बेंगलुरु के दक्षिण में बसे बनरघट्टा रोड पर स्थित होली माउ कॉलोनी में 32 वर्षीय सतीश कुमार गुप्ता अपनी पत्नी प्रियंका गुप्ता के साथ रहते थे। दोनों ही पढ़े-लिखे, समझदार और पेशेवर जीवन में सफल थे। सतीश इनफोसिस कंपनी में एचआर विभाग के मैनेजर के पद पर कार्यरत था, जबकि प्रियंका, जो गणित में माहिर थी, कनकपुरा रोड स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल में शिक्षिका के रूप में काम करती थी।
हालांकि उनके कोई संतान नहीं थी, लेकिन अपने किराए के घर में वे बेहद खुशहाल जीवन जी रहे थे। उनकी योजना जल्द ही अपने खरीदे हुए प्लॉट पर घर बनाने की थी, जिससे उनके भविष्य के सपनों को नई उड़ान मिल सके।
हर दिन की तरह, 10 अगस्त 2010 की सुबह भी सतीश अपने नियमित रूटीन का पालन कर रहा था। सुबह 5 बजे उठकर, तैयार होकर वह ठीक 5:04 पर जॉगिंग के लिए निकल गया। जॉगिंग उसकी दिनचर्या का हिस्सा था, जबकि प्रियंका सुबह स्कूल जाने की तैयारी के बीच घर पर योगा करती थी। उस दिन भी सब कुछ सामान्य और सुखद लग रहा था।
सुबह-सुबह का रहस्य: सतीश की बेचैनी बढ़ी
10 अगस्त की सुबह, जब सतीश कुमार गुप्ता अपनी जॉगिंग पूरी कर 6:04 बजे घर पहुंचा, तो उसे एक अजीब सी बेचैनी ने घेर लिया। दरअसल, जॉगिंग के दौरान उसकी पत्नी प्रियंका का फोन आया था, जिसमें उसने बताया कि घर के बाहर दो रद्दी वाले खड़े हैं और रद्दी मांग रहे हैं। इस समय पर यह घटना असामान्य थी, क्योंकि सुबह 7 बजे से पहले रद्दी वाले आना आम बात नहीं थी, खासकर तब, जब दुकानें भी बंद होती हैं।
सतीश ने फौरन प्रियंका को दरवाजा न खोलने की सलाह दी और कहा कि वह तुरंत घर पहुंच रहा है। लेकिन जब वह घर पहुंचा और डोरबेल बजाई, तो दरवाजा नहीं खुला। उसने दोबारा जोर से खटखटाया, पर नतीजा वही रहा। चिंतित सतीश ने प्रियंका को फोन किया, लेकिन इस बार उसने फोन भी नहीं उठाया। सतीश की बेचैनी अब गहरी चिंता में बदल चुकी थी।
उसने दरवाजे को धक्का देकर तोड़ने की कोशिश की, पर वह नहीं खुला। इससे सतीश को यकीन हो गया कि दरवाजा अंदर से लॉक है और प्रियंका घर के अंदर ही है। लेकिन वह दरवाजा क्यों नहीं खोल रही थी?
तभी सतीश को याद आया कि दरवाजे की दूसरी चाबी उसने अपने ऑफिस के ड्रॉअर में रखी थी। दोनों पति-पत्नी कामकाजी थे, इसलिए उन्होंने घर की एक-एक चाबी अपने पास रखने का नियम बनाया था। इससे कोई भी कभी भी घर में आ-जा सकता था।
सतीश ने बिना देर किए, जॉगिंग के कपड़ों में ही अपने ऑफिस की ओर दौड़ लगाई। ऑफिस घर से ज्यादा दूर नहीं था, और वहां पहुंचकर उसने दूसरी चाबी ली और तुरंत घर की ओर लौट आया।
घर का दरवाजा खुला और सन्नाटे ने सतीश को घेर लिया
सतीश ने ऑफिस से चाबी लाकर जैसे ही घर का लॉक खोला, तो जो दृश्य उसके सामने आया, उसने उसके पैरों तले जमीन खिसका दी। लिविंग रूम की कुर्सी पर प्रियंका बैठी हुई थी। उसके दोनों हाथ कुर्सी के हैंडल्स से बंधे हुए थे, और उसके गले पर गहरे कट का निशान था। प्रियंका खून से लथपथ थी। यह मंजर देखकर सतीश की सांसें थम सी गईं।
हिम्मत जुटाकर सतीश ने तुरंत पुलिस को फोन किया। होली माउ पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर अपनी टीम के साथ तुरंत घटनास्थल पर पहुंचे। खून से सनी प्रियंका को देखकर पुलिस टीम भी स्तब्ध रह गई। घर में सतीश और प्रियंका के अलावा कोई और नहीं रहता था, जिससे यह मामला और भी रहस्यमय हो गया।
सतीश का दुख असहनीय था। वह जोर-जोर से रो रहा था। पुलिस ने किसी तरह उसे संभाला और उसके माता-पिता को इस घटना की सूचना दी। सतीश के माता-पिता सुदामा नगर में रहते थे, जो घटनास्थल से मात्र 10 किलोमीटर दूर था। वे तुरंत अपने बेटे के पास पहुंचे।
सतीश के पिता ने प्रियंका के परिवार को लखनऊ में फोन कर इस हादसे की जानकारी दी। प्रियंका की मौत की खबर सुनकर उनके घर पर मातम पसर गया। प्रियंका के माता-पिता स्तब्ध थे, क्योंकि एक दिन पहले ही प्रियंका ने उनसे फोन पर बात की थी और सब कुछ सामान्य था।
प्रियंका के घरवाले दुख और अविश्वास से घिरे, तुरंत लखनऊ से बेंगलुरु के लिए रवाना हो गए। सबके मन में एक ही सवाल था—ऐसा क्या हुआ जो उनके जीवन में इतनी बड़ी त्रासदी लेकर आया?
पुलिस की जांच शुरू: रहस्य के पर्दे उठने का इंतजार
पुलिस ने प्राथमिक कार्यवाही करते हुए प्रियंका के शव को पोस्टमॉर्टम के लिए अस्पताल भिजवाया। इसके साथ ही अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी। यह मामला बेहद पेचीदा था क्योंकि घर में सतीश और प्रियंका ही रहते थे। अब प्रियंका का बेरहमी से कत्ल हो चुका था, और सतीश गहरे सदमे में था।
पुलिस ने सतीश से पूछताछ की कोशिश की, लेकिन उसकी स्थिति इतनी खराब थी कि वह मुश्किल से कुछ बोल पा रहा था। जैसे-तैसे, सतीश ने बताया कि वह सुबह जॉगिंग के लिए घर से निकला था। उसी दौरान प्रियंका ने उसे फोन किया और घर के बाहर आए दो रद्दी वालों का जिक्र किया। प्रियंका ने बताया था कि घर में कोई रद्दी नहीं थी, इसलिए उसने उन रद्दी वालों को मना कर दिया।
सतीश को भी इतनी सुबह रद्दी वालों का आना अजीब लगा, इसलिए वह तुरंत घर लौट आया। जब उसने घर पहुंचकर दरवाजा खटखटाया, तो वह अंदर से बंद था। सतीश को याद आया कि घर की एक अतिरिक्त चाबी उसने अपने ऑफिस में रखी हुई थी, इसलिए वह जल्दी से ऑफिस जाकर चाबी लेकर आया।
प्रियंका के फोन पर बताई गई रद्दी वाली बात ने पुलिस का ध्यान खींचा। उन्होंने इसे जांच का अहम सुराग मानते हुए तुरंत सतीश के घर की तलाशी शुरू कर दी। हर चीज की बारीकी से जांच की जाने लगी, ताकि इस रहस्यमय हत्या के पीछे छिपे सच को उजागर किया जा सके।
लूट, हत्या और सतीश का अडिग संघर्ष
पुलिस के साथ सतीश जब अपने घर पहुंचा और अलमारी की जांच की, तो एक और चौंकाने वाली बात सामने आई। सतीश ने बताया कि उसने अलमारी में करीब ₹2,10,000 नकद और शादी के ₹1,75,000 के गहने रखे थे। ये पैसे वह अपनी पत्नी प्रियंका के लिए कार गिफ्ट करने के लिए बचा रहा था, ताकि वह हर दिन उसे स्कूल ड्रॉप कर सके। लेकिन जब अलमारी खोली गई, तो सारे पैसे और गहने गायब थे। यह लूटपाट का मामला लग रहा था, जिससे प्रियंका की हत्या का कारण और भी संदिग्ध हो गया।
इस दौरान, प्रियंका के परिवार वाले भी बेंगलुरु पहुंच गए थे। अगले दिन, 11 अगस्त को प्रियंका के शव का पोस्टमॉर्टम हुआ और शव परिवार को सौंप दिया गया। सतीश ने अपनी पत्नी को अंतिम विदाई देते हुए मुखाग्नि दी। उसके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।
पुलिस ने केस की जांच तेज कर दी और आसपास के लोगों से पूछताछ शुरू की। हालांकि, किराए की तीन मंजिला इमारत, जहां सतीश और प्रियंका दूसरी मंजिल पर रहते थे, में न तो कोई सीसीटीवी कैमरा लगा था और न ही अन्य किरायेदारों ने किसी संदिग्ध गतिविधि की जानकारी दी। पहली और तीसरी मंजिल पर रहने वाले लोगों ने बताया कि उन्होंने सुबह न तो किसी रद्दी वाले की आवाज सुनी और न ही कोई आहट महसूस की।
इस घटना ने पूरे इलाके में सनसनी मचा दी। बेंगलुरु जैसे बड़े शहर में सुबह के समय लूट और हत्या की यह वारदात मीडिया में सुर्खियां बटोरने लगी। पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे, लेकिन जांच टीम बिना थके अपराधियों तक पहुंचने की कोशिश में जुटी रही।
इधर, सतीश का गुस्सा और दर्द चरम पर था। प्रियंका के अंतिम संस्कार के बाद वह होली माउ पुलिस स्टेशन के बाहर धरने पर बैठ गया। उसका कहना था कि जब तक पुलिस उसकी पत्नी के कातिलों को गिरफ्तार नहीं करेगी, तब तक वह वहां से नहीं हटेगा।
पुलिस ने उसे समझाने की कोशिश की। अधिकारियों ने भरोसा दिलाया कि वे मामले की गहराई से जांच कर रहे हैं और जल्द ही अपराधियों को पकड़ लेंगे। लेकिन सतीश टस से मस नहीं हुआ। पुलिस स्टेशन के बाहर धरना और मीडिया कवरेज ने इस घटना को और भी ज्यादा चर्चा में ला दिया। अखबारों की सुर्खियों में यह मामला छा गया, और सतीश को जनता की भारी सहानुभूति मिलने लगी।
जहां पुलिस सुराग की तलाश में संघर्ष कर रही थी, वहीं सतीश अपने अदम्य हौसले के साथ इंसाफ की मांग को लेकर डटा रहा।
पुलिस ने प्रियंका हत्याकांड की कड़ियों को जोड़ने के लिए सतीश के बयानों और सबूतों को गहराई से खंगालना शुरू किया। शुरुआत में सतीश के बयान साधारण लग रहे थे, लेकिन जब जांच आगे बढ़ी, तो विरोधाभास सामने आने लगे।
सतीश के बयान और पुलिस की पड़ताल
सतीश ने कहा था कि 10 अगस्त की सुबह करीब 5:45 बजे वह जॉगिंग के लिए निकला और 6:40 पर घर वापस आया। इस दौरान प्रियंका ने 5:55 बजे उसे फोन किया था और रद्दी वालों के आने की सूचना दी थी। सतीश ने दावा किया कि वह यह सुनते ही घर की ओर चल पड़ा।
लेकिन कॉल डिटेल्स के मुताबिक, सतीश प्रियंका के फोन करने के 45 मिनट बाद घर पहुंचा, जबकि वह जॉगिंग घर के पास ही करता था। यह देरी संदिग्ध थी।
सतीश ने यह भी कहा कि घर पहुंचने पर उसने दरवाजा बंद पाया और दूसरी चाबी लेने ऑफिस गया। परंतु, ऑफिस की सुरक्षा प्रणाली और कैमरों ने सतीश की बात को खारिज कर दिया। पुलिस ने पाया कि सतीश का ऑफिस एंट्री कार्ड उस दिन उपयोग नहीं हुआ था। कैमरों से यह भी स्पष्ट हुआ कि सतीश ऑफिस बिल्डिंग के बाहर थोड़ी देर टहलता रहा और फिर वहां से चला गया।
लोकेशन और साक्ष्य
कॉल डिटेल्स से यह भी सामने आया कि घटना के समय सतीश और प्रियंका के फोन की लोकेशन एक ही टावर के अंतर्गत थी, जो उनके घर की लोकेशन थी। इसका मतलब यह था कि जब प्रियंका की हत्या हुई, उस समय सतीश घर के आसपास ही था।
घर की तलाशी के दौरान, पुलिस को और भी चौंकाने वाले सुराग मिले। उन्हें घर के अंदर से एक जोड़ी दस्ताने, जूते, एक बिना स्लिप्स वाला जैकेट, और जैकेट की जेब में सिगरेट का पैकेट मिला। इसके अलावा, पुलिस ने देखा कि घटना वाले दिन सतीश के पैर में मोच आई हुई थी, जिसके चलते वह हल्का लंगड़ा कर चल रहा था। उसने इस बात को छिपाने के लिए भारी जूते पहने हुए थे।
पड़ोसियों की गवाही
पड़ोसियों से पूछताछ में भी सतीश के बयानों को समर्थन नहीं मिला। उन्होंने कहा कि घटना के दिन बिल्डिंग में किसी बाहरी व्यक्ति की आवाज़ या कोई शोर-शराबा नहीं सुना गया। अगर रद्दी वाला आया होता, तो वह सबसे पहले ग्राउंड फ्लोर का दरवाजा खटखटाता। यह भी पुष्टि हुई कि उस दिन सुबह किसी बाहरी व्यक्ति ने बिल्डिंग में प्रवेश नहीं किया था।
पुलिस की योजना और सतीश पर शक
सभी सबूत और बयान सतीश को ही शक के घेरे में ला रहे थे। पुलिस को शुरू से सतीश पर शक था, लेकिन ठोस सबूत जुटाने के लिए उन्होंने उसे थाने के बाहर धरने पर बैठने दिया। पुलिस चाहती थी कि सतीश वहां से न हटे, ताकि उस पर नजर रखी जा सके।
सतीश की हर गतिविधि, उसके विरोधाभासी बयान, और घटनास्थल पर मिले सबूत उसकी भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे थे। अब, पुलिस के लिए यह मामला केवल एक कदम दूर था, जहां सच्चाई पूरी तरह से उजागर हो सकती थी।
पोस्टमॉर्टम और जांच से खुलती परतें
प्रियंका की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि उसे पहले रस्सी से गला घोंटकर मारा गया और फिर चाकू से वार किया गया। उसके गले और पेट पर घाव के निशान मिले, लेकिन शरीर के अन्य हिस्सों पर चोट के कोई संकेत नहीं थे। यह तथ्य पुलिस के लिए अहम था, क्योंकि अगर यह लूटपाट का मामला होता और प्रियंका ने विरोध किया होता, तो उसके शरीर पर अधिक चोटों के निशान होते।
लूट की कहानी पर सवाल
सतीश ने दावा किया था कि घर से ₹2,00,000 नकद और ₹1,75,000 के गहने गायब थे। लेकिन जब पुलिस ने घर की तलाशी ली, तो नकदी का एक बड़ा हिस्सा आसानी से एक जगह पड़ा मिला। सवाल यह था कि अगर लुटेरे घर में घुसे थे, तो उन्होंने इतनी आसानी से मिलने वाले पैसे क्यों नहीं चुराए?
इसके अलावा, प्रियंका के शव पर उसकी सोने की बालियां, अंगूठी, और मंगलसूत्र जैसे कीमती गहने सुरक्षित पाए गए। पुलिस के अनुसार, अगर लूटपाट हुई होती, तो लुटेरे ये गहने भी छीन लेते। इन सब तथ्यों ने सतीश की कहानी को संदेह के घेरे में ला दिया।
सतीश का अपराध कबूलना
जब पुलिस ने सतीश से कड़ी पूछताछ की और उसे इन तथ्यों का सामना कराया, तो वह टूट गया और उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। उसने बताया कि उसने ही प्रियंका की हत्या की थी।
हत्या का कारण: लंबे समय से चल रहा तनाव
सतीश और प्रियंका की शादी 2007 में हुई थी। यह एक अरेंज मैरिज थी, लेकिन दोनों ने अपनी मर्जी से शादी की थी। शादी के कुछ ही समय बाद, उनके बीच विवाद शुरू हो गए।
सतीश ने बताया कि प्रियंका ने शादी के बाद उसे उसके माता-पिता से दूर करने की कोशिश की। उसने सतीश को अपने गले में पहने माता-पिता की तस्वीर वाले लॉकेट को हटाकर अपनी तस्वीर का लॉकेट पहनने को कहा।
इसके अलावा, प्रियंका ने सतीश से कहा कि वह अपने माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहती। उसने सतीश को होली मो में अलग घर लेकर रहने पर मजबूर कर दिया। धीरे-धीरे प्रियंका ने सतीश को अपने माता-पिता से मिलने और उन्हें आर्थिक मदद करने से भी मना कर दिया।
2010 में, सतीश और प्रियंका ने एक नई जमीन खरीदी। भूमि पूजन के दौरान, प्रियंका ने सतीश के माता-पिता को बाउंड्री के बाहर रोक दिया और उन्हें कहा कि यह जमीन उसकी और सतीश की है, और उनका इसमें कोई हक नहीं है। इस घटना ने सतीश को गहराई तक आहत किया। जब उसने यह बात अन्य लोगों से सुनी, तो उसने उसी दिन निर्णय ले लिया कि वह प्रियंका को नहीं छोड़ेगा।
सतीश ने प्रियंका के प्रति वर्षों से बढ़ रही नफरत और गुस्से को अपने दिल में दबाए रखा। जब उसे लगा कि प्रियंका ने उसे पूरी तरह अलग-थलग कर दिया है, तो उसने हत्या की योजना बनाई।
पुलिस जांच में निष्कर्ष
पुलिस के लिए यह मामला सुलझाना चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि सतीश ने हत्या को लूटपाट का मामला बनाने की कोशिश की थी। लेकिन पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, घर की तलाशी, और सतीश के बयानों में विरोधाभास ने पुलिस को सच्चाई तक पहुंचा दिया। सतीश की स्वीकारोक्ति ने इस दर्दनाक घटना के पीछे छिपे लंबे समय से चले आ रहे घरेलू विवाद को उजागर कर दिया।
सतीश की साजिश: प्यार के दिखावे से मौत तक
सतीश ने प्रियंका को रास्ते से हटाने की योजना उसी दिन से बनानी शुरू कर दी थी जब उसने अपने अहंकार और गुस्से को शांत रखने का नाटक करना शुरू किया। उसने तीन महीनों तक इस साजिश की तैयारी की और योजना के तहत वह प्रियंका के प्रति अत्यधिक प्यार और देखभाल दिखाने लगा।
बदलते व्यवहार से साजिश का आगाज़
सतीश का यह नया रूप प्रियंका और उसके आसपास के लोगों को भ्रमित करने के लिए था। सतीश ने ऐसा दिखाया मानो वह अपने माता-पिता के अपमान और गुस्से को भूल चुका हो। उसने प्रियंका के साथ प्यार भरी जिंदगी का दिखावा शुरू किया।
प्रियंका की बीमारी और सतीश का छल
इसी दौरान प्रियंका को स्वास्थ्य समस्या हो गई, और उसकी मां उसे इलाज के लिए केरल ले गईं। वहां आयुर्वेदिक उपचार के चलते वह डेढ़ महीने तक केरल में रही। सतीश ने इस दौरान नियमित फोन कॉल्स और मिलने के बहाने उसकी देखभाल का झूठा प्रदर्शन किया।
सतीश ने पुलिस को बताया कि यह सब उसने केवल इसलिए किया ताकि जब वह प्रियंका को मारे, तो किसी को उस पर शक न हो।
10 अगस्त की सुबह: साजिश का अंजाम
अगस्त के शुरुआती हफ्तों में, सतीश ने प्रियंका को गिफ्ट देकर खुश किया। 10 अगस्त की सुबह भी उसने प्रियंका को एक गिफ्ट देने का वादा किया। उसने प्रियंका की आंखों पर पट्टी बांधकर उसे सोफे पर बिठाया और कहा कि वह उसे एक खास गिफ्ट देने वाला है।
प्रियंका ने सतीश पर भरोसा दिखाते हुए अपने हाथ बंधवाने की सहमति दी। यह सतीश की योजना का हिस्सा था। उसने नायलॉन की रस्सी से प्रियंका के हाथ कुर्सी के हैंडल से बांध दिए।
मौत की साजिश: फंदा या गहना?
सतीश ने प्रियंका के गले में एक फंदा पहनाया, जिसे प्रियंका ने हीरे का हार समझा। लेकिन यह एक नायलॉन की रस्सी का फंदा था। सतीश ने रस्सी को कस दिया, और प्रियंका विरोध करने में असमर्थ थी।
प्रियंका का दम घुटने के बाद भी सतीश को शक था कि वह पूरी तरह मर चुकी है या नहीं। इसलिए उसने चाकू से प्रियंका का गला भी रेत दिया।
सबूत मिटाने की कोशिश
हत्या के बाद सतीश ने ग्लव्स पहनकर सभी सबूत मिटा दिए ताकि उसके फिंगरप्रिंट्स कहीं न मिलें। उसने प्रियंका के फोन से अपने फोन पर कॉल किया, ताकि यह लगे कि प्रियंका जिंदा थी।
इसके बाद वह अपने और प्रियंका के फोन लेकर जॉगिंग पर निकल गया। उसने इस दौरान अपने दोस्त से मुलाकात की, ताकि पूछताछ के समय दोस्त उसकी निर्दोषता की गवाही दे सके।
सतीश और प्रियंका की शादी एक सामान्य शुरुआत थी, लेकिन सतीश की मानसिकता और पारिवारिक माहौल ने इसे त्रासदी में बदल दिया। यह कहानी हमें दिखाती है कि कैसे घरेलू हिंसा और मानसिक प्रताड़ना किसी के जीवन को तबाह कर सकती है।
हत्या से पहले सतीश की चालें
10 अगस्त 2010 की सुबह प्रियंका की हत्या के बाद सतीश ने खुद को निर्दोष साबित करने के लिए एक साजिश रची। उसने अपने पिता के पुश्तैनी घर जाकर वहां से कार निकाली और इंफोसिस ऑफिस तक ड्राइव की। फिर वह वापस अपने घर आया।
पुलिस की पूछताछ में सतीश ने बताया कि उसने घटना के एक दिन पहले ही ऑफिस से चाबी चुराई थी। यह योजना उसकी कहानी को मजबूत बनाने के लिए थी, ताकि शक उस पर न जाए।
प्रियंका के साथ अत्याचार: मानसिक यातना का दौर
प्रियंका के परिवार ने बताया कि शादी के दो महीने बाद ही सतीश और उसके परिवार ने प्रियंका को परेशान करना शुरू कर दिया था। छोटी-छोटी बातों पर उसे ताने मारे जाते थे।
- पारिवारिक दबाव: ससुराल में प्रियंका अकेले थी, जबकि सतीश हमेशा अपने माता-पिता का पक्ष लेता था।
- प्रियंका की सहनशीलता: वह रोते हुए अपने माता-पिता से यह सब बताती, लेकिन उसे सलाह दी जाती कि नए रिश्ते में एडजस्ट करे।
- अंततः अलगाव: दो साल तक मानसिक प्रताड़ना झेलने के बाद प्रियंका अपने पति के साथ अलग रहने लगी।
सतीश का शक और साजिश
सतीश को प्रियंका पर शक था कि उसका उत्तर प्रदेश में किसी दोस्त के साथ रिश्ता है। दूसरी तरफ, सतीश खुद किसी और से शादी करना चाहता था। प्रियंका को मारने से पहले सतीश ने यह सुनिश्चित किया कि घर के सारे गहने और पैसे अपने माता-पिता के घर में छिपा दे।
हत्या और न्याय
प्रियंका की हत्या के बाद पुलिस ने सतीश के खिलाफ ठोस सबूत जुटाए, लेकिन उसके माता-पिता के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला।
- न्याय की प्रक्रिया: घटना के सात साल बाद, 28 जुलाई 2017 को कोर्ट ने सतीश को उम्रकैद और ₹2,25,000 जुर्माने की सजा सुनाई।
- हाई कोर्ट का फैसला: सतीश की अपील को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने सजा को बरकरार रखा।
जेल में सतीश की जिंदगी
जेल में सतीश को कैदियों को पढ़ाने का काम दिया गया। उसकी मदद से कई कैदियों ने डिग्रियां प्राप्त कीं। इस आधार पर सतीश ने सजा कम करने की अर्जी लगाई, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
क्या सीख मिलती है?
यह घटना हमें बताती है कि रिश्तों में सम्मान और समझदारी जरूरी है। मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का अंत हमेशा बुरा ही होता है। इस कहानी का उद्देश्य आपको जागरूक करना है।
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