दीपा ने अपने घर वालों के लाख मना करने के बावजूद गांव की दूसरी जाति के युवक समरजीत से शादी कर ली। लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि समरजीत, जो कभी दीपा का प्रेमी था, उसकी हत्या कर बैठा और शव को जमीन में दफनाकर उस पर आम का पेड़ लगा दिया?
करीब एक साल बाद, समरजीत दिल्ली से अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र के साथ अपने गांव धनज लौटा। उसकी बदली हुई शख्सियत और आधुनिक पहनावा देखकर मोहल्ले वालों को समझ आ गया कि वह दिल्ली में अच्छा कमा रहा है। उसका बात करने का अंदाज़ भी गांव वालों से काफी अलग हो चुका था। धनज गांव, जो उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के कुंडेभार थाना क्षेत्र में है, में सब महसूस कर रहे थे कि समरजीत की हालत अब पहले से बेहतर हो गई है। लेकिन एक बात सबको खटक रही थी—समरजीत के साथ दीपा क्यों नहीं लौटी?
दरअसल, दीपा और समरजीत के बीच लंबे समय से प्रेम संबंध थे। करीब एक साल पहले दोनों गांव से भाग गए थे। बाद में दीपा के पिता रामस्नेही को पता चला कि दोनों दिल्ली के पुल प्रहलादपुर गांव में रह रहे हैं। अपनी बेटी के इस कदम से रामस्नेही बदनामी झेल रहे थे।
समरजीत के गांव लौटने पर रामस्नेही उससे बेटी के बारे में पूछने से खुद को रोक नहीं पाए। इस पर समरजीत ने बताया कि दीपा तो करीब एक महीने पहले नाराज होकर दिल्ली से गांव लौट आई थी। उसने रामस्नेही से कहा, “अब तुम्हें ही पता होगा कि वह कहां है।”
यह सुनकर रामस्नेही सन्न रह गए। उन्होंने कहा, “यह तुम क्या कह रहे हो? दीपा तो यहां कभी आई ही नहीं।”
रामस्नेही ने तुरंत अपने रिश्तेदारों और जान-पहचान वालों से संपर्क किया, लेकिन कहीं से भी दीपा का कोई सुराग नहीं मिला। बात करीब एक महीने पुरानी थी, और अब रामस्नेही को समझ नहीं आ रहा था कि अपनी बेटी को कहां ढूंढें।
दिसंबर 2013 के आखिरी हफ्ते में यह मामला रामस्नेही की चिंता का सबसे बड़ा कारण बन चुका था। दीपा का अचानक गायब हो जाना और समरजीत का अजीब-सा व्यवहार एक भयानक रहस्य की ओर इशारा कर रहा था।
बेटी की गुमशुदगी और समरजीत का छल
समरजीत के साथ उसके भाई अरविंद और धर्मेंद्र भी गांव लौटे थे। रामस्नेही ने इन दोनों से भी अपनी बेटी दीपा के बारे में पूछा, लेकिन वे भी कोई ठोस जवाब देने में नाकाम रहे। करीब 10-11 दिन गांव में बिताने के बाद समरजीत वापस दिल्ली लौट गया। लेकिन दीपा की कोई खबर न मिलने से रामस्नेही और उनकी पत्नी बेहद परेशान थे।
उन्हें यकीन था कि समरजीत दिल्ली के पुल प्रहलादपुर इलाके में रहता है। वहीं उनके गांव का एक अन्य व्यक्ति भी रहता था। जनवरी 2014 के पहले हफ्ते में रामस्नेही उसी व्यक्ति के साथ पुल प्रहलादपुर पहुंचा। थोड़ी खोजबीन के बाद वह समरजीत के कमरे तक पहुंच गया। वहां आसपास रहने वाले लोगों को दीपा का फोटो दिखाकर उसने बेटी के बारे में पूछताछ की।
लोगों ने बताया कि दीपा को आखिरी बार 22 दिसंबर 2013 तक समरजीत के साथ देखा गया था। इसके बाद वह दिखाई नहीं दी। यह सुनकर रामस्नेही के शक को बल मिला, क्योंकि समरजीत ने उससे कहा था कि दीपा नवंबर 2013 में ही नाराज होकर दिल्ली छोड़ चुकी थी।
इस विरोधाभास ने रामस्नेही को यकीन दिला दिया कि समरजीत झूठ बोल रहा है और उसे दीपा के बारे में सब कुछ पता है। अब रामस्नेही के मन में यह ख्याल घर करने लगा कि कहीं दीपा के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई।
6 जनवरी 2014 की दोपहर रामस्नेही पुल प्रहलादपुर थाने पहुंचा। वहां उसने थाना प्रभारी धर्मदेव को अपनी बेटी की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई। उसने बेटी का हुलिया बताया और आरोप लगाया कि समरजीत, उसके भाई अरविंद और धर्मेंद्र ने अपने मामा नरेंद्र, राजेंद्र और वीरेंद्र के साथ मिलकर दीपा को अगवा किया और शायद उसके साथ कोई अप्रिय घटना को अंजाम दिया है।
थाना प्रभारी धर्मदेव ने तुरंत रामस्नेही की तहरीर पर भारतीय दंड संहिता की धारा 365 और 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज की और एसीपी जसवीर सिंह मलिक को मामले की जानकारी दी। चूंकि मामला एक जवान लड़की के अपहरण का था, एसीपी ने थाना प्रभारी धर्मदेव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया।
टीम में इंस्पेक्टर आर. एस. नरूका, सब-इंस्पेक्टर किशोर कुमार, युद्धवीर सिंह, हेड कांस्टेबल श्रवण कुमार, नईम अहमद, कांस्टेबल अनुज कुमार तोमर, और धर्म सिंह समेत अन्य पुलिसकर्मी शामिल थे।
इस बीच, जब समरजीत और उसके भाइयों को पता चला कि रामस्नेही पुल प्रहलादपुर आ पहुंचा है, तो वे तीनों दिल्ली से फरार हो गए। अब यह मामला न सिर्फ दीपा की गुमशुदगी, बल्कि संभावित अपराध की ओर इशारा कर रहा था।
दीपा की हत्या और समरजीत का खौफनाक सच
जब पुलिस टीम ने समरजीत और उसके भाइयों के कमरे पर छापा मारा, तो वहां कोई नहीं मिला। चूंकि तीनों आरोपी रामस्नेही के गांव धनजई के ही रहने वाले थे, पुलिस ने रामस्नेही को साथ लिया और गांव पहुंची। लेकिन वहां भी न तो समरजीत मिला, न उसके घर के बाकी लोग। अब पुलिस को यकीन हो गया कि मामला गंभीर है और सभी फरार हैं।
गांव के लोगों से पूछताछ के बाद पुलिस को पता चला कि समरजीत के कई रिश्तेदार सुल्तानपुर और फैजाबाद के अलग-अलग गांवों में रहते हैं। पुलिस ने उन सभी जगहों पर दबिश दी, लेकिन आरोपियों का कोई सुराग नहीं मिला। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने समरजीत के रिश्तेदारों पर दबाव बनाया कि वे आरोपियों को जल्द से जल्द सरेंडर करने के लिए कहें।
इधर, रामस्नेही अपनी बेटी दीपा की चिंता में पागल हो रहा था। वह बार-बार पुलिस से गुहार लगाता कि उसकी बेटी को जल्द से जल्द तलाशा जाए। पुलिस समझ चुकी थी कि समरजीत और उसके भाइयों से पूछताछ किए बिना दीपा के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलेगी।
समरजीत का भांडा फूटता है
9 जनवरी 2014 को पुलिस को सूचना मिली कि समरजीत अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र, और मामा नरेंद्र के साथ सुल्तानपुर के नगपुर गांव में है। पुलिस तुरंत वहां पहुंची, और सूचना सही निकली। चारों को हिरासत में ले लिया गया।
थाने में सबसे पहले समरजीत से दीपा के बारे में पूछा गया। उसने वही पुरानी कहानी दोहराई कि नवंबर 2013 में दीपा उससे झगड़कर गांव लौट गई थी। लेकिन थाना प्रभारी धर्मदेव ने सख्ती से कहा, “पुल प्रहलादपुर के लोगों ने बताया है कि दीपा को 23 दिसंबर 2013 तक तुम्हारे साथ देखा गया था। अब तुम सच बताओ, वरना परिणाम भुगतने को तैयार रहो।”
यह सुनते ही समरजीत घबरा गया। उसे लगा कि अगर उसने सच नहीं बताया तो पुलिस उसे बेरहमी से पीटेगी। डरते हुए उसने कबूल किया, “सर, हमने दीपा को मार दिया है।”
लाश की बरामदगी
थाना प्रभारी ने पूछा, “लाश कहां है?”
समरजीत ने जवाब दिया, “सर, बाग में दफन कर दी है।”
इसके बाद पुलिस चारों आरोपियों को लेकर उस बाग में पहुंची, जहां दीपा की लाश दफनाई गई थी। समरजीत के मामा नरेंद्र ने आम के बाग में एक पेड़ के नीचे जगह की पहचान की। वहां पुलिस ने खुदाई कराई, तो एक महिला की लाश शाल में बंधी हुई मिली।
रामस्नेही, जो पुलिस के साथ मौजूद था, लाश देखते ही फूट-फूट कर रो पड़ा। उसने कहा, “साहब, यही मेरी दीपा है। देखिए, इन्होंने मेरी बेटी का क्या हाल कर दिया। इन्हें कड़ी से कड़ी सजा दीजिए।”
गांव के लोग भी यह सुनकर स्तब्ध थे। वे सोच रहे थे कि समरजीत ने दीपा से इतना प्यार किया कि दोनों गांव से भाग गए थे। फिर उसने ऐसा क्यों किया?
पुलिस ने चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। रामस्नेही की आंखों के सामने उसकी बेटी के साथ हुआ अन्याय और अपराध का पर्दाफाश हो चुका था। अब वह अपनी बेटी के लिए न्याय की मांग कर रहा था।
दीपा और समरजीत की प्रेम कहानी: जुनून, विरोध और अंत
पुलिस ने जब दीपा की लाश का मुआयना किया, तो उसके गले पर निशान पाए गए, जिससे अंदाजा हुआ कि उसकी हत्या गला घोंटकर की गई थी। आवश्यक जांच-पड़ताल के बाद पुलिस ने लाश को सुल्तानपुर पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया और चारों आरोपियों—समरजीत, अरविंद, धर्मेंद्र और उनके मामा नरेंद्र—को गिरफ्तार कर दिल्ली ले आई। थाना पुल प्रहलादपुर में जब इनसे पूछताछ की गई, तो दीपा और समरजीत के प्रेम प्रसंग से लेकर हत्या तक की जो कहानी सामने आई, वह बेहद दिलचस्प और जटिल थी।
प्रेम की शुरुआत
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के थाना कुंडे भार क्षेत्र का एक गांव धनजई, जहां सूर्यभान सिंह अपनी पत्नी और तीन बेटों—धर्मेंद्र, अरविंद, और समरजीत के साथ रहता था। अरविंद और धर्मेंद्र शादीशुदा थे और दिल्ली में ड्राइवर की नौकरी करते थे, जबकि सबसे छोटा बेटा समरजीत गांव में ही रहकर खेती करता था।
समरजीत को खेती से ज्यादा शौक अपने पहनावे और लुक्स का था। जवान और उत्साही समरजीत का मन किसी ऐसे साथी की तलाश में था, जिससे वह अपने दिल की बात कह सके। इसी दौरान उसकी नजरें गांव के रामसनेही की 20 वर्षीय बेटी दीपा पर पड़ीं। तीखे नैन-नक्श और गोल चेहरे वाली दीपा ने समरजीत को तुरंत आकर्षित कर लिया। हालांकि दीपा उसकी बिरादरी की नहीं थी, फिर भी समरजीत का झुकाव उसकी तरफ बढ़ता गया।
धीरे-धीरे दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। यह बातचीत जल्द ही गहरे प्रेम में बदल गई। दोनों एक-दूसरे के इतने करीब आ गए कि उनके बीच शारीरिक संबंध भी बन गए। अपने रिश्ते की इस गहराई के बाद, दोनों ने महसूस किया कि उनका प्यार ही उनकी जिंदगी का केंद्र है।
प्यार की राह में बाधाएं
समरजीत और दीपा ने अपनी अलग दुनिया बसाने की योजना बना ली थी। लेकिन वे जानते थे कि उनकी शादी के लिए परिवार वाले कभी तैयार नहीं होंगे। जाति अलग होने और एक ही गांव के होने की वजह से उनकी शादी को लेकर विरोध तय था।
समरजीत और दीपा को विश्वास था कि सच्चा प्यार हर बाधा पार कर लेता है। समाज और परिवार के बनाए नियमों की परवाह किए बिना, उन्होंने अपने रिश्ते को निभाने की ठानी। लेकिन मोहल्ले वालों की नजरों से उनका रिश्ता छिप नहीं सका।
रिश्ते का खुलासा और बंदिशें
जब मोहल्ले के लोगों ने इन दोनों के प्रेम की चर्चा शुरू की, तो यह बात उनके परिवारों तक पहुंची। समरजीत के पिता सूर्यभान सिंह ने उसे डांटा, जबकि दीपा के पिता रामसनेही ने उस पर सख्त पाबंदियां लगा दीं। रामसनेही को डर था कि अगर दीपा के प्रेम संबंध का पता औरों को चला, तो उसकी शादी में समस्या हो सकती है।
लेकिन कहते हैं, प्यार पर जितनी पाबंदियां लगती हैं, वह उतना ही मजबूत होता है। दीपा के साथ भी ऐसा ही हुआ। घर वालों के सोने के बाद वह समरजीत से फोन पर बात करती रही। मुलाकात भले न हो पा रही हो, लेकिन फोन पर दोनों अपने दिल की बात कह लेते थे।
इस तरह बंदिशों के बावजूद उनका प्यार चलता रहा। लेकिन यह रिश्ता न केवल परिवारों के लिए, बल्कि अंततः दीपा और समरजीत के लिए भी एक त्रासदी बन गया।
दीपा और समरजीत: प्यार, संघर्ष और अंतहीन भागमभाग
रामसनेही को जब अपनी बेटी दीपा के समरजीत से फोन पर बात करने का पता चला, तो वह क्रोधित हो गया। उसने दीपा से पूछा कि वह किससे बात कर रही है। दीपा ने साफ कह दिया कि वह समरजीत से बात कर रही है। यह सुनकर रामसनेही गुस्से से तिलमिला गया और उसने दीपा की पिटाई कर दी। उसका मानना था कि पिटाई से दीपा डर जाएगी और समरजीत से दूर हो जाएगी। लेकिन इसका नतीजा उलटा हुआ।
दीपा और समरजीत की पहली भागने की घटना (2012)
सन 2012 में दीपा समरजीत के साथ भाग गई। समरजीत उसे लेकर हरिद्वार में अपने एक परिचित के यहां चला गया। रामसनेही ने बेटी के गायब होने की सूचना थाना कुंडेल भार में दर्ज कराई। चूंकि गांव से समरजीत भी गायब था, लोगों ने तुरंत समझ लिया कि दीपा समरजीत के साथ भागी है।
इस पर रामसनेही ने गांव में पंचायत बुलवाई और पंचों के जरिए समरजीत के पिता सूर्यभान सिंह पर दबाव बनाया कि वह दीपा को वापस लाए। उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कई गांवों में पंचायतों का निर्णय सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए आज भी प्रभावी माना जाता है। सामाजिक दबाव और अपनी मान-मर्यादा को ध्यान में रखते हुए सूर्यभान सिंह ने अपने स्तर से समरजीत और दीपा को ढूंढना शुरू किया।
बाद में उसे पता चला कि दोनों हरिद्वार में हैं। वह उन्हें वहां से गांव वापस ले आया। दोनों परिवारों ने उन्हें समझाने का प्रयास किया। कुछ समय तक वे ठीक-ठाक रहे, लेकिन फिर उन्होंने एक-दूसरे से मिलना शुरू कर दिया।
दूसरी बार भागने की घटना
कुछ समय बाद दीपा और समरजीत फिर से भाग गए। इस बार वे अंबाला गए, जहां समरजीत की बड़ी बहन रहती थी। समरजीत दीपा को अपनी बहन के घर ले गया। उसकी बहन ने भी उन दोनों को समझाने की कोशिश की और इस बारे में उनके पिता को सूचना दी। सूर्यभान सिंह ने एक बार फिर दोनों को गांव वापस लाया।
दीपा की शादी की योजना
दीपा के बार-बार भागने से रामसनेही और उसके परिवार की बदनामी होने लगी। अब रामसनेही के पास एक ही उपाय बचा—दीपा की शादी कर देना। उसने जल्दी-जल्दी दीपा के लिए लड़का ढूंढना शुरू कर दिया।
जब दीपा को पता चला कि उसके घर वाले उसकी शादी की योजना बना रहे हैं, तो उसने अपनी मां से साफ-साफ कह दिया कि वह समरजीत के अलावा किसी और से शादी नहीं करेगी। इस जिद के कारण उसकी मां ने उसकी पिटाई कर दी।
तीसरी बार भागने की घटना (27 फरवरी 2013)
27 फरवरी 2013 को दीपा और समरजीत तीसरी बार घर से भाग गए। इस बार समरजीत दीपा को दिल्ली ले गया। दिल्ली के दक्षिण-पूर्वी इलाके पुल प्रहलादपुर में समरजीत के भाई धर्मेंद्र और अरविंद रहते थे। समरजीत दीपा को उनके पास ले गया।
इसके बाद दोनों ने एक मंदिर में शादी कर ली और पुल प्रहलादपुर में एक कमरा लेकर पति-पत्नी की तरह रहने लगे। लेकिन उनकी यह प्रेम कहानी, जिसने कई बार परिवार और समाज के खिलाफ जाकर अपने लिए जगह बनाई, आखिरकार एक दुखद अंत की ओर बढ़ रही थी।
दीपा और समरजीत की गृहस्थी में अविश्वास और विश्वासघात
पुल प्रहलादपुर में राम स्नेही के कुछ परिचित भी रहते थे। उन्हीं के जरिए उसे पता चला कि दीपा समरजीत के साथ दिल्ली में रह रही है। यह खबर मिलने के बावजूद राम स्नेही ने उसे वहां से लाना जरूरी नहीं समझा। वह जानता था कि दीपा पहले दो बार भाग चुकी थी और उसे वापस लाने के बावजूद वह घर नहीं रुकना चाहती थी। ऐसे में उसे फिर से घर लाने का कोई फायदा नहीं था।
दिल्ली में नई शुरुआत
समरजीत के भाई अरविंद और धर्मेंद्र ड्राइवर थे। समरजीत उस समय बेरोजगार था, और उसकी गृहस्थी का खर्चा दोनों भाई उठा रहे थे। समरजीत लंबे समय तक भाइयों पर बोझ नहीं बनना चाहता था। इसलिए उसने ओखला फेज-1 स्थित एक सिक्योरिटी कंपनी में गार्ड की नौकरी कर ली। इससे उसकी चिंता थोड़ी कम हो गई, और दोनों की गृहस्थी हंसी-खुशी चलने लगी।
समरजीत अपनी नौकरी को लेकर गंभीर था। उसकी ड्यूटी कभी दिन की होती थी तो कभी रात की। नौकरी की व्यस्तता के चलते वह पत्नी दीपा की ओर कम ध्यान दे पा रहा था। इसी बीच दीपा का पास में रहने वाले एक युवक से नाजायज संबंध बन गया।
विश्वासघात का खुलासा
समरजीत दीपा से बेइंतहा प्यार करता था और उस पर अटूट विश्वास करता था। उसे इस बात की भनक तक नहीं लगी कि उसकी गैरमौजूदगी में दीपा उसका विश्वास तोड़ रही है। लेकिन कहते हैं कि कोई भी गलत काम ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं रह सकता।
एक रात, जब समरजीत की ड्यूटी रात की थी, दीपा ने अपने प्रेमी को घर बुला लिया। यह उसके लिए आम बात थी, क्योंकि समरजीत की ड्यूटी के दौरान वह अक्सर अपने प्रेमी को बुलाया करती थी। उसी रात करीब 11 बजे समरजीत की तबीयत अचानक खराब हो गई। ड्यूटी पर रहते हुए वह आराम नहीं कर सकता था, इसलिए उसने घर लौटने का फैसला किया।
सवारी न मिलने पर उसने एक दोस्त से मदद मांगी, जिसने उसे मोटरसाइकिल से उसके कमरे तक छोड़ दिया। समरजीत ने कमरे का दरवाजा खटखटाया। अंदर दीपा अपने प्रेमी के साथ मौज-मस्ती कर रही थी। दरवाजे की दस्तक सुनकर वह घबरा गई। उसने जल्दी-जल्दी अपने कपड़े ठीक किए और प्रेमी को बेड के नीचे छिपने को कहा।
अपराध के साक्षी बने समरजीत
दरवाजा खोलते ही उसने समरजीत को सामने देखा। वह चौक कर बोली, “तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए?”
“आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए ड्यूटी छोड़कर आ गया,” समरजीत ने जवाब दिया।
कमरे में घुसते ही समरजीत बेड पर लेट गया। तभी बेड के नीचे से दीपा का प्रेमी भाग खड़ा हुआ। समरजीत ने उसे देखा तो सही, लेकिन उसकी सूरत पहचान नहीं पाया। यह देखकर समरजीत चौक गया और गुस्से में भरकर उसने दीपा से पूछा, “यह कौन था और यहां क्यों आया था?”
दीपा ने बात घुमाने की कोशिश करते हुए कहा, “पता नहीं कौन था। शायद चोर हो। कहीं ऐसा तो नहीं कि वह कोई सामान चुराकर ले गया हो।” उसने संदूक का ताला खोलकर कीमती सामान जांचने का नाटक किया।
समरजीत ने उसकी बात काटते हुए कहा, “तुम मुझे बेवकूफ समझती हो? मुझे पता है कि वह यहां क्यों आया था। उसे जो चीज चुरानी थी, वह तुमने खुद उसे सौंप दी। अब बेहतर यही है कि जो हुआ उसे भूल जाओ। आइंदा यह व्यक्ति यहां नहीं आना चाहिए, और न ही ऐसी बात मुझे सुनने को मिले।”
रातभर की बेचैनी
समरजीत की नसीहत सुनकर दीपा ने राहत की सांस ली, लेकिन समरजीत रातभर इस घटना को लेकर परेशान रहा। उसने सोचते हुए कहा, “जिस दीपा के लिए मैंने अपना गांव छोड़ा, उसे पत्नी बनाया, उसी ने मेरा विश्वास तोड़ा।”
समरजीत जानता था कि जब कोई महिला एक बार लक्ष्मण रेखा पार कर लेती है, तो उस पर विश्वास करना मूर्खता होती है। इस विश्वासघात ने उसके दिल में दीपा के प्रति अविश्वास और कड़वाहट भर दी।
दीपा की हत्या: जघन्य अपराध की खौफनाक कहानी
अगले दिन जब समरजीत ड्यूटी पर गया, तो भी उसका मन काम में नहीं लगा। उसके मन में लगातार यह बात घूम रही थी कि दीपा अपने यार के साथ मौज-मस्ती कर रही होगी। घर लौटने के बाद उसने अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र से दीपा की हरकतों के बारे में बात की। यह बात उसने अपने मामा नरेंद्र को भी बताई।
हत्या की साजिश
सभी ने मिलकर फैसला किया कि दीपा जैसी महिला की चौकीदारी हर समय नहीं की जा सकती। उसे खत्म करना ही आखिरी रास्ता है। दीपा को मारने का फैसला तो ले लिया गया, लेकिन इसे कहां और कैसे अंजाम दिया जाए, इसके लिए योजना बनाई गई।
काफी सोचने के बाद तय हुआ कि दिल्ली में हत्या करना जोखिम भरा होगा, क्योंकि दिल्ली पुलिस से बचना मुश्किल है। इसलिए उसे सुल्तानपुर ले जाकर ठिकाने लगाना सबसे सही विकल्प लगा।
दीपा को सुल्तानपुर ले जाने का झांसा
समरजीत जानता था कि दीपा सुल्तानपुर जाने के लिए आसानी से राजी नहीं होगी। इसलिए उसने उसे झांसा देने के लिए कहा, “सुल्तानपुर के नईपुर में मेरे मामा रहते हैं। उनके पास काफी जमीन-जायदाद है और उनकी कोई औलाद नहीं है। उन्होंने हमें अपने पास रहने के लिए बुलाया है। दिल्ली में हमारी स्थिति वैसे ही खराब है, तो कुछ दिन उनके पास रहने में कोई बुराई नहीं है।”
दीपा ने सोचा कि मामा की कोई औलाद न होने के कारण जायदाद पति के नाम हो जाएगी। इस लालच में उसने सुल्तानपुर जाने के लिए हामी भर दी।
घिनौने अपराध का अंजाम
23 दिसंबर 2013 को समरजीत दीपा को ट्रेन से सुल्तानपुर ले गया। उसके साथ अरविंद और धर्मेंद्र भी थे। सुल्तानपुर स्टेशन पर पहुंचने पर अंधेरा हो चुका था। स्टेशन से दूर नगपुरत नामक जगह पर मामा नरेंद्र का आम का बाग था, जहां योजना के अनुसार नरेंद्र पहले से इंतजार कर रहा था।
बाग के किनारे पहुंचकर तीनों भाइयों ने दीपा का गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी। जल्दबाजी में एक गड्ढा खोदकर उसकी लाश को वहीं दफना दिया। गड्ढा अधिक गहरा नहीं था, जिससे मामा नरेंद्र को लगा कि जंगली जानवर मिट्टी खोदकर लाश बाहर निकाल सकते हैं।
दो दिन बाद नरेंद्र अकेले ही बाग में गया। उसने पहले गड्ढे से लाश निकाली और 20-25 कदम दूर एक गहरा गड्ढा खोदा। उसने दीपा की लाश को शाल में लपेटकर गठरी की तरह बांधा और उसे नए गड्ढे में दफना दिया। लाश के ऊपर उसने आम का एक पौधा लगा दिया ताकि किसी को शक न हो।
झूठ और गिरफ्तारी
दीपा को ठिकाने लगाने के बाद समरजीत, अरविंद और धर्मेंद्र सामान्य जीवन जीने लगे। उनके हाव-भाव से कोई अंदाजा नहीं लगा सकता था कि उन्होंने हाल ही में इतना बड़ा अपराध किया है।
गांव के लोगों को पता था कि दीपा दिल्ली में समरजीत के साथ पत्नी की तरह रह रही थी। जब उन्होंने समरजीत को गांव में अकेले देखा, तो उससे दीपा के बारे में पूछा। समरजीत ने झूठ बोलते हुए कहा कि दीपा एक महीने पहले झगड़ा करके दिल्ली से गांव जाने की बात कहकर चली गई थी।
दीपा के पिता राम स्नेही ने जब यह बात सुनी, तो वह घबरा गए। उन्होंने बेटी की खोजबीन के लिए दिल्ली जाकर पुल प्रहलादपुर थाने में उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई।
पुलिस की कार्यवाही और न्याय
पुलिस ने जांच करते हुए समरजीत, अरविंद, धर्मेंद्र और मामा नरेंद्र को दीपा के अपहरण, हत्या और लाश छिपाने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया। 9 जनवरी 2013 को दिल्ली के साकेत न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी पवन कुमार की कोर्ट में आरोपियों को पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।