिन आपको पता है, यहीं पर चंद्रकांत झा ने अपना खौफनाक खेल खेला था।
नवंबर 2003 की एक रात तिहाड़ जेल के गेट नंबर एक के बाहर पुलिस को एक प्लास्टिक में लिपटी हुई लाश मिली। इस लाश के पास एक चिट्ठी थी, जिसमें लिखा था—”मैं दिल्ली पुलिस के लिए और भी ऐसे ‘गिफ्ट्स’ लाता रहूंगा। मुझे किसी भी पुलिस से डर नहीं लगता। और अगर तुम मुझे नहीं पकड़ पाए, तो मैं ऐसे ही लोगों को मारता रहूंगा।”
तिहाड़ जेल में काम करने वाले पुलिस वालों के लिए यह घटना हमेशा यादगार रहेगी। चंद्रकांत झा की कहानी का यह पहला कदम था, जहां उसने न केवल हत्या की, बल्कि पुलिस को यह चेतावनी भी दी कि अगर उन्हें पकड़ना है, तो यह सिर्फ शुरुआत थी।
दिल्ली पुलिस के लिए दूसरा बड़ा झटका: एक और चुनौतीपूर्ण हत्याकांड
पुलिस ने इस मामले की छानबीन शुरू की, लेकिन शुरुआती दौर में उन्हें ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं मिला, जिस पर आगे की जांच की जा सके। दो साल बीत गए, लेकिन तिहाड़ जेल के बाहर जो लाश मिली थी, उसे किसने और क्यों फेंका था—इसका रहस्य अब तक नहीं सुलझा था। पुलिस यही सोच रही थी कि मामले में कोई ठोस दिशा मिलेगी या नहीं, लेकिन 20 अक्टूबर 2006 को पुलिस को एक और बड़ा झटका लगने वाला था।
इस दिन पुलिस के पास एक अजीब कॉल आई। कॉल करने वाले व्यक्ति ने जो जानकारी दी, उसे सुनकर पुलिस के होश उड़ गए। उसने कहा, “तिहाड़ जेल के गेट नंबर तीन के पास एक टोकरी में लाश रखी गई है।” यह सुनकर कई पुलिसकर्मी तुरंत गेट नंबर तीन के पास पहुंचे। और जैसे ही वे वहां पहुंचे, उन्हें पता चला कि कॉल करने वाला मजाक नहीं कर रहा था। सच में, गेट के सामने वाली सड़क पर एक लाश टोकरी में रखी हुई थी।
लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि लाश के साथ-साथ एक चिट्ठी भी मिली, और यह चिट्ठी दिल्ली पुलिस के नाम थी। पुलिस जब लेटर पढ़ने लगी, तो उन्हें समझ में आया कि हत्यारे ने उन्हें फिर से चुनौती दी थी। लेटर में साफ लिखा था, “मैं बहुत समय से एक नाजायज केस झेल रहा था, लेकिन अब मैंने सचमुच एक मर्डर किया है। तुम लोग अगर मुझे पकड़ सकते हो, तो पकड़ कर दिखाओ।”
इस चिट्ठी ने पुलिस के सामने एक नई तस्वीर खींच दी। अब यह साफ था कि हत्यारा कोई ऐसा व्यक्ति है, जो दिल्ली पुलिस से नफरत करता है और जिसकी पुलिस के साथ पुरानी हिस्ट्री कुछ खास अच्छी नहीं रही। यह घटना पुलिस के लिए गंभीर संकेत थी, क्योंकि अब तक तिहाड़ जेल के बाहर दो लाशें मिल चुकी थीं। पुलिस ने इस मामले की और गहरी छानबीन शुरू कर दी, लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि आगे उन्हें कितनी और लाशें इसी तरह से मिलने वाली हैं।
पुलिस को मिली अहम क्लू: चंद्रकांत झा की तलाश तेज़ हुई
18 मई 2007 को एक और लाश तिहाड़ जेल के बाहर मिली, और वह भी वही गेट नंबर तीन के पास। अब तक पुलिस के लिए यह मामला बेहद उलझा हुआ था। हर लाश को टुकड़ों में काटकर तिहाड़ जेल के बाहर फेंक दिया जा रहा था, जिससे उन्हें पहचान पाना मुश्किल हो रहा था। स्थिति अब और भी तनावपूर्ण हो गई थी क्योंकि सीरियल किलर बार-बार पुलिस को चुनौती दे रहा था, और दबाव बढ़ रहा था कि उसे जल्दी से जल्दी पकड़ लिया जाए।
जांच में अब तेजी लाई गई, और अंततः पुलिस को उस सीरियल किलर की एक गलती का फायदा हुआ। इस दौरान पुलिस को याद आया कि किलर ने अपनी चिट्ठियों में कुछ नामों का जिक्र किया था, जिनसे उसे खास दुश्मनी थी। इन नामों में से एक था एडिशनल डिप्टी कमिश्नर मनीष अग्रवाल और दूसरा था हवलदार बलबीर सिंह, जो उस समय तिहाड़ जेल में वॉर्डन थे।
इन क्लूज़ के आधार पर पुलिस को और भी सुराग मिलने लगे। अब यह स्पष्ट हो चुका था कि हत्यारा कोई ऐसा व्यक्ति था, जो पहले तिहाड़ जेल में बंद था और वहां अपने साथ हुए बुरे बर्ताव के कारण बदला लेने की योजना बना चुका था। एक और चिट्ठी में किलर ने यह भी स्वीकार किया था कि नवंबर 2003 में जो लाश मिली थी, वह भी उसी ने डंप की थी। इससे पुलिस को यह जानकारी मिली कि किलर 2003 से पहले तिहाड़ जेल में था।
अब पुलिस के पास एक अहम क्लू था—हत्यारे ने अपने आखिरी कृत्य के बाद हरिनगर के एसएचओ से संपर्क किया था। एसएचओ ने हत्यारे से जानबूझकर लंबी बातचीत की, ताकि उससे और जानकारी हासिल की जा सके। इस बातचीत के दौरान, पुलिस को एक मोटा अंदाजा हो गया कि यह किलर कौन हो सकता है।
पुलिस ने क्राइम रिकॉर्ड और अन्य जानकारियों के आधार पर चार मुख्य संदिग्धों की पहचान की, और उनमें से एक था चंद्रकांत झा। अब पुलिस का काम काफी आसान हो गया था। उन्हें बस संदिग्धों की हैंडराइटिंग का मिलान करना था, ताकि वह यह सुनिश्चित कर सकें कि जो लेटर लाशों के साथ मिले थे, वो चंद्रकांत झा के ही थे।
हालांकि, अब एक और समस्या सामने आई: चंद्रकांत झा अपनी लोकेशन बदलता जा रहा था और पुलिस से बचने के लिए लगातार अपना एड्रेस बदलता था। लेकिन अब पुलिस उसके बेहद करीब पहुंच चुकी थी।
चंद्रकांत झा का खुलासा: क्यों मारे गए उसके करीबी लोग?
पुलिस ने चंद्रकांत झा के चार प्रमुख हाइडआउट्स का पता लगाया—यमुना बिहार, अलीपुर, बडोला गांव, और हैदरपुर। इन जगहों पर वह छिपता था, लेकिन पुलिस के पास अब उसका एक अहम क्लू था: चंद्रकांत झा एक स्कूटर में फिट की गई रिक्शा चलाता था। महीनों की मेहनत के बाद, पुलिस ने उसे तब पकड़ा जब वह अलीपुर में अपने बच्चों के साथ हलवा खा रहा था। गिरफ्तारी के बाद, पुलिस ने उसके मकान की तलाशी ली और वहां खून से सने चाकू पाए। इन चाकुओं पर लगे खून का सैंपल जब चंद्रकांत झा के ताजे शिकार दिलीप मंडल के ब्लड से मैच किया, तो मामला पूरी तरह से साफ हो गया।
इससे भी ज्यादा अहम था, चंद्रकांत की हैंडराइटिंग का मिलान एक चिट्ठी से हुआ, जो उसने तिहाड़ जेल के पास छोड़ी थी। यह सब पुख्ता प्रमाण थे कि दिल्ली के सबसे खूंखार और बेरहम किलर्स में से एक अब पुलिस के हाथ लग चुका था। लेकिन अब पुलिस का ध्यान था चंद्रकांत झा के मोटिव पर—क्यों उसने यह खौ़फनाक हत्याएं कीं और आखिर वह कौन लोग थे, जिनकी लाशें तिहाड़ जेल के पास फेंकी गई थीं?
जैसे-जैसे चंद्रकांत झा ने पुलिस को उन हत्याओं और उनके पीछे के मकसद के बारे में बताना शुरू किया, कुछ ऐसी चौंकाने वाली बातें सामने आईं, जो किसी को भी हैरान कर सकती थीं। पुलिस को सबसे पहले यह पता चला कि चंद्रकांत ने सिर्फ तीन हत्याएं नहीं की थीं। तीन लाशें तो तिहाड़ जेल के पास मिलीं, लेकिन इसके अलावा उसने और भी लोगों की हत्या की थी। एक शिकार की लाश उसने 2003 में मुखमेलपुर के सीवेज ट्रैक के पास फेंकी थी। एक और शिकार मंगोलपुरी, नॉर्थ वेस्ट दिल्ली के पास एक सुलभ शौचालय के सामने मिला था।
लेकिन इन सब घटनाओं में सबसे हैरान कर देने वाली बात यह थी कि चंद्रकांत झा के ये शिकार उसके दोस्त या फिर उसके साथ काम करने वाले लोग थे। आखिर वह क्यों अपने ही करीबी लोगों को इस तरह मारकर पुलिस को मौका दे रहा था? इसका जवाब जानने के लिए पुलिस को चंद्रकांत झा की बैकस्टोरी की गहराई में उतरना पड़ा।
चंद्रकांत झा की अंधेरी जिंदगी: कैसे एक मिडिल क्लास लड़का बन गया किलर?
चंद्रकांत झा बिहार के गोसाई गांव की एक मिडिल क्लास फैमिली से था। उसके पिता, राधेका झा, इरिगेशन डिपार्टमेंट में काम करते थे, और मां चंपा देवी एक स्कूल टीचर थीं। इस परिवार में, चंद्रकांत का पालन-पोषण हुआ था, लेकिन शायद आप यह जानकर हैरान होंगे कि चंद्रकांत जैसे खौ़फनाक सीरियल किलर के दो भाई खुद सीआरपीएफ और बिहार स्टेट पुलिस में थे। लेकिन, चंद्रकांत के लिए यह माहौल कुछ खास नहीं था। उसकी मां अपनी नौकरी के कारण अक्सर घर पर नहीं रहती थीं, और जब वह घर पर होती थीं, तो उनका गुस्सैल और सख्त स्वभाव था। यही वजह थी कि चंद्रकांत को बचपन में वह प्यार और देखभाल नहीं मिली, जिसकी उसे आवश्यकता थी।
चंद्रकांत का पढ़ाई में कोई खास मन नहीं था, और आठवीं कक्षा में ही उसने स्कूल छोड़ दिया था। इसके बाद वह दिल्ली आकर आजादपुर मंडी में सब्जी बेचने लगा। यह वह समय था जब चंद्रकांत का स्वभाव काफी गुस्सैल हो गया था, और वह किसी भी गलत बात को बर्दाश्त नहीं कर पाता था, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो। मंडी में एक सुपरवाइजर, पंडित नाम का आदमी था, जो दुकान लगाने के लिए चंद्रकांत से भारी रकम वसूलता था। यह बात चंद्रकांत को बिल्कुल भी पसंद नहीं आई, और एक दिन पंडित के साथ उसका झगड़ा इतना बढ़ा कि चंद्रकांत ने तेज धार वाले चाकू से पंडित का हाथ काट दिया। पंडित डर कर पुलिस के पास गया और चंद्रकांत के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई, जिसके चलते उसे तीन साल जेल में बिताने पड़े।
यह वही समय था, जब चंद्रकांत का सामना हवलदार बलवीर सिंह से हुआ। बलवीर सिंह ने उसे जेल में बुरी तरह से प्रताड़ित किया। वह अक्सर चंद्रकांत के सारे कपड़े उतरवा देता और उसे जेल में पीटता था। इस अत्याचार ने चंद्रकांत की मानसिकता को पूरी तरह से बदल दिया। जेल में होने वाली इस अमानवीय बर्ताव के कारण, चंद्रकांत ने पुलिस और सिस्टम से बदला लेने की योजना बनाई। वह पहले एक संवेदनशील इंसान था, जो बिहार से आए इमीग्रेंट्स की मदद करता था, लेकिन अब वह एक हिंसक इंसान बन चुका था, जो बदले की भावना से प्रेरित था।
चंद्रकांत की शादी हुई और उसके पांच बच्चे भी हुए, लेकिन उसने अपने परिवार को अपने पास नहीं रखा। उसे डर था कि पुलिस उसकी पत्नी और बच्चों को परेशान करेगी। हालांकि, वह अभी भी बिहार से आए इमीग्रेंट्स से दोस्ती करता और उनकी मदद करता था, लेकिन जिन लोगों ने उसे थोड़ा सा भी धोखा दिया या जिनका व्यवहार उसके हिसाब से अच्छा नहीं था, उनसे उसे गहरी नफरत हो जाती थी।
चंद्रकांत का पहला शिकार वही पंडित था, जिसके साथ उसका झगड़ा हुआ था। पंडित की हत्या के बाद पुलिस ने उसे फिर से गिरफ्तार किया, लेकिन पुख्ता सबूत न मिलने की वजह से वह बरी हो गया। यही वह मोड़ था, जहां चंद्रकांत की जिंदगी ने एक खौ़फनाक मोड़ लिया, और उसने अपनी बदला लेने की राह पर चलना शुरू किया।
चंद्रकांत झा का गुस्सा और हिंसा का सफर: एक और शिकार
चंद्रकांत झा ने अपने आत्मरक्षा के लिए कराटे भी सीखा था, और पंडित के मर्डर के बाद कुछ वक्त तक उसकी जिंदगी सामान्य ही चल रही थी। लेकिन फिर एक घटना ने उसे पूरी तरह से ट्रिगर कर दिया, और उसके अंदर का शैतान जाग गया। उसका एक साथी, शेखर, उसके साथ ही रहता था। शेखर ने चंद्रकांत से कहा था कि वह शराब को हाथ तक नहीं लगाता, लेकिन सचाई यह थी कि शेखर को शराब पीने की आदत थी। जब चंद्रकांत को यह पता चला, तो उसे गुस्सा आया। उसने शेखर से कहा कि वह उसे झूठ बोलने की सजा देगा। शेखर ने इसे मजाक समझा और इसका कोई खास मतलब नहीं निकाला।
लेकिन उसे यह नहीं पता था कि यह मजाक उसकी जिंदगी का आखिरी पल साबित होगा। उसी दिन, चंद्रकांत ने शेखर का गला घोटकर उसकी हत्या कर दी। जब उसने शेखर की लाश देखी, तो उसे किसी भी तरह का पछतावा नहीं हुआ। उल्टा, उस हत्या को उसने एक “वर्क ऑफ आर्ट” मान लिया और शेखर की लाश की फोटो भी खींची, जिसे उसने अपने पॉइंट एंड शूट कैमरे से लिया। इसके बाद, चंद्रकांत ने शेखर की लाश को सीवेज ट्रेन में फेंक दिया। यह चंद्रकांत का दूसरा हत्याकांड था, और वह अब और भी खतरनाक हो गया था।
चंद्रकांत का तीसरा मर्डर उमेश नामक व्यक्ति का था, जिसकी नौकरी उसने ही लगवाई थी। इस बार, उमेश की किसी बात पर झूठ बोलने से चंद्रकांत पूरी तरह से ट्रिगर हो गया और उसने उसकी बेरहमी से हत्या कर दी। इस बार, चंद्रकांत ने हत्या के बाद उमेश की लाश के टुकड़े भी किए। यही वही लाश थी, जिसे उसने सबसे पहले तिहाड़ जेल के गेट नंबर एक के पास चिट्ठी के साथ छोड़ दिया था।
इसके बाद, चंद्रकांत दो साल तक शांत रहा, लेकिन 2005 में उसने फिर से हत्या की और इस बार गुड्डू नामक व्यक्ति को सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि उसे गुड्डू का गांजा पीना बिल्कुल पसंद नहीं था। गुड्डू की लाश मंगोलपुरी के एक सुलभ शौचालय के पास मिली थी। चंद्रकांत का यह कदम एक बार फिर साबित करता है कि उसके अंदर इंसानियत का नामों निशान नहीं बचा था, और उसकी हिंसा की सीमा अब पूरी तरह टूट चुकी थी।
चंद्रकांत झा: एक और हत्या और बचने वाले की कहानी
2006 में, चंद्रकांत झा ने अपने एक साथी अमित मंडल की हत्या कर दी थी क्योंकि उसे शक था कि वह लड़कियों पर बुरी नजर रखता है। अमित मंडल की लाश पुलिस को तिहाड़ जेल के गेट नंबर तीन के पास मिली थी, और चंद्रकांत ने इसे मारने के बाद पुलिस को मजाक बनाने के लिए फोन भी किया था।
अप्रैल 2007 में, चंद्रकांत ने उपेंद्र नाम के एक शख्स को सिर्फ इसलिए मार दिया क्योंकि उसे शक था कि उपेंद्र का अफेयर उसकी बेटी की किसी दोस्त के साथ है। जब पुलिस ने चंद्रकांत से बयान लिया, तो उसने बताया कि उपेंद्र की हत्या के बाद वह आराम से अपने कमरे में खून से सने फर्श पर बैठा और खाना खाते हुए उसकी लाश को घूरता रहा। खाने के बाद, चंद्रकांत ने उपेंद्र की लाश को कई टुकड़ों में काटा और फिर उन टुकड़ों को दिल्ली के 30 हजारी कोर्ट और अन्य जगहों पर फैला दिया।
इसके बाद, एक और शॉकिंग घटना मई 2007 में हुई, जब चंद्रकांत ने अपने दोस्त दिलीप को सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि दिलीप ने उसके कमरे में नॉनवेज खाकर झूठी ताली को वहीं मेच पर छोड़ दिया। दिलीप की लाश वह तीसरी लाश थी, जिसे चंद्रकांत ने तिहाड़ जेल की बाउंड्री के पास छोड़ा था।
यह सभी हत्याएं वही हैं जिनके बारे में पब्लिक डोमेन में जानकारी उपलब्ध है। लेकिन चंद्रकांत के गांव वालों के अनुसार, उसने और भी कई मर्डर किए हैं। गोसाई गांव, जहां चंद्रकांत का बचपन बीता था, के लोग आज भी उसके खौफ में जीते हैं। चंद्रकांत के केस में सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि उसने किसी भी मर्डर के लिए बड़ी वजह नहीं ढूंढी। छोटी-छोटी बातों के लिए उसने अपने दोस्तों की हत्या कर दी—वह बातें जिन्हें आम लोग इग्नोर करके आगे बढ़ जाते हैं।
चंद्रकांत ने अपने एक कमरे वाले मामूली से घर में इतनी भयानक हत्याएं कीं, जिनकी लाश की फोटो भी ली और उन्हें मारने के बाद वहीं बैठकर खाना भी खाया। यह सब साइकोपैथिक टेंडेंसीज को दर्शाता है, जो यह साबित करता है कि वह कितना मानसिक रूप से विकृत और खतरनाक इंसान था।
चंद्रकांत के शिकारों के बारे में तो बहुत से लोग जानते हैं, लेकिन जिन लोगों ने उसकी कातिल निगाहों से बचने में कामयाबी पाई, उनके बारे में कम ही बात की जाती है। उन्हीं बचने वालों में से एक था जाधव, जिसे चंद्रकांत से अच्छी जान पहचान थी।
एक दिन, चंद्रकांत ने जाधव को अपने घर बुलाया। जब जाधव अंदर गया, तो वह देख कर हैरान रह गया कि कमरे में तीन लोग रस्सियों से बंधे हुए थे और उनकी आंखों में डर साफ दिख रहा था। चंद्रकांत ने जाधव से कहा कि उसे इन तीनों को मारने में मदद चाहिए। जाधव थोड़ा घबराया, लेकिन उसे समझ में आ गया कि अगर उसने चंद्रकांत की बात नहीं मानी, तो उसका हाल भी इन तीनों जैसा हो सकता है।
तभी जाधव के दिमाग में एक आइडिया आया। उसने चंद्रकांत से कहा कि उसे बहुत भूख लगी है और वह चंद्रकांत की मदद तभी कर सकेगा जब उसे खाना मिलेगा। चंद्रकांत उसके लिए खाना लेने बाहर चला गया। जैसे ही चंद्रकांत बाहर गया, जाधव ने फुर्ती दिखाई और उन तीनों को आजाद कर दिया। वे सभी अपनी जान बचाकर घर से भाग गए।
यह घटना दिखाती है कि चंद्रकांत जितना खतरनाक था, उससे बचने के लिए कुछ लोग कितने स्मार्ट और साहसी भी थे।
चंद्रकांत झा का जेल में रहना और न्याय प्रणाली का योगदान
चंद्रकांत झा जेल में है, लेकिन जाधव और उसके साथ भागे हुए लोगों के मन में अभी भी उसका डर ताजा है। उन्हें अब भी लगता है कि अगर चंद्रकांत जेल से छूटा, तो वह उन्हें जरूर मार डालेगा। चंद्रकांत की हिम्मत इतनी बढ़ गई थी कि उसने न सिर्फ हत्याएं कीं, बल्कि जस्टिस सिस्टम को भी चुनौती दी। इस पर विचार करते हुए यह समझना जरूरी है कि चंद्रकांत को इतनी हिम्मत आखिर कैसे मिली।
इसमें एक हिस्सा हमारे जस्टिस सिस्टम का भी है। चंद्रकांत झा को यह लगता था कि पुलिस डिपार्टमेंट नाकारा है और वह उसे पकड़ नहीं सकता। यही कारण था कि वह बहुत ओवरकॉन्फिडेंट हो गया था। जब उसका कोर्ट में ट्रायल हुआ, तो पुलिस की एक बड़ी गलती ने उसकी जमानत मिलवा दी।
गलती यह थी कि पुलिस को जब लाश के पास से लेटर मिला, तो उसे सील बंद नहीं किया गया। वह लेटर एक पुलिस वाले से दूसरे पुलिस वाले के हाथों में घूमता रहा और फिर वह फॉरेंसिक डिपार्टमेंट को बिना सील किए भेज दिया गया। इसके अलावा, चंद्रकांत झा के खिलाफ सात लोगों के हत्याओं की जो चार्जशीट दायर की गई थी, उसमें उस लेटर का कहीं कोई उल्लेख नहीं था। इस कारण कोर्ट ने चंद्रकांत को जमानत दे दी।
लेकिन इस बार पुलिस उसे जाने देने के मूड में नहीं थी। उन्होंने फिर से अंतिम विक्टिम दिलीप मंडल के ब्लड सैंपल के आधार पर केस को फिर से अर्ज किया। अदालत को यह नया और ठोस सबूत अच्छा लगा, और इस आधार पर चंद्रकांत की जमानत खारिज कर दी गई। इसके बाद, सातों हत्याओं के लिए उसके खिलाफ मुकदमा चला।
5 फरवरी 2013 को लोअर कोर्ट ने चंद्रकांत झा को फांसी और उम्रकैद की सजा सुनाई। लेकिन जब यह मामला ऊपरी अदालत में पहुंचा, तो उसकी सजा को पूरी तरह से उम्र कैद में बदल दिया गया।
इस तरह, चंद्रकांत झा की कहानी यह दर्शाती है कि न्याय प्रणाली के भीतर की कुछ खामियों का फायदा उठाते हुए वह कैसे अपनी हिम्मत बढ़ा पाया, लेकिन अंततः न्याय ने उसे सजा दी।
चंद्रकांत झा और मानसिक समस्याएँ
चंद्रकांत झा अब उसी तिहाड़ जेल में बंद है, जिसके बाहर उसने कभी लाशें फेंक कर पुलिस को परेशान किया था। इस केस से यह साफ होता है कि चंद्रकांत के अंदर बचपन से ही गंभीर मानसिक समस्याएं थीं। जब वह दिल्ली गया और जेल के अंदर खराब कंडीशंस का सामना किया, तो ये समस्याएं और भी ज्यादा बढ़ गईं। छोटी-छोटी बातों पर अपने दोस्तों या काम करने वालों को मार डालना यह दर्शाता है कि चंद्रकांत का सहनशीलता स्तर बहुत कम था, और जब भी कोई उसका कहना नहीं मानता था, तो वह गुस्से में आकर हत्या तक कर देता था।
चंद्रकांत ने जेल में 15 साल बिताए, और फिर 16 अगस्त 2023 को उसे 90 दिन के पेरोल पर रिहा किया गया था। उसने कहा था कि वह अपनी सबसे बड़ी बेटी के लिए योग्य वर ढूंढने के लिए बाहर जाना चाहता था, क्योंकि वह चार बेटियों का पिता है, और इस कारण उसका बाहर जाना जरूरी था। जब वह बाहर था, पुलिस ने उस पर कई तरह की बंदिशें लगाईं, जो जरूरी भी थीं।
यह केस हमें यह समझाता है कि मानसिक समस्याएं सिर्फ मिडिल क्लास या अपर क्लास तक सीमित नहीं होतीं; गरीब और निम्न वर्ग के लोग भी इस प्रकार की समस्याओं से जूझते हैं, जिनका समाधान समय रहते होना चाहिए। यदि इन समस्याओं को समय पर हल किया जाता, तो शायद चंद्रकांत झा जैसा कोई अपराधी न बनता।
तो दोस्तों, क्या चंद्रकांत की सजा उसके लिए काफी है? क्या आपको लगता है कि उसे और सजा मिलनी चाहिए थी? हमें कमेंट करके जरूर बताएं।